google.com, pub-9828067445459277, DIRECT, f08c47fec0942fa0 बगडावत कथा -20

बगडावत कथा -20


बगडावत कथा -20


साडू माता सोचती है कि रोज कोई न कोई यहां आता हैकहीं रावजी सेना भेजकर बच्चे को भी न मरवा दे। यह सोचकर वह गोठां छोड़ कर मालवा जाने की तैयारी करती है। और दूसरे ही दिन साडू माता अपने विश्वासपात्र भील को बुलवाती है। बच्चे का जलवा पूजन करने के पश्चात साडू माता बालक देवनारायणभीलहीरा दासी,नापा ग्वाल और अपनी गायें साथ लेकर गोठां छोड़ मालवा की ओर निकल पड़ती है। साडू माता और हीरा अपने-अपने घोड़े काली घोड़ी और नीलागर घोड़े पर सवार हो बच्चे का पालना भील के सिर पर और नापा ग्वाल गायें लेकर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर निकल पड़ते हैं। रास्ते में भील एक गोयली को देखता है तो बालक देवनारायण को वहीं एक खोल में रख कर गोयली का शिकार करने उसके पीछे भाग जाता है। उधर साडू माता और हीरा काफी आगे निकल जाते हैं। रास्ते में एक जगह एक शिकारी हिरनी का शिकार कर रहा होता है। हिरनी के साथ उसके बच्चे होते हैं। हिरनी अपने बच्चों को बचाए हुए दौड़ रही होती है। ये देख कर साडू हीरा से कहती है कि देख हीरा ये हिरनी अपने बच्चों को बचाने के लिये अपनी जान जोखिम में डाल रही है। शिकारी का तीर अगर इसे लग जायेगा तो ये मर जायेगी। ये बात हिरनी सुन लेती है और कहती है कि मैनें इसे जन्म दिया हैइसे झोलियां नहीं खिलाया है। इसलिए मैं अपनी जान देकर भी इसकी जान बच हिरनी की बात सुनकर साडू को अपने बच्चे की याद आती है और उसे ढूंढती हुई वो वापस पीछे की ओर आती है। वापस आकर साडू माता देखती हैं कि बच्चे का पालना एक पेड़ के नीचे खोल में पड़ा हुआ है और एक शेरनी उसके ऊपर खड़ी देवनारायाण को दूध पिला रही है। साडू माता यह देख अपना तीर कमान सम्हाल कर शेरनी पर निशाना साधती है। शेरनी कहती है साडू माता रुक जातीर मत चलाना। मैं इसे दूध पिलाकर चली जाउंगी इस बच्चे को भूख लगी हैइसके रोने की आवाज सुनकर मैं आयी हूं। इससे पहले मैं इसे ६ बार दूध पिला चुकीं हूं। यह सातवीं बार दूध पिला रही हूं। यह बात सुनकर साडू माता चौंक जाती है और पूछती है कि इससे पहले कब-कब दूध पिलाया। तो शेरनी उसे पिछले जन्मों की सारी बात बताती है। वहीं से साडू माता अपने बच्चे के साथ-साथ चलती है। चलते-चलते वो माण्डल पहुंचते हैंजहां थोड़ी देर विश्राम करते हैं। यहां बगड़ावतों के पूर्वज माण्डल जी ने जल समाधी ली थी वहां उनकी याद में एक मीनार बनी हुई है जिसे माण्डल के मन्दारे के नाम से जाना जाता हैं। माण्डल से आगे चलकर रास्ते में मंगरोप गांव में सब लोग विश्राम करते हैं। वहां साडू माता और हीरा दासी बिलोवणा बिलोती है। वहां बची हुई छाछ गिरा देती है। कहा जाता है मंगरोप में बची हुई छाछ से बनी खड़ीया की खान आज भी है। मंगरोप से रवाना होकर दो दिन बाद सब लोग मालवा पहुंचते हैं। साडू माता अपने पीहर में पहुंचकर सबसे गले मिलती है। मालवा के राजा साडू माता के पिताजी थे। मालवा में ही रहकर देवनारायण छोटे से बड़े हुए थे। वह बचपन में कई शरारते करते थेअपने साथियो के साथ पनिहारिनों के मटके फोड़ देते थे। जब गांव वाले राजाजी को शिकायत करने आते और कहते कि आपका दोयता रोज-रोज हमारी औरतों की मट्की फोड़ देता हैरोज-रोज नया मटका कहां से लायेतो राजाजी ने कहा कि सभी पीतल,ताम्बे का कलसा बनवा लो और खजाने से रुपया ले लो। देवनारायण वहां के ग्वालों के साथ जंगल में बकरियां और गायें चराने जाते थे और अपनी बाल क्रिड़ाओं से सब को सताया करते थे। देवनारायण के मामा ने उनको कह रखा था कि जंगल में सिंधबड़ की तरफ कभी मत जाना वहां चौसठ जोगणियां और बावन भैरु रहते हैतुम्हे खा जायेगें। एक दिन देवनारायण जंगल में बकरियां चराने जाते हैं अपने साथियों को तो बहाना बना कर गांव वापस भेज देते हैं और खुद बकरियों को लेकर सिंध बड़ की ओर चले जाते हैं। सिंध बड़ पहुंचकर सभी जोगणियों को और बावन भैरु को पेड़ पर से उतार कर कहते हैं कि मैं यहां सो रहा हूंतुम सब मेरी बकरियों को चराओ। मेरे जागने पर एक भी बकरी कम पड़ी तो मैं तुम्हारी आंतों में से निकाल लूंगा और देवनारायण कम्बल ओढ कर वहीं सिंध बड़ के नीचे सो जाते हैं। दो पहर सोने के बाद उठते हैं और सब को आवाज देकर बुलाते हैं। जोगणियां और भैरु नारायण के पांव पड़ जाते हैं और कहते है भगवान आज तो हम भूखे मर गये। नारायण पूछते हैं कि तुम यहां क्या खाते होअपना पेट कैसे भरते हो भैरु कहते है कि उड़ते हुए परिंदों को पकड़ कर खाते हैं। आज तो पूरा दिन आपकी बकरियां चराने में रह गये।नारायण कहते है मेरी एक बकरी को छोड़कर तुम सब बकरियों को खा जाओं। देवनारायण अपनी बकरी को गोद में उठाकर वापस आ जाते हैं। मामा पूछते है की नारायण बाकि सब बकरियां कहां है। नारायण कहते हैं मैं रास्ता भूल गया और सिंध बड़ पहुंच गया। वहां देखता हूं की बड़ के पेड़ से काले-काले भूत निकलकर सारी बकरियों को खा गऐमैं अपनी बकरी को लेकर भाग के आ गया।मामा कहते हैं तू वहां से जीवित वापस कैसे आ गयातेरे को किसी भूत ने नहीं पकड़ा मामाजी सोचते हैं ये जरुर कोई अवतार है। वह साडू माता से देवनारायण के बारे में पूछते हैं। साडू माता उन्हें सब सच बताती है। मामाजी देवनारायण के लिए चन्दन का आसन बनवाते हैं और दूधिया नीम के नीचे देवनारायण को बिठाकर उनकी पूजा करते हैं। गांव के सभी लोग उनके दर्शनों को आते हैं और देवनारायण लूले-लगड़ेकोढ़ी मनुष्यों को ठीक कर उनका कोढ़ झाड़ देते हैं। इस प्रकार से देवनारायण अपने मामा के यहां मालवा में बड़े होते हैं।


Previous Post Next Post