बहुत प्राचीन समय
की बात है। किसी गाँव में एक बुर्जुग महात्मा रहते थे। दूर-दूर से लोग शिक्षा गृहण
करने के उद्देश्य से अपने बच्चों को उनके आश्रम में भेजते थे। एक दिन महात्मा जी
के पास कमल नाम का एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति आया। ‘गुरु जी मुझे अपने श्रीचरणों में जगह दे दीजिए। अब मेरी कोई
कामना बाकी नहीं रही है। मैं आश्रम में रहकर आपके आज्ञानुसार समाज को अभी तक
प्राप्त किया हुआ ज्ञान वितरित करना चाहता हूँ।’
पारखी वृद्ध
महात्मा ने एकदम समझ लिया कि यह व्यक्ति काबिल है, इसकी कामना सच्ची है और यह समाज के प्रति अपने दायित्व को
निभाने के लिए कृतसंकल्पित है। कमल उनके चरणों में गिरकर प्रार्थना किये जा रहा
था-गुरु जी! मुझे अपने श्रीचरणों में स्थान दें। महात्मा जी ने कहा-‘पुत्र! आश्रम की परम्परा है कि तुम स्नान करके पवित्र हो और
भगवान के आगे संकल्प धारण करो कि अपना कृतव्य सही तरीके से निभाओगे। अतः इस कार्य
के लिए तुम कल प्रातः स्नान करके आश्रम आ जाना।’
उसके जाते ही
वृद्ध महात्मा जी ने साफ-सफाई का कार्य करने वाली महिला को अपने पास बुलाया। ‘कल सुबह यह नया शिक्षक आयेगा। जैसे ही यह आश्रम के नजदीक
आये, तुम इस प्रकार से झाड़ू
लगाना कि उसके चेहरे पर धूल गिर जाए। लेकिन यह कार्य थोड़ा सावधानी से करना। वह तुम
पर हाथ भी छोड़ सकता है।’
महिला महात्मा जी
की बहुत सम्मान करती थी। उसने उनकी आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया। अति प्रसन्न
मुद्रा में कमल नहा-धोकर इठलाता हुआ आश्रम आने लगा। जैसे ही वह नजदीक पहुँचा, महिला ने तेजी से झाड़ू लगाना शुरू कर दिया। बेचारे का पूरा
चेहरा धूल से सन गया। उसके क्रोध की सीमा न रही। पास पड़े पत्थर को उठाकर वह महिला
को मारने के लिए दौड़ा। महिला पहले ही सावधान थी। वह झाड़ू फैंक-फांक के वहाँ से भाग
खड़ी हुई। अधेड़ के मुख में जो आया बकता चला गया।
कमल वापिस घर गया
और दुबारा स्नान करके महात्मा के पास लौटा। महात्मा जी ने कहा-‘अभी तो तुम जानवरों के समान लडने के लिए दौड़ते-चिल्लाते हो।
तुमसे अभी यहाँ शिक्षण कार्य नहीं होगा। तुम एक वर्ष के बाद आना तब तक जो कार्य
करते हो वही करते रहो।’ कमल की इच्छा सच्ची थी।
उसकी महात्मा में श्रद्धा भी सच्ची थी। वर्ष पूरा होते ही वह फिर महात्मा जी के
समीप उपस्थित हुआ।
‘पुत्र तुम कल स्नान करके
प्रातः आना।’-महात्मा जी ने आदेश दिया।
कमल के जाते ही महात्मा जी ने सफाई कर्मचारी को बुला कर कहा-‘वह फिर आ रहा है। इस बार मार्ग में झाड़ू इस तरह से लगाना कि
धूल के साथ-साथ उस पर झाड़ू की हल्की सी चोट भी लग जाए। डरना मत, वह तुम्हें मारेगा नहीं। कुछ भी बोले तो चुपचाप सुनते रहना।’ अगले दिन स्नान-ध्यान करके वह व्यक्ति जैसे ही द्वार तक
पहुंचा। महिला झाड़ू लगाते हुए पहुंच गयी। महिला ने आदेशानुसार जानबूझ झाड़ू उस पर
इस प्रकार से छुआ कि कपड़े भी गंदे हो गये।
कमल को बहुत
क्रोध आया, पर झगड़ने की बात उसके मन
में नहीं आयी। वह केवल महिला को गालियाँ बक कर फिर स्नान करने घर लौट गया। जब वह
महात्मा जी के पास वापिस पहुंचा, संत ने कहा-‘तुम्हारी काबिलियत में मुझे संदेह है। एक वर्ष के बाद यहाँ
आना।’ एक वर्ष और बीत गया। कमल
महात्मा जी के पास आया। उसे पूर्व के भांति स्नान-ध्यान करके आने की आज्ञा मिली।
महात्मा जी ने
उसके जाते ही उसी महिला को फिर बुलाया-‘इस बार सुबह जब वह आये तो
तुम इस बार अपनी कचड़े की टोकरी उस पर उड़ेल देना।’ साफ-सफाई करने वाली महिला डर गयी। ‘वह तो अति कठोर स्वभाव का है। ऐसा करने पर तो वह अत्यंत
क्रोधित होगा और मार-पीट पर उतर जायेगा।’-महिला ने कहा।
महात्मा जी ने उसे आश्वासन दिया-‘चिन्ता मत करो। इस बार वह
कुछ नहीं कहेगा। इसलिए तुम्हें भागने की आवश्यकता नहीं है।’
सुबह जैसे ही कमल
आश्रम पहुँचा। महिला ने अनजान बनकर पूरा कूड़ा-कचरा उस पर उड़ेल दिया। पर यह क्या!
इस बार न तो वह गुस्सा हुआ और न ही मार-पीट के लिए दौड़ा। ‘माता! आप मेरी गुरु हैं। ’-कमल ने महिला के सामने अपना मस्तक झुका कर कहा। ‘आपने मुझ मूर्ख-अभिमानी पर अति कृपा की है। आपके सहयोग से
मैंने अपने बड़प्पन के अहंकार और क्रोध-रूपी शत्रु पर विजय प्राप्त की है।’
वह दुबारा घर
गया। स्नान करके आश्रम में उपस्थित हुआ। इस बार महात्मा जी ने उसे गले लगा लिया और
बोले-‘पुत्र! तुमने अपने क्रोध
पर काबू पा लिया है अतः अब तुम आश्रम में कार्य करने के सच्चे अधिकारी हो।’