बगडावत कथा -19
इधर सभी बगड़ावतों का नाश हो जाने पर साडू माता हीरा दासी सहित
मालासेरी की डूंगरी पर रह रही होती है। एक दिन अचानक वहाँ पर नापा ग्वाल आता है और
सा माता को ७ बीसी राजकुमारों के भी मारे जाने का समाचार देता है और कहता है कि
साडू माता यहां से मालवा अपने पीहर वापस चलो। कहीं राजा रावजी यहां पर चढ़ाई ना कर
दे। लेकिन सा माता जाने से मना कर देती है। जब एक दिन साडू माता की काली घोड़ी के
नीला बछेरा पैदा होता हैं, तब साडू माता को भगवान की कही बात याद आती है कि काली घोड़ी के एक
बछेरा होगा वो नीलागर घोड़ा होगा उसके बाद मैं अवतार लूंगा साडू माता भगवान के कहे
अनुसार सुबह ब्रह्म मुहर्त में स्नान ध्यान कर भगवान का स्मरण करती है। वहीं
मालासेरी की डूंगरी पर पहाड़ टूटता है और उसमें से पानी फूटता है, जल की धार बहती हुई
निकलती है, पानी में कमल के फूल खिलते हैं, उन्हीं फूलों में से एक फूल में भगवान विष्णु देवनारायण के रुप में
अवतरित होते हैं। माघ शुक्ला ७ सातय के दिन सम्वत ९६८ सुबह ब्रह्म मुहर्त में
भगवान देवनारायण मालासेरी की डूंगरी पर अवतार (जन्म) लेते हैं। देवनारायण के टाबर (बालक) रुप को साडू माता अपने गोद में लेती है, उन्हें दूध पिलाती हैं
और उन्हें लाड करती हैं। वहां से साडू माता हीरा दासी और नापा ग्वाल गोठां आते
हैं। गांव में आते ही घर-घर में घी के दिये जल जाते हैं और सुबह जब गांव भर में बालक के
जन्म लेने की खबर होती है, नाई आता हैं घर-घर में बन्धनवाल बांधी जाती हैं। भगवान के जन्म लेने से घर-घर में खुशी ही खुशी हो
जाती हैं। साडू माता ब्राह्मण को बुलवाती है बच्चे का नामकरण संस्कार होता है। भगवान ने कमल के
फूल में अवतार लिया है, इसलिए ब्राह्मण उनका नाम देवनारायण रखते हैं। साडू माता ब्राह्मण
को सोने की मोहरे, कपड़े देती है, भोजन कराती है, मंगल गीत गाये जाते हैं। सूर्य पूजन का काम होने के बाद गांव की
सभी महिलाएं साडू माता को बधाई देने आती हैं। गांव भर में लोगों का मुंह मीठा
कराया जाता है कि साडू माता की झोली में नारायण ने अवतार लिया है।उधर रावजी के
महलो में अपशगुन होने लगते हैं। रावजी को सपने आने लगते हैं कि तेरा बैर लेने के
लिये साडू माता की झोली में नारायण ने जन्म लिया है। वही तेरा सर्वनाश करेगें।
रावजी सपना देखकर घबरा जाते हैं, और गांव-गांव दूतियां (डायन) का पता करवाते और बुलवाते हैं। और कहते हैं कि गोठां गांव में एक
टाबर (बालक) ने जन्म लिया है उसे
खत्म करके आना है। डायने राण से गोठां में आ जाती है और लम्बे-लम्बे घूघंट निकाल कर घर
में घुसती है। देखती है साडू माता भगवान के ध्यान में लगी हुई हैं। और दो डायन
अन्दर आकर देखती है झूले में (पालकी) एक टाबर अपने पांव का अंगुठा मुंह में लेकर खेल रहा है। उसके मुंह
में से अगुंठा निकाल अपनी गोद में लेकर जहर लगा अपना स्थन देवनारायण के मुंह में दे देती हैं। नारायण उसका स्तन
जोर से अपने दांतों से दबा देते हैं, जिससे उसके प्राण निकल जाते हैं।यह देख दूसरी डायनें वहां से भाग
कर राण में वापस आ जाती हैं। रावजी फिर ब्राह्मणों को बुलाते हैं और कहते हैं कि
गोठां जाकर वहां साडू माता के यहां एक टाबर हुआ है उसे मारना है। यदि तुम उसे मार
दोगे तो मैं तुम्हें आधा राज बक्शीस में दूंगा। ब्राह्मण सोचते हैं कि टाबर को
मारने में क्या है, उसे तो हम मिनटों में ही मार आयेगें। गोठां में आकर ब्राह्मण साडू
माता को कहते हैं की आपके यहां टाबर ने जन्म लिया है, उसका नाम करण संस्कार
करने आऐ हैं। साडू माता साधुओं का सत्कार करती है और कहती है कि आटा दाल से आप
अपने लिये अपने हाथों से रसोई बनाओं और भोजन करों। ब्राह्मण कहते हैं कि साडू माता
आप सवा कोस दूर रतन बावड़ी से कच्चे घड़े में पानी भर लाओ तब हम रसोई बनाकर भोजन
करेगें। साडू माता मिट्टी का घड़ा लेकर पानी लेने चली जाती है। पीछे से ब्राह्मण घर
में इधर-उधर ढूंढते हैं। उनमें से एक ब्राह्मण को एक पालने में टाबर
देवनारायण सोये हुए दिखते हैं। जहां शेषनाग उनके ऊपर छतर बन बैठा हुआ है और चारों
और बिच्छु ही बिच्छु घूम रहे हैं। यह देख ब्राह्मण सोचता है बालक में दूध की
खुश्बू से सांप और बिच्छु आ गये हैं और उसे मार दिया है। देवनारायण को मरा हुआ
जानकर वह बाकि तीनों ब्राह्मणों को उस कमरे में बुलाता है तो भगवान विष्णु की माया
से सारे ब्राह्मणों को पालने में देवनारायण के अलग-अलग रुप दिखाई देते हैं। उनमें से एक को तो पालना खाली दिखाई देता
हैं। अपनी-अपनी बात सच साबित करने के लिए ब्राह्मण आपस में ही लड़ पड़ते हैं।
ब्राह्मण लड ही रहे होते हैं कि इतने में साडू माता पानी लेकर आ जाती है और
ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देती है। ५ सोने की मोहरे देती है। चारों ब्राह्मण वहां से बाहर आकर पांचवीं
सोने की मोहर को बांटने के लिए लड़ने लग जाते हैं, एक दूसरे की चोटियां पकड़ कर गुत्थम-गुत्था करने लग जाते हैं। साडू माता यह देखकर सोचतीं हैं कि इन्हें
तो लगता है रावजी ने भेजा है और अन्दर जाकर अपने बच्चे को सम्भालती है।
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देवनारायण कथा