रानी जयमती की तलाश में - 4
एक दिन रात को हीरा और रानी जयमती सवाई भोज से मिलने नौलखा बाग की ओर जा रही
होती हैं, संयोग से उस दिन
नीमदेवजी पहरे पर होते हैं और वो रानी की चाल से रानी को पहचान जाते हैं। रानी
नीमदेवजी को देख पास ही भडभूजे की भाड़ में जा छुपती है। जिसे नीमदेवजी देख लेते
हैं और हीरा से पूछते हैं कि हीरा भाभी जी को इतनी रात को लेकर कहां जा रही हो? हीरा सचेत हो कर कहती है कि
बाईसा को पेट घणो दूखे है, इस वास्ते भड़भूजे के
यहाँ आए हैं। यह झाड़ फूंक भी करना जानता है, बताबा ने आया हैं। नीमदेवजी को हीरा की बात पर विश्वास नहीं होता है। भड़भूजा
की भाड़ में छिपी रानी को निकालते हैं और हीरा को कहते हैं कि हीरा तुझे इस सच की
परीक्षा देनी होगी। हीरा परीक्षा देने के लिए तैयार हो जाती है। नीमदेवजी लुहार को
बुलवाते हैं और लोहे के गोले गरम करवाते हैं। लुहार भट्टी पर लोहे के बने गोलों को
तपा कर एकदम लाल कर देता है। जब लुहार लोहे के तपते हुए गोले चिमटे से पकड़कर हीरा
के हाथ में देने वाला होता है तब नीमदेवजी हीरा से कहते हैं कि यदि तू सच्ची है तो
तेरे हाथ नहीं जलेगें और अगर तू झूठ बोल रही होगी तो तेरे हाथ जल जायेगें। हीरा
लोहे के गर्म गोलों को देखती है तो एक बार पीछे हट जाती है और रानी की ओर देखती
है। फिर अचानक हीरा को लाल तपते हुए गोले के उपर एक चिंटी चलती दिखाई देती है तो
वो समझ जाती है कि यह बाईसा का चमत्कार है। और वह तपते हुए गोले को अपने हाथों में
ले लेती है। इस पर नीमदेवजी कहते हैं कि रानी जी के पेट में दर्द था तो भड़भूजे को
ही महलों मे बुलवा लेते। इतना कहकर नीमदेवजी वहां से चले जाते हैं।
इसके बाद नीमदेवजी दरबार में रावजी के पास जाकर रानी की शिकायत करते हैं, और कहते हैं कि कहीं बगड़ावत
भाई रानी को उठाकर न ले जाएं। रावजी जवाब देते हैं कि राण में आप जैसे उमराव हैं
ऐसे कैसे कोई रानी को उठाकर ले जा सकता है।
रानी जयमती दूसरे दिन हीरा के हाथ बगड़ावतों को संदेश भेजती है कि आप कुछ दिन
तक यहीं बिराजो, नौलखा बाग को छोड़कर
कहीं मत आना जाना। महलों की ओर भी नहीं आना, नहीं तो लोग समझेगें बाईसा त्रिया चरित्र है। रानी जयमती का यह संदेश नियाजी
को ही देकर हीरा वापस लौट आती है। जब रानी हीरा से पूछती है कि सवाई भोज से क्या
बात हुई तो हीरा बताती है कि सवाई भोज से तो मैं मिली ही नहीं, मैं तो नियाजी से ही मिलकर
वापस आ गई हूँ। तब रानी कहती है कि तूने नियाजी से बात क्यों करी? तुझे सवाई भोज से मिलने
भेजा था और तू नियाजी से ही मिल कर वापस आ गई। हीरा कहती है रानी जी आपका आज मुझ
पर से भरोसा उठ गया है। अब आपका और मेरा मेल नहीं हो सकता है। अब मैं आपके साथ
नहीं रह सकती। रानी हीरा को मनाती है और उसकी बढ़ाई करती है। कहती है हीरा तेरे को
मैं सारे श्रृंगार करवाऊगीं और हीरा को अपने कपड़े और सारे गहने देती है। मनाती है
और हीरा से कहती है तू मेरा साथ मत छोड़। रानी हीरा से कहती है, हीरा यहां से कैसे निकला
जाय कोई उपाय करो। हीरा कहती है रावजी का चारों ओर पहरा लगा हुआ है, क्या करें। रावजी को तो हम
सूअर का शिकार करने भेज देगें। मगर पहरे का क्या करेगें? हीरा कहती है बाईसा आप पेट
दुखने का झूटा बहाना करो। रानी हीरा की सलाह अनुसार ऐसा ही करती है।
हीरा रावजी के दरबार में जाकर फरियाद, फरियाद चिल्लाती है। रावजी पूछते है हीरा क्या बात हैं। हीरा कहती है दरबार
बाईसा के पेट में बहुत दर्द हो रहा है और लगता है बीमारी इनकी जान लेकर ही छोड़ेगी।
रावजी नीमदेवजी को कहते है भाई नीमदेव रानीजी की बीमारी बढ़ती ही जावे है। कोई
अच्छा जाना-माना भोपा हो तो पता करवाओं। 6
महीनो से ये बीमारी निकल ही नहीं रही है। नीमदेवजी उडदू के बाजार में आते हैं।
वहाँ उन्हें चांवडिया भोपा मिलता हैं और नीमदेवजी से कहता है कि डाकण (डायन), भूत, छोट (प्रेत), मूठ (दुष्ट आत्मा) को तो मैं मिनटों में खत्म कर देता हूं। उसे नीमदेवजी अपने साथ महलों में ले जाते हैं। नीमदेवजी हीरा से कहते हैं कि इसे ले जा
और तेरे बाईसा को दिखा। हीरा भील को रानी जयमती के महल में ले जाती है। रानी अपनी
माया से भोपा में भाव डाल देती है जिससे भोपा रावजी के पास आकर कहता है कि मैं
रानी जी को ठीक कर सकता हूँ। भोपा ने बताया कि रानी जयमती ने भैरुजी से अपने लिए
राजा जैसा वर मांगा था। उन्होनें राजा जैसा वर तो पा लिया मगर भैरुजी की जात अभी
तक नहीं जिमाई। इसलिये भैरुजी का दोष लग गया। जात जिमाणी पड़ेगी। नीमदेवजी हीरा से
पूछते हैं कि जात जिमाने में क्या लगेगा? हीरा बताती है की 12 मन का पूवा, 12 मणकी पापड़ी, 12मण का सुवर जिसके
बाल खड़े नहीं होवे, खून निकले हुआ नहीं
हो, को बाईसा पर वारकर
छोड़ो तो बाईसा बचे, नहीं तो नहीं बचेगी।
और यह टोटका रावजी के हाथ का ही लगेगा और किसी के हाथ का सूअर नहीं चढ़ेगा। और ये
बात सुनते ही रावजी सूअर का शिकार करने के लिये अपनी सेना तैयार करने का हुकम देते
हैं। उसमें सभी उमराव दियाजी, कालूमीर, सावर के उमराव और
रावजी के खासम खास सरदार और 500 घुड़ सवार तैयार हुए। इतने में दियाजी ने कहा रावजी
मेहलो में पहरा अच्छा लगाना क्योकि 24 बगड़ावत भाई नौलखा बाग में डटे हुए है। वो
कहीं रानी सा को उठा कर न ले जाये। रावजी कहते है वो तो मेरे भाई हैं और उन्होनें
ही मेरी शादी करवाई और पैसा भी उन्होने ही खर्च किया। वो ऐसा नहीं कर सकते। फिर भी
रावजी शिकार पर जाने से पहले नीमदेवजी को पहरे की जिम्मेदारी सोंप कर जाते हैं।
उधर रानी जयमती अपने पसीने से एक सूअर बनाती है। उसका वजन 12 मण होता है। और
अपनी माया से उसे रावजी के आगे छोड़कर कहा की हे सुवरड़ा राजाजी को नाग पहाड़ से भी
आगे दौड़ाता हुआ ले जाना और 4 दिनो तक वापस आने का
अवसर मत देना। इस तरह रावजी सुवर के पीछे-पीछे नाग पहाड़ से आगे निकल जाते हैं। नाग पहाड़ पहुंच कर वह माया से बना सूअर
गायब हो जाता है।
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बगड़ावत देवनारायण फड़