रण क्षेत्र में नियाजी के पास रानी जयमती (भवानी) आती है और कहती है
कि नियाजी मुझे अपना शीश दे दीजिए। आपने वचन दिया था कि मैं एक बार आपसे जो भी
मांगूगीं आप मुझे वो दे देंगे। नियाजी अपने हाथ से ही अपना शीश काटकर भवानी के थाल
में रखकर देते हैं और कहते हैं कि भाभीजी मेरा वचन पूरा हो गया। नियाजी का सिर
कटने के बाद उनकी छाती में आँखे निकल आती हैं, नाभि की जगह मुँह बन जाता है और गले के ऊपर कमल का फूल
खिल जाता है। सिर कटने के बाद भी नियाजी अपने दोनों हाथों से हाथियों की पूंछ
पकड़कर घुमा-घुमाकर फेंक देते हैं। जिनके नीचे दबकर कई सैनिक मर जाते हैं। भवानी
नियाजी से कहती है कि आपका माथा कटने के बाद भी आप लड़े जा रहे हैं और कहती है कि
माथा तो है नहीं मैं आपकी आरती करूं तो तिलक कहाँ करूं। नियाजी कहते हैं माताजी
मैं आपको मान गया हूं। बस आपने आरती कर ली। भवानी सोचती है कि यह तो अभी रुकेगा
नहीं। भवानी सोचती है कि यह तो सिर कटने के बाद भी लड़ता जा रहा है इसलिए क्यों न
मैं इसे नील का छींटा दे दूँ (जो कि अशुभ होता है) जिससे नियाजी खाण्डा डाल देंगे।
नियाजी को भवानी की बात समझ आ जाती है और उनकी वाणी होती है कि भाभीजी मेरे ऊपर
नील का छींटा मत डालना। इससे मेरा मोक्ष नहीं होगा। मैं खाण्डा डाल देता हूँ लेकिन
माँ चामुण्डा मेरा वंश खत्म मत करना जैसे तूने भूणाजी, मेहन्दू जी और मदनो जी को
छोड़ा है वैसे मेरे वंश को छोड़ देना। इस पर भवानी नेतुजी के ६ महीने के गर्भ को
जीवित छोड़ देने का वचन देती है। नियाजी अब खाण्डा छोड़ देते हैं और पृथ्वी माता से
निवेदन करते हैं कि मुझे धरती में समा ले। जब सवाई भोज को नियाजी की मौत का पता लगता
है तो वह भवानी को कोसते हैं कि तू मेरे निया जैसे भाई को खा गई। भवानी कहती है कि
मैं तो डायन हूं। नियाजी की क्या सोच करते हो, मैं तो द्रौपदी बनकर कौरवों और पाण्डवों को खा गई, मेरा तो काम ही यही है।
सवाई भोज कहते हैं कि नियाजी जैसा भाई तो मुझे कभी नहीं मिल सकता। वह मेरे २२
भाइयों के बराबर एक ही था। भवानी कहती है कि मैं कई देवी देवताओं को खा गई, तू एक नियाजी की क्या बात
करता है। मैं तो बड़े- बड़ों को खा गई। सवाई भोज कहते हैं कि माँ चामुण्डा दूर रह ये
तेरी करनी मुझे जचीं नही मुझे। नियाजी के बाद रण भूमि में बाहरावत जी अपनी सेना के
साथ युद्ध करने के लिए आते हैं और वो भी लड़ाई करते हुए मारे जाते हैं। नियाजी और
बाहरावतजी की तरह सभी भाई एक-एक करके रावजी की फौजों से युद्ध करने के लिए खारी
नदी पर आए। खारी नदी पर ही सब युद्ध हुए थे। खारी नदी के एक किनारे पर रावजी की फौजें
थी तो दूसरी और बगड़ावतों की फौजें। यह युद्ध कलयुग का महाभारत का युद्ध था। इस
युद्ध में सवाई भोज के सभी महाबली योद्धा भाई काम आ गए। रानी को दिए वचन के अनुसार
एक-एक भाई ने अपनी फौज के साथ खारी नदी पर आकर रावजी की सेना के साथ युद्ध किया
था। इन बगड़ावत भाइयों की रानियाँ सतीवाड़े में सती होती हैं। चूंकि नेतुजी ६ महीने
के गर्भ से थी इस अवस्था में वह सती नहीं हो सकती थी, इसलिए वह बगड़ावतों के गुरु
बाबा रुपनाथ की धूणी पर आती है और कहती है बाबाजी इस पेट में लोथ पल रहा है इसे
निकाल कर आप अपने पास रख लो। बाबा रुपनाथ कहते है, मैं तेरे हाथ नहीं लगा सकता
क्योंकि तू मेरे चेले की रानी है, मैने तेरे हाथ का खूब भोजन किया है, और यदि मैं तेरे को हाथ लगाता हूँ
तो अगले जन्म में मैं सूअर बनूंगा। यह सुनकर नेतुजी खुद ही अपना पेट चीरकर गर्भ
बाहर निकाल कर बाबा को देती है और बाबा उसे अपने पास रखे भांग के घड़े में डाल देते
हैं और ढक देते हैं। नेतुजी कहती है बाबा जी अब आप ही इसके मां-बाप हो और इसकी
सुरक्षा आपकी जिम्मेदारी है। यह कहकर नेतुजी अपनी कमर को वापस बांध लेती है और
कहती है तीन महीने बाद इसका जन्म होगा और इसका नाम भांगड़े खान रखना। नेतुजी बाबा
रुपनाथजी से कहती है इस बच्चे को साधू मत बनाना। और इसको सफेद कपड़े देना, भगवा वस्र मत पहनाना।
राताकोट की जीत यही करेगा, यह बड़ा होकर अपने बाप का बैर लेगा। यह एक नया बदनोरा गांव बसायेगा।
बाबा से आज्ञा लेकर नेतु वहां से सती होने के लिये जाती है जहां सभी बगड़ावत भाईयों
की स्रियाँ नहा धोकर १६ श्रृंगार कर सती होने के लिए अपने-अपने पति के शवों के साथ
चिता में बैठ जाती हैं। सती होते समय नेतु रानी जयमती को श्राप देती है कि अगले
जनम में तू बड़े घर में जन्म लेगी तेरे शरीर पर कोढ झरेगा, तेरे सिर पर सींग होगा और
तेरे से शादी करने वाला कोई नहीं मिलेगा। रानी श्राप से भयभीत हो जाती है और नेतु
से कहती है की मेरा उद्धार कैसे होगा। विनती करती है।नेतु कहती है कि पीपलदे के
नाम से तू धार के राजा के यहां जन्म लेगी और भगवान देवनारायण मालवा से लौटते समय
तेरा उद्धार करेगें।
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देवनारायण कथा