उठो नाथ अब आंखे खोलो
बर्तन मांजो कपड़े धोलो
झाड़ू लेकर फर्श बुहारो
और किचेन में पोछा मारो
अलसाओ न, आंखें मूंदो
सब्ज़ी काटो, आटा गूथो
तनिक काम से तुम न हारो
घी डालकर दाल बघारो
गमलों में तुम पानी डालो
छत टंकी से गाद निकालो
देखो हमसे खेल न खेलो
छोड़ मोबाइल रोटी बेल
बिस्तर सारे , धूप में डालो🛌
ख़ाली हो अब काम संभालो
नहीं चलेगी अब मनमानी
याद दिला दूंगी अब नानी
ये, आईं है, अजब बीमारी
सब पतियों पे विपदा भारी
नाथ अब शरणागत ले लो
कुछ भी हो ये आफत ले लो।
इति
लेखक--दर्द का मारा एक पति...