RBSE /BSER CLASS – 12
हिन्दी
अनिवार्य संवाद
सेतु महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.समाचार लेखन के लिए छः
ककार क्या हैं और ये क्यों आवश्यक हैं?
उत्तर:समाचार लेखन के लिए छ: सूचनाओं का प्रयोग किया जाता है। ये छ: सूचनाएँ-क्या हुआ, कब हुआ, किसके (कौन) साथ हुआ, कहाँ हुआ, क्यों और कैसे हुआ प्रश्नों के उत्तर में प्राप्त होती हैं। यही छ: ककार कहलाती हैं। इनमें से प्रथम चार ककार (क्या, कब, कौन, कहाँ) सूचनात्मक व अन्तिम दो ककारे (क्यों, कैसे) विवरणात्मक होते हैं। समाचार को प्रभावी एवं पूर्ण बनाने के लिए ही इन छ: ककारों का प्रयोग किया जाता है। प्रथम चार ककार समाचार का इण्ट्रो (मुखड़ा) व अन्तिम दो ककार बॉडी व समापन को निर्माण करते हैं।
उत्तर:समाचार लेखन के लिए छ: सूचनाओं का प्रयोग किया जाता है। ये छ: सूचनाएँ-क्या हुआ, कब हुआ, किसके (कौन) साथ हुआ, कहाँ हुआ, क्यों और कैसे हुआ प्रश्नों के उत्तर में प्राप्त होती हैं। यही छ: ककार कहलाती हैं। इनमें से प्रथम चार ककार (क्या, कब, कौन, कहाँ) सूचनात्मक व अन्तिम दो ककारे (क्यों, कैसे) विवरणात्मक होते हैं। समाचार को प्रभावी एवं पूर्ण बनाने के लिए ही इन छ: ककारों का प्रयोग किया जाता है। प्रथम चार ककार समाचार का इण्ट्रो (मुखड़ा) व अन्तिम दो ककार बॉडी व समापन को निर्माण करते हैं।
प्रश्न 2.फिल्म में पटकथा क्या
होती है?
उत्तर:पटकथा शब्द का निर्माण दो शब्दों ‘पट’ व ‘कथा’ से हुआ है। ‘पट’ का अर्थ है-पर्दा व ‘कथा’ का अर्थ है-कहानी। अत: पटकथा का अर्थ हुआ पर्दे पर दिखाई जाने वाली कहानी। कहानी, जिसे आधार बनाकर फिल्म के प्रत्येक दृश्य का निर्माण होता है। संवाद तैयार किए जाते हैं और अन्तिम रूप से फिल्म का निर्माण किया जाता है, को ही पटकथा कहा जाता है।
उत्तर:पटकथा शब्द का निर्माण दो शब्दों ‘पट’ व ‘कथा’ से हुआ है। ‘पट’ का अर्थ है-पर्दा व ‘कथा’ का अर्थ है-कहानी। अत: पटकथा का अर्थ हुआ पर्दे पर दिखाई जाने वाली कहानी। कहानी, जिसे आधार बनाकर फिल्म के प्रत्येक दृश्य का निर्माण होता है। संवाद तैयार किए जाते हैं और अन्तिम रूप से फिल्म का निर्माण किया जाता है, को ही पटकथा कहा जाता है।
प्रश्न 3.उल्टा पिरामिड शैली
क्या है?
उत्तर:उल्टा पिरामिड शैली समाचार लेखन की सर्व प्रचलित शैली है, जो कथात्मक शैली के विपरीत क्रम की शैली है। इस शैली में सबसे महत्त्वपूर्ण सूचना पहले व कम महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ बाद में प्रस्तुत की जाती हैं। कथात्मक शैली में महत्त्वपूर्ण तथ्य (क्लाइमेक्स) मध्य या अन्त से पूर्व रखे जाते हैं जबकि उल्टा पिरामड शैली में प्रारम्भ ही चरमोत्कर्ष होता है। इस शैली में लिखित समाचार के तीन भाग होते हैं-इण्ट्रो (मुखड़ा), बॉडी व समापन।
उत्तर:उल्टा पिरामिड शैली समाचार लेखन की सर्व प्रचलित शैली है, जो कथात्मक शैली के विपरीत क्रम की शैली है। इस शैली में सबसे महत्त्वपूर्ण सूचना पहले व कम महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ बाद में प्रस्तुत की जाती हैं। कथात्मक शैली में महत्त्वपूर्ण तथ्य (क्लाइमेक्स) मध्य या अन्त से पूर्व रखे जाते हैं जबकि उल्टा पिरामड शैली में प्रारम्भ ही चरमोत्कर्ष होता है। इस शैली में लिखित समाचार के तीन भाग होते हैं-इण्ट्रो (मुखड़ा), बॉडी व समापन।
प्रश्न 4.इण्ट्रो, बॉडी व समापन क्या हैं?
उत्तर:उल्टा पिरामिड शैली में लिखित समाचार के तीन भाग होते हैं-इण्ट्रो, बॉडी व समापन।
उत्तर:उल्टा पिरामिड शैली में लिखित समाचार के तीन भाग होते हैं-इण्ट्रो, बॉडी व समापन।
इण्ट्रो समाचार का
प्रारम्भिक भाग होता है जो चार-पाँच पंक्तियों का होता है। यह भाग सर्वाधिक
महत्त्वपूर्ण एवं सूचनात्मक होता है, जिसमें क्या, कहाँ, कब, कौन सी सूचनाएँ
निहित रहती हैं। इण्ट्रो के तुरन्त बाद का भाग बॉडी कहलाता है, जो विवरणात्मक होता
है। इस भाग में क्यों व कैसे से सम्बन्धित सूचनाएँ रहती हैं। समापन भाग में उद्धरण
व स्रोत की सूचना होती है।
प्रश्न 5.स्टोरी क्या है?
उत्तर:मीडिया की भाषा में खबर को ‘स्टोरी’ कहा जाता है। ‘स्टोरी’ से तात्पर्य कोई साहित्यिक कहानी से नहीं होता बल्कि बड़ी या विस्तारपूर्वक लिखी जाने वाली खबरें ही ‘स्टोरी’ कहलाती हैं। साप्ताहिक समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में समाचार कथा शब्द का प्रयोग किया जाता है समाचार-पत्र के प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाली विस्तृत खबर कवर स्टोरी कहलाती है। मीडिया कार्यालयों में रोजाना होने वाली न्यूज बैठकों में संपादक रिपोर्टर्स की जब रोज की रिपोर्टिंग का काम देते हैं तो यही कहते हैं कि रिपार्टर्स अपनी स्टोरीज परिश्रम से ही लिखें।
उत्तर:मीडिया की भाषा में खबर को ‘स्टोरी’ कहा जाता है। ‘स्टोरी’ से तात्पर्य कोई साहित्यिक कहानी से नहीं होता बल्कि बड़ी या विस्तारपूर्वक लिखी जाने वाली खबरें ही ‘स्टोरी’ कहलाती हैं। साप्ताहिक समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में समाचार कथा शब्द का प्रयोग किया जाता है समाचार-पत्र के प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाली विस्तृत खबर कवर स्टोरी कहलाती है। मीडिया कार्यालयों में रोजाना होने वाली न्यूज बैठकों में संपादक रिपोर्टर्स की जब रोज की रिपोर्टिंग का काम देते हैं तो यही कहते हैं कि रिपार्टर्स अपनी स्टोरीज परिश्रम से ही लिखें।
प्रश्न 6.हार्ड न्यूज व सॉफ्ट
न्यूज से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:समाचार-पत्रों में विविध प्रकार की खबरें प्रकाशित होती हैं। सामान्यत: दुर्घटना, अपराध, आदि से सम्बन्धित खबरें, रोजमर्रा के घटनाक्रम, दुर्घटनाओं और अपराध से सम्बन्धित खबरें हार्ड न्यूज कहलाती हैं तथा मानवीय रुचि व मानवीय संवेदनाओं से जुड़ी खबरें सॉफ्ट न्यूज कहलाती हैं।
उत्तर:समाचार-पत्रों में विविध प्रकार की खबरें प्रकाशित होती हैं। सामान्यत: दुर्घटना, अपराध, आदि से सम्बन्धित खबरें, रोजमर्रा के घटनाक्रम, दुर्घटनाओं और अपराध से सम्बन्धित खबरें हार्ड न्यूज कहलाती हैं तथा मानवीय रुचि व मानवीय संवेदनाओं से जुड़ी खबरें सॉफ्ट न्यूज कहलाती हैं।
प्रश्न 7.टी वी समाचार के लिए
क्या आवश्यक है? इसमें किन विशेष विषयों पर विशेष वुलेटिन
तैयार किए जाते हैं?
उत्तर:टीवी समाचार तथ्यों पर आधारित होने चाहिए। इनमें स्पष्टता होना अत्यंत आवश्यक है। उसके अभाव में दर्शक भ्रमित हो जायेंगे। टी वी समाचार संक्षिप्त भी होने चाहिए तथा इसमें भाषा का प्रवाह तथा ऑडियो विजुअल में साम्य भी होना चाहिए। टी वी में विशेष विषयों पर केन्द्रित विशेष बुलेटिन भी तैयार किए जाते हैं जैसे क्राइम से जुड़ी खबरों के लिए क्राइम बुलेटिन, खेल की खबरों के लिए स्पोर्ट्स बुलेटिन तथा चुनाव का खबरों को दर्शाने के लिए चुनाव बुलेटिन।
उत्तर:टीवी समाचार तथ्यों पर आधारित होने चाहिए। इनमें स्पष्टता होना अत्यंत आवश्यक है। उसके अभाव में दर्शक भ्रमित हो जायेंगे। टी वी समाचार संक्षिप्त भी होने चाहिए तथा इसमें भाषा का प्रवाह तथा ऑडियो विजुअल में साम्य भी होना चाहिए। टी वी में विशेष विषयों पर केन्द्रित विशेष बुलेटिन भी तैयार किए जाते हैं जैसे क्राइम से जुड़ी खबरों के लिए क्राइम बुलेटिन, खेल की खबरों के लिए स्पोर्ट्स बुलेटिन तथा चुनाव का खबरों को दर्शाने के लिए चुनाव बुलेटिन।
प्रश्न 8.वर्तमान युग में
इंटरनेट की उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:वर्तमान युग में इंटरनेट के महत्व से कौन अपरिचित है। आज यह लेखन अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त तथा सर्वव्यापी माध्यम बन चुका है। आज के 10 साल पूर्व जो भी रचनात्मक लेखन होता उसके प्रकाशन के लिए समाचार पत्र या पत्रिकाओं पर ही निर्भर रहना पड़ता था। पर आज इंटरनेट ने चमत्कारी रूप से इस समस्या का निराकरण कर दिया है। यदि कोई व्यक्ति कविता, कहानी, लेख या फीचर लिखने में सक्षम है तो इसे टाइप कर इंटरनेट के माध्यम से अपने ब्लाग पर या सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अपने अकाउंट पर पोस्ट कर सकता है। पलक झपकते ही इस सामग्री को संसार के किसी भी कोने में बैठा व्यक्ति पढ़ सकता है। आज के युग में इंटरनेट सबसे सस्ती और विश्वव्यापी संचार प्रणाली बन गया है। अब तो 4 जी कनेक्टिविटी ने इसकी गति को दस गुना अधिक कर दिया है।
उत्तर:वर्तमान युग में इंटरनेट के महत्व से कौन अपरिचित है। आज यह लेखन अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त तथा सर्वव्यापी माध्यम बन चुका है। आज के 10 साल पूर्व जो भी रचनात्मक लेखन होता उसके प्रकाशन के लिए समाचार पत्र या पत्रिकाओं पर ही निर्भर रहना पड़ता था। पर आज इंटरनेट ने चमत्कारी रूप से इस समस्या का निराकरण कर दिया है। यदि कोई व्यक्ति कविता, कहानी, लेख या फीचर लिखने में सक्षम है तो इसे टाइप कर इंटरनेट के माध्यम से अपने ब्लाग पर या सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर अपने अकाउंट पर पोस्ट कर सकता है। पलक झपकते ही इस सामग्री को संसार के किसी भी कोने में बैठा व्यक्ति पढ़ सकता है। आज के युग में इंटरनेट सबसे सस्ती और विश्वव्यापी संचार प्रणाली बन गया है। अब तो 4 जी कनेक्टिविटी ने इसकी गति को दस गुना अधिक कर दिया है।
प्रश्न 9.इण्टरनेट पत्रकारिता के
विकास पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:संचार के अत्याधुनिक माध्यम के रूप में इण्टरनेट की उपयोगिता आज सर्वविदित है। इण्टरनेट पत्रकारिता को ऑनलाइन पत्रकारिता, साइबर पत्रकारिता, वेब पत्रकारिता आदि नामों से जाना जाता है। भारत में इंटरनेट पत्रिका का प्रारंभ 1993 से माना जाता है। ‘रीडिफ डॉट कॉम’ भारत की पहली साइट मानी जाती है परन्तु-विशुद्ध वेब पत्रकारिता का प्रारम्भ ‘तहलका डॉट कॉम’ ने किया। वर्तमान समय में इण्टरनेट की गति के विकास के साथ साइबर पत्रकारिता का भी तीव्र गति से विकास हो रहा है। आज के दौर में लगभग सभी समाचार पत्रे, पत्रिकाएँ अपने ई-संस्करण प्रकाशित करते हैं। ई-संस्करण के जरिए पाठक विश्व के किसी भी कोने से सम्बन्धित समाचारों को पढ़ सकता है। वेब-पत्रकारिता के प्रारम्भिक दौर में मानक की-बोर्ड व फांट की समस्या रही, परन्तु वर्तमान में मंगल यूनिकोड फांट के विकास के कारण यह समस्या नहीं रही। विविध विषयों पर लेख आज इन्टरनेट पत्रकारिता का अंग बन चुके हैं। समाचारों के साथ-साथ साहित्यिक लेखन भी किया जा रहा है।
उत्तर:संचार के अत्याधुनिक माध्यम के रूप में इण्टरनेट की उपयोगिता आज सर्वविदित है। इण्टरनेट पत्रकारिता को ऑनलाइन पत्रकारिता, साइबर पत्रकारिता, वेब पत्रकारिता आदि नामों से जाना जाता है। भारत में इंटरनेट पत्रिका का प्रारंभ 1993 से माना जाता है। ‘रीडिफ डॉट कॉम’ भारत की पहली साइट मानी जाती है परन्तु-विशुद्ध वेब पत्रकारिता का प्रारम्भ ‘तहलका डॉट कॉम’ ने किया। वर्तमान समय में इण्टरनेट की गति के विकास के साथ साइबर पत्रकारिता का भी तीव्र गति से विकास हो रहा है। आज के दौर में लगभग सभी समाचार पत्रे, पत्रिकाएँ अपने ई-संस्करण प्रकाशित करते हैं। ई-संस्करण के जरिए पाठक विश्व के किसी भी कोने से सम्बन्धित समाचारों को पढ़ सकता है। वेब-पत्रकारिता के प्रारम्भिक दौर में मानक की-बोर्ड व फांट की समस्या रही, परन्तु वर्तमान में मंगल यूनिकोड फांट के विकास के कारण यह समस्या नहीं रही। विविध विषयों पर लेख आज इन्टरनेट पत्रकारिता का अंग बन चुके हैं। समाचारों के साथ-साथ साहित्यिक लेखन भी किया जा रहा है।
तकनीक के आधुनिक
युग में वैश्विक स्तर की पहुँच के कारण साइबर-पत्रकारिता के विकास की असीमित
संभावनाएँ हैं।
प्रश्न 10.संचार माध्यमों के
विभिन्न रूपों का नामोल्लेख करते हुए मुद्रित माध्यम पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:संचार माध्यमों को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-
उत्तर:संचार माध्यमों को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-
1.
मुद्रित माध्यम
2.
इलेक्ट्रॉनिक
माध्यम
3.
नव माध्यमे।
मुद्रित माध्यम के
अन्तर्गत समाचार-पत्र,
पत्रिकाएँ आदि आते हैं। मुद्रित
माध्यम मुख्य तौर पर साक्षर वर्ग के लिए उपयोगी है। दैनिक समाचार-पत्र के रूप में
इस माध्यम ने लगभग प्रत्येक घर तक अपनी पहुँच बनाई है। देश-विदेश में घटने वाली
घटनाओं के साथ-साथ खेल जगत व सिनेमा जगत की सूचनाएँ भी इस माध्यम से प्राप्त की
जाती हैं। वर्तमान में पूरक-पत्र के रूप में स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारियाँ व अन्य
महत्त्वपूर्ण तथ्य भी साप्ताहिक रूप से समाचार-पत्रों के साथ प्रसारित किए जाते
हैं।
प्रश्न 11.समाचार माध्यम के
इलेक्ट्रॉनिक माध्यम व नवे माध्यम पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:रेडियो व टेलीविजन मुख्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम हैं। व्यापकता एवं पहुँच की दृष्टि से रेडियो सबसे अधिक लोकप्रिय माध् यम है। इसकी पहुँच साक्षर वर्ग के साथ-साथ निरक्षर वर्ग तक भी है। जहाँ समाचार-पत्र की पहुँच नहीं है, उस दूर-दराज क्षेत्र में भी रेडियो सन्देशों को जन-जन तक पहुँचाता है। रेडियो एक श्रव्य माध्यम है तो टेलीविजन दृश्य-श्रव्य माध्यम। आज प्रत्येक व्यक्ति की पहुँच संचार के इस साधन तक हो चुकी है। सन्देशों, समाचारों एवं मनोरंजक कार्यक्रमों को टेलीविजन के माध्यम से देखा व सुनी जा सकता है।
उत्तर:रेडियो व टेलीविजन मुख्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम हैं। व्यापकता एवं पहुँच की दृष्टि से रेडियो सबसे अधिक लोकप्रिय माध् यम है। इसकी पहुँच साक्षर वर्ग के साथ-साथ निरक्षर वर्ग तक भी है। जहाँ समाचार-पत्र की पहुँच नहीं है, उस दूर-दराज क्षेत्र में भी रेडियो सन्देशों को जन-जन तक पहुँचाता है। रेडियो एक श्रव्य माध्यम है तो टेलीविजन दृश्य-श्रव्य माध्यम। आज प्रत्येक व्यक्ति की पहुँच संचार के इस साधन तक हो चुकी है। सन्देशों, समाचारों एवं मनोरंजक कार्यक्रमों को टेलीविजन के माध्यम से देखा व सुनी जा सकता है।
विकास के क्रम में
अत्याधुनिक नव माध्यम के रूप में इण्टरनेट ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है।
इण्टरनेट एक अन्त:क्रियात्मक माध्यम है। इस माध्यम के द्वारा शिक्षित वर्ग समस्त
संसार की घटनाओं से अद्यतन रूप से जुड़ा रहता है। स्थान व समय की भौतिक सीमाओं को
इण्टरनेट ने प्रायः समाप्त कर दिया है।
प्रश्न 12.समाचार और फीचर में क्या प्रमुख
अंतर है?
उत्तर:समाचार और फीचर में प्रमुख अंतर प्रस्तुतीकरण की शैली और विषयवस्तु की मात्रा का होता है। समाचार लेखन की सर्वाधिक प्रचलित शैली उल्टा पिरामिड शैली है जिसमें विषयवस्तु को महत्व के घटते क्रम में प्रस्तुत किया जाता है, जबकि फीचर लेखन की कोई निश्चित शैली नहीं है हालांकि प्राय: फीचर लेखन कथात्मक शैली में किया जाता है जो कि समाचार-लेखन की शैली के विपरीत प्रकार की शैली है। समाचार लेखन में लेखक को पूरे विषय को तथ्यानुरूप ही प्रस्तुत करना होता है। उसके स्वयं के विचारों के लिए इसमें कोई स्थान नहीं होता जबकि फीचर-लेखन में लेखक स्वतंत्र रूप से अपने विचारों को समाहित कर सकता है। समाचार लेखन में संक्षिप्तता का पूर्ण ध्यान रखा जाता है परंतु फीचर लेखन में विषयवस्तु को विस्तार से प्रस्तुत किया जाता है।
उत्तर:समाचार और फीचर में प्रमुख अंतर प्रस्तुतीकरण की शैली और विषयवस्तु की मात्रा का होता है। समाचार लेखन की सर्वाधिक प्रचलित शैली उल्टा पिरामिड शैली है जिसमें विषयवस्तु को महत्व के घटते क्रम में प्रस्तुत किया जाता है, जबकि फीचर लेखन की कोई निश्चित शैली नहीं है हालांकि प्राय: फीचर लेखन कथात्मक शैली में किया जाता है जो कि समाचार-लेखन की शैली के विपरीत प्रकार की शैली है। समाचार लेखन में लेखक को पूरे विषय को तथ्यानुरूप ही प्रस्तुत करना होता है। उसके स्वयं के विचारों के लिए इसमें कोई स्थान नहीं होता जबकि फीचर-लेखन में लेखक स्वतंत्र रूप से अपने विचारों को समाहित कर सकता है। समाचार लेखन में संक्षिप्तता का पूर्ण ध्यान रखा जाता है परंतु फीचर लेखन में विषयवस्तु को विस्तार से प्रस्तुत किया जाता है।
प्रश्न 13.फीचर को मुख्यतः कितनी श्रेणियों
में वर्गीकृत किया जा सकता है ?
उत्तर:फीचर को मुख्यत: चौदह श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है
उत्तर:फीचर को मुख्यत: चौदह श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है
(क) समाचार फीचर : समाचार पर आधारित फीचर को
समाचार फीचर कहा जाता है। जहाँ उल्टा पिरामिड शैली में लिखा गया समाचार किसी विषय
अथवा घटना को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करता है, वहीं फीचर उस समाचार को विस्तार
से प्रस्तुत करता है। समाचार में लेखक के व्यक्तिगत विचारों का कोई स्थान नहीं
होता परंतु फीचर में लेखक अपने विचारों को समाचार की पृष्ठभूमि के साथ जोड़कर
व्यक्त कर सकता है।
(ख) मानवीय रुचिपरक फीचर : किसी समुदाय या समाज विशेष की
रुचियों पर आधारित फीचर मानवीय रुचिपरकं फीचर कहलाता है।
(ग) व्याख्यात्मक फीचर : सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं धार्मिक स्थितियों
की तथा विविध समस्याओं की भावनात्मक दृष्टि से विवेचना व्याख्यात्मक फीचर में की
जाती है।
(घ) ऐतिहासिक फीचर : इतिहास को कथात्मक एवं रुचिपरक
तरीके से प्रस्तुत करना ऐतिहासिक फीचर कहलाता है।
(ङ) विज्ञान
फीचर : विज्ञान की उपलब्धियों, खगोलीय घटनाओं, खोजों, संचार क्रांति से संबंधित
विषयों पर लिखा गया फीचर विज्ञान फीचर कहलाता है।
(च) खेलकूद फीचर : खेल संबंधी जानकारी को रोचक ढंग
से प्रस्तुत करना खेलकूद फीचर का विषय है।
(छ) पर्वोत्सवी फीचर : समाज में मनाये जाने वाले उत्सव
एवं पर्यों पर आधारित फीचर पर्वोत्सवी फीचर की श्रेणी में आते हैं।
(ज) विशेष घटनाओं पर आधारित फीचर
: युद्ध, बाढ़ आदि
आकस्मिक घटनाओं आदि पर आधारित फीचर।
(झ) व्यक्तिपरक फीचर : किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के
व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर लिखा गया फीचर।
(अ) खोजपरक फीचर : विशेष रूप से छानबीन पर आधारित
फीचर खोजपरक फीचर कहलाते हैं।
(ट) मनोरंजनात्मक फीचर : मनोरंजन के कार्यक्रमों पर
आधारित फीचर।
(ठ) जनरुचि के विषयों पर आधारित
फीचर : स्थानीय समस्याओं या सामाजिक विषयों पर आधारित फीचर।
(ङ) फोटो फीचर : एक विषय परे विविध आयामों के
साथ ली गई तस्वीरों का प्रयोग कर फीचर का लेखन फोटो कहलाता है।
(ग) इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के
फीचर : इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों, यथा-रेडियो, टेलीविजन आदि के लिए तैयार किये
जाने वाले फीचर इस श्रेणी के फीचर होते हैं।
प्रश्न 14.व्यक्तिपरक फीचर से क्या आशय है?
उत्तर:व्यक्तिपरक फीचर से आशय है-किसी व्यक्ति विशेष के व्यक्तित्व, कृतित्व या सामयिक उपलब्धि पर लिखा गया फीचर। इस प्रकार का फीचर पूर्णत: किसी व्यक्ति विशेष के जीवन पर केंद्रित होता है। व्यक्ति के जीवन की किसी घटना या उपलब्धि जो अन्य लोगों के लिए अनुकरणीय व उपादेय बन सकती है, को आधार बनाकर इस प्रकार के फीचर रचे जाते हैं।
उत्तर:व्यक्तिपरक फीचर से आशय है-किसी व्यक्ति विशेष के व्यक्तित्व, कृतित्व या सामयिक उपलब्धि पर लिखा गया फीचर। इस प्रकार का फीचर पूर्णत: किसी व्यक्ति विशेष के जीवन पर केंद्रित होता है। व्यक्ति के जीवन की किसी घटना या उपलब्धि जो अन्य लोगों के लिए अनुकरणीय व उपादेय बन सकती है, को आधार बनाकर इस प्रकार के फीचर रचे जाते हैं।
प्रश्न 15.फीचर लेखन के लिए किन बातों का
ध्यान रखा जाता है?
उत्तर:फीचर लेखन एक महत्त्वपूर्ण कौशल है जिसके लिए लेखक को न केवल विषयवस्तु का गहन ज्ञान होना चाहिए अपितु अच्छी लेखन शैली का भी अभ्यास होना चाहिए। एक अच्छा फीचर आकर्षक, तथ्यात्मक और मनोरंजक होता है। आदर्श फीचर लेखन में निम्नांकित बिंदुओं का ध्यान रखा जाता है –
उत्तर:फीचर लेखन एक महत्त्वपूर्ण कौशल है जिसके लिए लेखक को न केवल विषयवस्तु का गहन ज्ञान होना चाहिए अपितु अच्छी लेखन शैली का भी अभ्यास होना चाहिए। एक अच्छा फीचर आकर्षक, तथ्यात्मक और मनोरंजक होता है। आदर्श फीचर लेखन में निम्नांकित बिंदुओं का ध्यान रखा जाता है –
1.
जिस विषय या घटना पर फीचर तैयार किया जाना है उससे संबंधित
व्यापक एवं प्रमाणित तथ्यों का संग्रह किया जाता है।
2.
तथ्यों के संग्रह के साथ ही फीचर के एक उपयुक्त उद्देश्य का
निर्धारण किया जाता है।
3.
उद्देश्य निर्धारण एवं तथ्य संग्रह के उपरांत फीचर लेखन का
कार्य किया जाता है। फीचर सरस और सहज ग्राह्य भाषा तथा आत्मपरक शैली में लिखा जाता
है।
4.
फीचर के लिए ऐसे शीर्षक का चयन किया जाता है,
जो पाठक
में जिज्ञासा उत्पन्न कर दे और पाठक उसे पढ़ने के लिए। लालायित हो जाये।
5.
फीचर का आमुख प्रभावी व आकर्षक रखा जाता है।
6.
फीचर में प्रभावी संप्रेषणीयता के गुण का समावेश करने के लिए
उसमें उचित रूप में तस्वीरों व ग्राफिक्स का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 16.लेख व फीचर की शैली में क्या अंतर
है?
उत्तर:लेख व फीचर की शैली में मुख्य अंतर निम्नानुसार हैं –
उत्तर:लेख व फीचर की शैली में मुख्य अंतर निम्नानुसार हैं –
1.
लेख गहन अध्ययन पर आधारित प्रामाणिक लेखन है जबकि फीचर
पाठकों की रुचि के अनुरूप किसी घटना या विषय की तथ्यपूर्ण रोचक प्रस्तुति है।
2.
लेख दिमाग को प्रभावित करता है तो फीचर दिल को।
3.
लेख एक गंभीर और उच्चस्तरीय गद्य रचना है जबकि फीचर एक
गद्यगीत
4.
लेख किसी घटना या विषय के सभी आयामों को स्पर्श करता है जबकि
फीचर कुछ आयामों को।
5.
लेख किसी समस्या विशेष के किसी पहलू का सूक्ष्म और गहन
विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जबकि फीचर समस्या को सामान्य
रूप में स्तुत करता है।
6.
लेख में तथ्यों को वस्तुनिष्ठ पूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया
जाता है जबकि फीचर में लेखक को अपना दृष्टिकोण व्यक्त करने की छूट होती है।
प्रश्न 17.रेडियो फीचर क्या है?
उत्तर:रेडियो फीचर श्रोताओं को खबरों से आगे की जानकारी प्रदान करने के लिए प्रस्तुत किया गया फीचर होता है। इस फीचर को श्रोत केवल सुन सकते हैं इसलिए इसमें संगीत और ध्वनि का अतिरिक्त प्रभाव सम्मिलित किया जाना अपेक्षित होता है। रेडियो रीचर पढ़े-लिखे वर्ग के साथ-साथ अनपढ़ वर्ग के लिए सहज ही ग्राह्य होता है। अन्य श्रेणियों के फीचर की तरह ही रेडियो रूपक (फीचर) में भी कल्पनाशीलता, तथ्ये, घटना अथवा विषय का विवरण, विवेचन, लोगों के विचार, प्रतिक्रियाएँ और रोचकता होती है।
उत्तर:रेडियो फीचर श्रोताओं को खबरों से आगे की जानकारी प्रदान करने के लिए प्रस्तुत किया गया फीचर होता है। इस फीचर को श्रोत केवल सुन सकते हैं इसलिए इसमें संगीत और ध्वनि का अतिरिक्त प्रभाव सम्मिलित किया जाना अपेक्षित होता है। रेडियो रीचर पढ़े-लिखे वर्ग के साथ-साथ अनपढ़ वर्ग के लिए सहज ही ग्राह्य होता है। अन्य श्रेणियों के फीचर की तरह ही रेडियो रूपक (फीचर) में भी कल्पनाशीलता, तथ्ये, घटना अथवा विषय का विवरण, विवेचन, लोगों के विचार, प्रतिक्रियाएँ और रोचकता होती है।
प्रश्न 18.फीचर क्या है?
उत्तर:रोचक विषय का मनोरम एवं विस्तृत प्रस्तुतीकरण ही फीचर है। फीचर का लक्ष्य मनोरंजन करना, सूचना देना और जानकारी को जनोपयोगी ढंग से प्रस्तुत करना होता है। किसी विषय विशेष से संबंधित जानकारी को आत्मनिष्ठ शैली में प्रस्तुत करने से जनसामान्य को वह जानकारी अपने स्वयं के जीवन से प्रगाढ़ रूप से जुड़ी हुई प्रतीत होती है। लेखक के स्वयं के विचार एवं प्रतिक्रिया पाठक को अपने लिए उपयोगी महसूस होते हैं। लेख व समाचार से भिन्न श्रेणी का यह लेखन पाठक की कल्पनाशक्त व मन:स्थिति को प्रभावित करता है।
उत्तर:रोचक विषय का मनोरम एवं विस्तृत प्रस्तुतीकरण ही फीचर है। फीचर का लक्ष्य मनोरंजन करना, सूचना देना और जानकारी को जनोपयोगी ढंग से प्रस्तुत करना होता है। किसी विषय विशेष से संबंधित जानकारी को आत्मनिष्ठ शैली में प्रस्तुत करने से जनसामान्य को वह जानकारी अपने स्वयं के जीवन से प्रगाढ़ रूप से जुड़ी हुई प्रतीत होती है। लेखक के स्वयं के विचार एवं प्रतिक्रिया पाठक को अपने लिए उपयोगी महसूस होते हैं। लेख व समाचार से भिन्न श्रेणी का यह लेखन पाठक की कल्पनाशक्त व मन:स्थिति को प्रभावित करता है।
प्रश्न 19.संपादकीय क्या है?
उत्तर:संपादकीय किसी भी समाचार-पत्र का अत्यंत महत्वपूर्ण भाग होता है। यह किसी ज्वलंत मुद्दे या घटना पर समाचार पत्र के दृष्टिकोण व विचार को व्यक्त करता है। संपादकीय संक्षेप में तथ्यों और विचारों की ऐसी तर्कसंगत और सुरुचिपूर्ण प्रस्तुति है जिसका उद्देश्य मनोरंजन, विचारों को प्रभावित करना या किसी समाचार का ऐसा भाष्य प्रस्तुत करना है जिससे सामान्य पाठक उसका महत्व समझ सके।
उत्तर:संपादकीय किसी भी समाचार-पत्र का अत्यंत महत्वपूर्ण भाग होता है। यह किसी ज्वलंत मुद्दे या घटना पर समाचार पत्र के दृष्टिकोण व विचार को व्यक्त करता है। संपादकीय संक्षेप में तथ्यों और विचारों की ऐसी तर्कसंगत और सुरुचिपूर्ण प्रस्तुति है जिसका उद्देश्य मनोरंजन, विचारों को प्रभावित करना या किसी समाचार का ऐसा भाष्य प्रस्तुत करना है जिससे सामान्य पाठक उसका महत्व समझ सके।
प्रश्न 20.संपादकीय लेखन की क्या विशेषताएँ
होनी चाहिए?
उत्तर:संपादकीय लेखन संपादक के व्यक्तित्व के विचारों का परिचायक होता है। अत: प्रत्येक संपादक की लेखन शैली अन्य से भिन्न होती है फिर भी सामान्य रूप से संपादकीय में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए।
उत्तर:संपादकीय लेखन संपादक के व्यक्तित्व के विचारों का परिचायक होता है। अत: प्रत्येक संपादक की लेखन शैली अन्य से भिन्न होती है फिर भी सामान्य रूप से संपादकीय में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए।
(अ) संपादकीय को यथासंभव
वस्तुनिष्ठ, निर्भीक, दूरदर्शी व मार्गदर्शक होना
चाहिए।
(ब) यह संबंधित मुद्दे या घटना पर विचारों को उद्वेलित करने वाला होने के साथ-साथ सुझावपरक हो।
(स) संपादकीय द्वारा व्यक्त की गई आलोचना केवल संपादक के व्यक्तिगत विचार न होकर तार्किक व निष्पक्षता से युक्त होनी चाहिए।
(द) यह एक बौद्धिक लेखन है। अत: विषयवस्तु को सुसंगत एवं समग्र रूप से व्यक्त किया जाना चाहिएप्रश्न
(ब) यह संबंधित मुद्दे या घटना पर विचारों को उद्वेलित करने वाला होने के साथ-साथ सुझावपरक हो।
(स) संपादकीय द्वारा व्यक्त की गई आलोचना केवल संपादक के व्यक्तिगत विचार न होकर तार्किक व निष्पक्षता से युक्त होनी चाहिए।
(द) यह एक बौद्धिक लेखन है। अत: विषयवस्तु को सुसंगत एवं समग्र रूप से व्यक्त किया जाना चाहिएप्रश्न
प्रश्न 21.संपादकीय लेखने की प्रक्रिया को
स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:संपादकीय लेखन की प्रक्रिया को निम्नलिखित चरणों में बाँटा जा सकता है –
उत्तर:संपादकीय लेखन की प्रक्रिया को निम्नलिखित चरणों में बाँटा जा सकता है –
1.
विषय का चयन : ज्वलंत व
सामयिक विषय को संपादकीय लेखन के लिए चुना जाता है। विषय प्रादेशिक,
राष्ट्रीय
या अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व को हो सकता है।
2.
विषयानुरूप सामग्री का संकलन : विषय
निर्धारण के उपरांत सामग्री का संकलन किया जाता है। संपादक दिन-प्रतिदिन कै.
घटनाओं पर पैनी नज़र रखते हुए विभिन्न संदर्भ-सामग्री के माध्यम से विषयवस्तु का
संकलन करता है।
3.
विषय प्रवेश एवं विस्तार : संपादकीय
के विषय प्रवेश में समस्या की ओर ध्यानाकर्षण किया जाता है तदुपरांत तार्किक ढंग
से विचारों एवं तर्क को प्रस्तुत करते हुए विषयवस्तु का विस्तार किया जाता है।
4.
विषय का निष्कर्ष : संपादकीय
के अंतिम भाग में संपादक विषय, घटना यो मुद्दे पर अपनी राय
अथवा विचार रखता है। यह राय अथवा विचार पाठक के मस्तिष्क को उद्वेलित करने वाला
होता है।
5.
शीर्षक : संपूर्ण
लेखन के बाद संपादक अपने लेख के शीर्षक का निर्धारण करता है। शीर्षक निश्चित ही
किसी भी लेख के लिए अति महत्वपूर्ण होता है। अत: संपादकीय का शीर्षक पाठक को प्रभावित
करने वाला व विषय की समग्रता को अपने आप में समाहित करने वाला होना चाहिए।
प्रश्न 22.‘संपादक के नाम पत्र’ स्तंभ में प्रकाशन योग्य सामग्री के
चयन में किन तथ्यों को ध्यान में रखा जाना चाहिए?
उत्तर:संपादक के नाम पत्र स्तंभ में प्रकाशन योग्य सामग्री के चयन के दौरान सामग्री की उपादेयता, प्रासंगिकता और सामयिकता का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। सामग्री से संपादक का सहमत या असहमत होना महत्वपूर्ण न होकर उसकी उपादेयता महत्वपूर्ण होती है। आलोचनात्मक पत्रों में यह देखना आवश्यक है कि आलोचना विषयपरक व तर्कसंगत हो न कि व्यक्तिगत आक्षेप। पत्र के औचित्य का मूल्यांकन करने के बाद ही पत्र को प्रकाशित किया जाना चाहिए।
उत्तर:संपादक के नाम पत्र स्तंभ में प्रकाशन योग्य सामग्री के चयन के दौरान सामग्री की उपादेयता, प्रासंगिकता और सामयिकता का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। सामग्री से संपादक का सहमत या असहमत होना महत्वपूर्ण न होकर उसकी उपादेयता महत्वपूर्ण होती है। आलोचनात्मक पत्रों में यह देखना आवश्यक है कि आलोचना विषयपरक व तर्कसंगत हो न कि व्यक्तिगत आक्षेप। पत्र के औचित्य का मूल्यांकन करने के बाद ही पत्र को प्रकाशित किया जाना चाहिए।
प्रश्न 23.साक्षात्कार की विभिन्न परिभाषाएँ
देते हुए इसके प्रकार लिखिए।
उत्तर:साक्षात्कार का शाब्दिक अर्थ है-साक्षात् कराना, अर्थात् किसी व्यक्ति विशेष से साक्षात् मिलकर उसके भावों व विचारों को जानना ही साक्षात्कार है। ‘रैडमा हाउस’ शब्दकोश के अनुसार, “साक्षात्कार उस वार्ता अथवा भेंट को कहा गया है जिसमें संवाददाता (पत्रकार) या लेखक किसी व्यक्ति या किन्हीं व्यक्तियों के सवाल-जवाब के आधार पर किसी समाचार पत्र में प्रकाशन के लिए अथवा टेलीविजन पर प्रसारण हेतु सामग्री एकत्र करता है।”
उत्तर:साक्षात्कार का शाब्दिक अर्थ है-साक्षात् कराना, अर्थात् किसी व्यक्ति विशेष से साक्षात् मिलकर उसके भावों व विचारों को जानना ही साक्षात्कार है। ‘रैडमा हाउस’ शब्दकोश के अनुसार, “साक्षात्कार उस वार्ता अथवा भेंट को कहा गया है जिसमें संवाददाता (पत्रकार) या लेखक किसी व्यक्ति या किन्हीं व्यक्तियों के सवाल-जवाब के आधार पर किसी समाचार पत्र में प्रकाशन के लिए अथवा टेलीविजन पर प्रसारण हेतु सामग्री एकत्र करता है।”
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर के
अनुसार, “मैंने इंटरव्यू के लिए बरसों पहले एक शब्द रचा था- अतंयूंह। मेरा
भाव है कि इंटरन्यू के द्वारा हम सामने वाले के अंतर में एक व्यूह रचना करते हैं।
मतलब यह कि दूसरा उसे बचा न सके, जो हम उससे पाना चाहते हैं। यह एक तरह का युद्ध है और
इंटरव्यू हमारी रणनीति, व्यूह
रचना है।”
उक्त दोनों परिभाषाओं से स्पष्ट
है कि साक्षात्कार के माध्यम से हम किसी व्यक्ति विशेष से मिलकर किसी विषय विशेष पर
उसके अनुभवों, विचारों
या भावों को जानते हैं।
मौलिक रूप से साक्षात्कार के दो
प्रकार होते हैं-परीक्षोपयोगी साक्षात्कार व जनसंचार माध्यमोपयोगी साक्षात्कार ।
माध्यमोपयोगी साक्षात्कारों को पुन: प्रिंट मीडिया के लिए साक्षात्कार व
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए साक्षात्कार श्रेणियों में उपविभाजित किया जा सकता है।
प्रश्न 24.एक अच्छे साक्षात्कारकर्ता के गुणों
पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:एक अच्छे साक्षात्कारकर्ता में नम्रता, लेखन-शक्ति, जिज्ञासा, वाक्-योग्यता, भाषा पर अधिकार, तटस्थता, बातें निकालने की कला, सुनने को धैर्य, मनोविज्ञान का ज्ञान व व्यवहारकुशलता होनी चाहिए। वह जिस विषय पर साक्षात्कार लेने जा रहा है। उसकी गहरी समझ उसे होनी चाहिए। तभी वह साक्षात्कारदाता से विषयानुरूप प्रश्न पूछकर उपयोगी जानकारी संकलित कर पायेगा। साक्षात्कार में जीवंतता बनाये रखने के लिए साक्षात्कारकर्ता में बौद्धिक कुशलता व प्रत्युत्पन्नमति से तत्काल प्रश्न गढ़ने की कला होनी आवश्यक है। साक्षात्कार विषयेतर न हो इस हेतु साक्षात्कारकर्ता में साक्षात्कार को विषय पर केन्द्रित रखने की कला होनी चाहिए।
उत्तर:एक अच्छे साक्षात्कारकर्ता में नम्रता, लेखन-शक्ति, जिज्ञासा, वाक्-योग्यता, भाषा पर अधिकार, तटस्थता, बातें निकालने की कला, सुनने को धैर्य, मनोविज्ञान का ज्ञान व व्यवहारकुशलता होनी चाहिए। वह जिस विषय पर साक्षात्कार लेने जा रहा है। उसकी गहरी समझ उसे होनी चाहिए। तभी वह साक्षात्कारदाता से विषयानुरूप प्रश्न पूछकर उपयोगी जानकारी संकलित कर पायेगा। साक्षात्कार में जीवंतता बनाये रखने के लिए साक्षात्कारकर्ता में बौद्धिक कुशलता व प्रत्युत्पन्नमति से तत्काल प्रश्न गढ़ने की कला होनी आवश्यक है। साक्षात्कार विषयेतर न हो इस हेतु साक्षात्कारकर्ता में साक्षात्कार को विषय पर केन्द्रित रखने की कला होनी चाहिए।
प्रश्न 25.साक्षात्कार का प्रमुख आधार संवाद है। कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:साक्षात्कार वस्तुत: किसी व्यक्ति से रूबरू होकर किसी विषय पर बातचीत को कहा जाता है। निश्चित ही प्रत्येक बातचीत का आधार संवाद होता है तो साक्षात्कार इससे कैसे भिन्न हो सकता है। साक्षात्कार के दौरान साक्षात्कारकर्ता दाता से संवाद स्थापित कर विषय-विशेष पर उसके विचारों से अवगत होता है और उन्हीं विचारों को जनसामान्य के सामने रखता है संवाद जितने प्रभावी होंगे, साक्षात्कार भी उतना ही प्रभावपूर्ण होगा। साक्षात्कार के संवाद संबंधित पाठक या श्रोता वर्ग की समझ के अनुरूप होने पर संप्रेषणीयता बनी रहती है। अत: संवाद शैली व भाषा साक्षात्कार के प्राण हैं। संवाद की प्रकृति से ही साक्षात्कार विभिन्न साहित्यिक विधाओं के गुणों को आत्मसात करता है।
उत्तर:साक्षात्कार वस्तुत: किसी व्यक्ति से रूबरू होकर किसी विषय पर बातचीत को कहा जाता है। निश्चित ही प्रत्येक बातचीत का आधार संवाद होता है तो साक्षात्कार इससे कैसे भिन्न हो सकता है। साक्षात्कार के दौरान साक्षात्कारकर्ता दाता से संवाद स्थापित कर विषय-विशेष पर उसके विचारों से अवगत होता है और उन्हीं विचारों को जनसामान्य के सामने रखता है संवाद जितने प्रभावी होंगे, साक्षात्कार भी उतना ही प्रभावपूर्ण होगा। साक्षात्कार के संवाद संबंधित पाठक या श्रोता वर्ग की समझ के अनुरूप होने पर संप्रेषणीयता बनी रहती है। अत: संवाद शैली व भाषा साक्षात्कार के प्राण हैं। संवाद की प्रकृति से ही साक्षात्कार विभिन्न साहित्यिक विधाओं के गुणों को आत्मसात करता है।
प्रश्न 26.आजकल मीडिया में साक्षात्कार के
कौन-कौन से रूप प्रचलित हैं? विस्तार से लिखिए।
उत्तर:आजकल मीडिया में साक्षात्कार के विविध रूप प्रचलित हैं। साक्षात्कार अब मात्र दो व्यक्तियों के बीच की बातचीत ने होकर जनसमूह से संवाद का भी माध्यम बन गया है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विशेषकर न्यूज चैनल्स के द्वारा अनेक प्रकार के साक्षात्कार आयोजित करवाकर अपनी लोकप्रियता को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। इण्डिया टीवी पर ‘आपकी अदालत’, आज तक पर ‘आक्रामक तेवर’ व अन्य चैनल्स पर आमने-सामने, एनकाण्टर आदि नामों से साक्षात्कार नियमित रूप से प्रसारित किये जा रहे हैं। जनसमूह से सीधी बात भी साक्षात्कार का आधुनिक प्रकार है।
उत्तर:आजकल मीडिया में साक्षात्कार के विविध रूप प्रचलित हैं। साक्षात्कार अब मात्र दो व्यक्तियों के बीच की बातचीत ने होकर जनसमूह से संवाद का भी माध्यम बन गया है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विशेषकर न्यूज चैनल्स के द्वारा अनेक प्रकार के साक्षात्कार आयोजित करवाकर अपनी लोकप्रियता को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। इण्डिया टीवी पर ‘आपकी अदालत’, आज तक पर ‘आक्रामक तेवर’ व अन्य चैनल्स पर आमने-सामने, एनकाण्टर आदि नामों से साक्षात्कार नियमित रूप से प्रसारित किये जा रहे हैं। जनसमूह से सीधी बात भी साक्षात्कार का आधुनिक प्रकार है।
प्रश्न 27.व्यापारिक पृष्ठ के विभिन्न अंग
क्या-क्या हैं ?
उत्तर:व्यापारिक पृष्ठ के प्रमुख अंगों में बाजार भाव (अनाज मण्डी, तेल तिलहन, गुड़, खाण्डसारी, सर्राफा, शेयर बाजार, रुई बाजार, धातु, पटसन, चाय, किराना-बाजार आदि), कंपनी समाचार, आर्थिक समीक्षा आदि सम्मिलित होते हैं। इन स्थायी स्तंभों के अतिरिक्त आयात-निर्यात, वित्तीय नीतियों तथा कंपनियों की वार्षिक नीतियों का विश्लेषण भी व्यापारिक पृष्ठ का अंग होता है।
उत्तर:व्यापारिक पृष्ठ के प्रमुख अंगों में बाजार भाव (अनाज मण्डी, तेल तिलहन, गुड़, खाण्डसारी, सर्राफा, शेयर बाजार, रुई बाजार, धातु, पटसन, चाय, किराना-बाजार आदि), कंपनी समाचार, आर्थिक समीक्षा आदि सम्मिलित होते हैं। इन स्थायी स्तंभों के अतिरिक्त आयात-निर्यात, वित्तीय नीतियों तथा कंपनियों की वार्षिक नीतियों का विश्लेषण भी व्यापारिक पृष्ठ का अंग होता है।
प्रश्न 28.अदालती समाचार किसे कहते हैं ?
उत्तर:सामान्यत: किसी व्यक्ति के द्वारा कानून का उल्लंघन किए जाने पर उस पर अदालत द्वारा तदनुरूप कार्यवाही की जाती है। इस कार्यवाही से संबंधित समाचार अदालती समाचार कहलाते हैं। किसी अपराधी को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने और उसे अदालत में प्रस्तुत करने के बाद दिए गए फैसले के समाचारों को अदालती समाचारों की श्रेणी में रखा जाता है। अत: मोटे तौर पर अदालत में होने वाली कार्यवाही; यथा-वकीलों की बहस, न्यायाधीश द्वारा दिया गया निर्णय के समाचार को अदालती समाचार कहते हैं।
उत्तर:सामान्यत: किसी व्यक्ति के द्वारा कानून का उल्लंघन किए जाने पर उस पर अदालत द्वारा तदनुरूप कार्यवाही की जाती है। इस कार्यवाही से संबंधित समाचार अदालती समाचार कहलाते हैं। किसी अपराधी को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने और उसे अदालत में प्रस्तुत करने के बाद दिए गए फैसले के समाचारों को अदालती समाचारों की श्रेणी में रखा जाता है। अत: मोटे तौर पर अदालत में होने वाली कार्यवाही; यथा-वकीलों की बहस, न्यायाधीश द्वारा दिया गया निर्णय के समाचार को अदालती समाचार कहते हैं।
प्रश्न 29.विज्ञान पत्रकारिता क्या है ?
उत्तर:वर्तमान युग विज्ञान का युग है। हमारे जीवन का लगभग प्रत्येक क्षेत्र विज्ञान से प्रभावित है। विज्ञान के आविष्कारों ने हमारे जीवन की जटिलताओं को कम करते हुए जीवन को बेहद आसान बना दिया है। वैज्ञानिक क्षेत्र के किसी कार्यक्रम, उपलब्धि या खोज की तह तक की जानकारी प्राप्त करना तथा उसकी पृष्ठभूमि के बारे में बताना और भविष्य की संभावनाओं के बारे में जानकारी देना विज्ञान पत्रकारिता कहलाती है। इस प्रकार की पत्रकारिता में उपग्रह प्रक्षेपण के समाचारों से लेकर नई दवाओं के शोध, मौसमी बीमारियों और उनकी रोकथाम के लिए किए गए प्रयास, चिकित्सा के क्षेत्र में नई खोज, फलों और सब्जियों के अधिक उत्पादन के लिए किए गए रासायनिक प्रयोग, कृषि क्षेत्र में किए जा रहे नए अनुसंधान, भूस्खलन, बाढ़ और जंगलों में पेड़ों की कटाई के परिवेश पर प्रभावादि से संबंधित समाचारों को समाहित किया जा सकता है।
उत्तर:वर्तमान युग विज्ञान का युग है। हमारे जीवन का लगभग प्रत्येक क्षेत्र विज्ञान से प्रभावित है। विज्ञान के आविष्कारों ने हमारे जीवन की जटिलताओं को कम करते हुए जीवन को बेहद आसान बना दिया है। वैज्ञानिक क्षेत्र के किसी कार्यक्रम, उपलब्धि या खोज की तह तक की जानकारी प्राप्त करना तथा उसकी पृष्ठभूमि के बारे में बताना और भविष्य की संभावनाओं के बारे में जानकारी देना विज्ञान पत्रकारिता कहलाती है। इस प्रकार की पत्रकारिता में उपग्रह प्रक्षेपण के समाचारों से लेकर नई दवाओं के शोध, मौसमी बीमारियों और उनकी रोकथाम के लिए किए गए प्रयास, चिकित्सा के क्षेत्र में नई खोज, फलों और सब्जियों के अधिक उत्पादन के लिए किए गए रासायनिक प्रयोग, कृषि क्षेत्र में किए जा रहे नए अनुसंधान, भूस्खलन, बाढ़ और जंगलों में पेड़ों की कटाई के परिवेश पर प्रभावादि से संबंधित समाचारों को समाहित किया जा सकता है।
प्रश्न 30.फिल्म पत्रकारिता किसे कहते हैं ?
उत्तर:फिल्म निर्माण से लेकर इसके प्रदर्शनोपरांत समाज पर पड़ने वाले प्रभाव से संबंधित पत्रकारिता को फिल्म पत्रकारिता कहते हैं। फिल्म केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं बल्कि समाज की कुरीतियों को दूर करने व आदर्श समाज के निर्माण का संदेश देने का एक प्रभावी एवं शक्तिशाली माध्यम है। फिल्म उद्योग से जुड़े व्यक्ति, यथा-निर्माता, निर्देशक, अभिनेता, अभिनेत्रियाँ आदि के जीवन व कृतित्व से संबंधित समाचार फिल्म-पत्रकारिता की श्रेणी में आते हैं।
उत्तर:फिल्म निर्माण से लेकर इसके प्रदर्शनोपरांत समाज पर पड़ने वाले प्रभाव से संबंधित पत्रकारिता को फिल्म पत्रकारिता कहते हैं। फिल्म केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं बल्कि समाज की कुरीतियों को दूर करने व आदर्श समाज के निर्माण का संदेश देने का एक प्रभावी एवं शक्तिशाली माध्यम है। फिल्म उद्योग से जुड़े व्यक्ति, यथा-निर्माता, निर्देशक, अभिनेता, अभिनेत्रियाँ आदि के जीवन व कृतित्व से संबंधित समाचार फिल्म-पत्रकारिता की श्रेणी में आते हैं।
प्रश्न 31.खेल पत्रकारों के प्रकारों का परिचय
देते हुए एक खेल पत्रकार में अपेक्षित गुणों की जानकारी दीजिए।
उत्तर:खेल पत्रकार कई प्रकार के होते हैं। पूर्णकालिक पत्रकार किसी पत्र-पत्रिका के नियमित वेतन भोगी कार्मिक होते हैं। दूसरे प्रकार के पत्रकार स्वतंत्र पत्रकार होते हैं जो स्थाई रूप से किसी पत्र या पत्रिका समूह के साथ जुड़े हुए नहीं होते। वे अपने आलेख भिन्न-भिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में भेजते रहते हैं तथा बदले में पारिश्रमिक प्राप्त करते हैं। किसी मुद्दे विशेष पर टिप्पणी करने वाले पत्रकार विशेषज्ञ पत्रकारों की श्रेणी में आते हैं। एक खेल पत्रकार में निम्नलिखित गुणों की अपेक्षा की जाती है
उत्तर:खेल पत्रकार कई प्रकार के होते हैं। पूर्णकालिक पत्रकार किसी पत्र-पत्रिका के नियमित वेतन भोगी कार्मिक होते हैं। दूसरे प्रकार के पत्रकार स्वतंत्र पत्रकार होते हैं जो स्थाई रूप से किसी पत्र या पत्रिका समूह के साथ जुड़े हुए नहीं होते। वे अपने आलेख भिन्न-भिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में भेजते रहते हैं तथा बदले में पारिश्रमिक प्राप्त करते हैं। किसी मुद्दे विशेष पर टिप्पणी करने वाले पत्रकार विशेषज्ञ पत्रकारों की श्रेणी में आते हैं। एक खेल पत्रकार में निम्नलिखित गुणों की अपेक्षा की जाती है
1.
सूक्ष्म व खोजपूर्ण नज़र।
2.
खेल नियमों की संपूर्ण जानकारी।
3.
भाषा का समुचित ज्ञान।
4.
खेलों के संबंध में तकनीकी शब्दावली का ज्ञान
5.
वास्तविकता को प्रकट करने का साहस।
6.
तकनीकी शब्दावली को जनसामान्य के लिए ग्राह्य भाषा में
प्रस्तुत करने की योग्यता
7.
पाठकों की रुचि के अनुरूप निष्पक्ष प्रस्तुतीकरण का कौशल।
8.
तेज गति से लिखने की आदत
प्रश्न 32.रिपोर्ताज किसे कहते हैं?
उत्तर:हमारे आसपास घटित विभिन्न घटनाओं की कलात्मक अभिव्यक्ति ही रिपोर्ताज है। वस्तुत: रिपोर्ताज फ्रांसीसी भाषा का शब्द है जो कि अंग्रेजी के रिपोर्ट शब्द का ही संशोधित रूप है। किसी घटना का आँखों देखा वर्णन रिपोर्ट कहलाती है। इसमें सरसता, भावप्रवणता तथा सजीवता होती है। रेखाचित्र शैली के प्रयोग वाली यह रचना एक साहित्यिक विधा है।
उत्तर:हमारे आसपास घटित विभिन्न घटनाओं की कलात्मक अभिव्यक्ति ही रिपोर्ताज है। वस्तुत: रिपोर्ताज फ्रांसीसी भाषा का शब्द है जो कि अंग्रेजी के रिपोर्ट शब्द का ही संशोधित रूप है। किसी घटना का आँखों देखा वर्णन रिपोर्ट कहलाती है। इसमें सरसता, भावप्रवणता तथा सजीवता होती है। रेखाचित्र शैली के प्रयोग वाली यह रचना एक साहित्यिक विधा है।
प्रश्न 33.रिपोर्ट और रिपोर्ताज में अन्तर
बताइए।
उत्तर:रिपोर्ट व रिपोर्ताज की विषयवस्तु एक ही होते हुए भी प्रस्तुतीकरण की दृष्टि से भिन्नता लिए हुए है। रिपोर्ट जहाँ किसी घटना का यथातथ्य वर्णन है; वहीं रिपोर्ताज किसी घटना की कलात्मक अभिव्यक्ति । रिपोर्ट नीरस होती है जबकि रिपोर्ताज सरस होता है। रिपोर्ट सामान्य शैली में लिखी जाती है जबकि रिपोर्ताज रेखाचित्र शैली में लिखा जाता है। रिपोर्ट घटना होती है जबकि रिपोर्ताज में कथा तत्त्व का मिश्रणं रहता है। संवेदनशीलता रिपोर्ट का आवश्यक तत्त्व नहीं है, जबकि रिपोर्ताज में इसकी उपस्थिति आवश्यक मानी गई है। रिपोर्ट से भिन्न रिपोर्ताज एक साहित्यिक विधा है।
उत्तर:रिपोर्ट व रिपोर्ताज की विषयवस्तु एक ही होते हुए भी प्रस्तुतीकरण की दृष्टि से भिन्नता लिए हुए है। रिपोर्ट जहाँ किसी घटना का यथातथ्य वर्णन है; वहीं रिपोर्ताज किसी घटना की कलात्मक अभिव्यक्ति । रिपोर्ट नीरस होती है जबकि रिपोर्ताज सरस होता है। रिपोर्ट सामान्य शैली में लिखी जाती है जबकि रिपोर्ताज रेखाचित्र शैली में लिखा जाता है। रिपोर्ट घटना होती है जबकि रिपोर्ताज में कथा तत्त्व का मिश्रणं रहता है। संवेदनशीलता रिपोर्ट का आवश्यक तत्त्व नहीं है, जबकि रिपोर्ताज में इसकी उपस्थिति आवश्यक मानी गई है। रिपोर्ट से भिन्न रिपोर्ताज एक साहित्यिक विधा है।
प्रश्न 34.डायरी क्यों लिखी जाती है?
उत्तर:जीवन परिवर्तनशील और गतिशील है। अत: वह प्रत्येक दिन एक नये अनुभव का साक्षी बनता है। इन्हीं अनुभवों को शब्दों में पिरोने का कार्य है डायरी लेखन। डायरी बीते हुए जीवन की वर्तमान जीवन से तुलना का एक माध्यम है। यह हमें बताती है कि हममें कितना परिवर्तन हुआ? हमने जीवन को किस ढंग से जिया है? क्या खोया है और क्या पाया है? इसका विश्लेषण करने का एक माध्यम है डायरी। अत: व्यक्ति अपने जीवन में घटी घटनाओं को विस्मृति से बचाने के लिए तथा उसे भावी जीवन की आधारशिला बनाने के लिए डायरी लिखता है।
उत्तर:जीवन परिवर्तनशील और गतिशील है। अत: वह प्रत्येक दिन एक नये अनुभव का साक्षी बनता है। इन्हीं अनुभवों को शब्दों में पिरोने का कार्य है डायरी लेखन। डायरी बीते हुए जीवन की वर्तमान जीवन से तुलना का एक माध्यम है। यह हमें बताती है कि हममें कितना परिवर्तन हुआ? हमने जीवन को किस ढंग से जिया है? क्या खोया है और क्या पाया है? इसका विश्लेषण करने का एक माध्यम है डायरी। अत: व्यक्ति अपने जीवन में घटी घटनाओं को विस्मृति से बचाने के लिए तथा उसे भावी जीवन की आधारशिला बनाने के लिए डायरी लिखता है।
प्रश्न 35.डायरी लेखन की पाँच विशेषताएँ
बताइए।
उत्तर:डायरी लेखन की पाँच विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
उत्तर:डायरी लेखन की पाँच विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1.
डायरी तात्कालिक संवेदनात्मक भावों की अभिव्यक्ति है।
2.
डायरी में लेखक के आत्मीय गुण तथा प्रवृत्तियों की
अभिव्यक्ति होती है।
3.
डायरी लेखन में डायरी लेखक समय और स्थान के संदर्भ को भी
अपनी अभिव्यक्ति देता है।
4.
डायरी लेखन में सभी लेखन विधियों का स्पर्श रहता है।
5.
डायरी लेखक समय-समय पर अतीत के अनुभवों की पुनर्समीक्षा करता
हुआ आगे बढ़ता है।
प्रश्न 36.पत्रकारिता के लिए संदर्भ सामग्री
की क्या उपयोगिता है?
उत्तर:पत्रकारिता में सूचनाओं का संग्रह किया जाता है। ऐसी दशा में सूचनाओं के प्रमाणीकरण के लिए पुराने संदर्भो की आवश्यकता होती है। ये पुराने संदर्भ ‘संदर्भ सामग्री के माध्यम से ही प्राप्त होते हैं। उदाहरण के तौर पर तापमान के अति न्यून होने को गत वर्षों के साथ जोड़कर उसके प्रभाव को बेहतर तरीके से दर्शाया जा सकता है। “सर्दी ने गत 15 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ा।” इस समाचार के लिए पिछले वर्षों के संदर्भ की आवश्यकता होगी। इसी प्रकार, अनेक ऐसे प्रसंग होंगे, जिनमें प्रामाणिकता के लिए किसी-न-किसी आधार की आवश्यकता होगी। अत: पत्रकारिता के लिए संदर्भ सामग्री अत्यंत उपयोगी है।
उत्तर:पत्रकारिता में सूचनाओं का संग्रह किया जाता है। ऐसी दशा में सूचनाओं के प्रमाणीकरण के लिए पुराने संदर्भो की आवश्यकता होती है। ये पुराने संदर्भ ‘संदर्भ सामग्री के माध्यम से ही प्राप्त होते हैं। उदाहरण के तौर पर तापमान के अति न्यून होने को गत वर्षों के साथ जोड़कर उसके प्रभाव को बेहतर तरीके से दर्शाया जा सकता है। “सर्दी ने गत 15 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ा।” इस समाचार के लिए पिछले वर्षों के संदर्भ की आवश्यकता होगी। इसी प्रकार, अनेक ऐसे प्रसंग होंगे, जिनमें प्रामाणिकता के लिए किसी-न-किसी आधार की आवश्यकता होगी। अत: पत्रकारिता के लिए संदर्भ सामग्री अत्यंत उपयोगी है।
प्रश्न 37.रिपोर्ट और रिपोर्ताज में क्या
अन्तर है? समझाइये।
उत्तर:रिपोर्ट और रिपोर्ताज दोनों ही एक विधा के अंग हैं पर इनमें काफी अंतर है। रिपोर्ट साहित्यिक विधा नहीं है, इसमें तो वास्तविक घटना का ही वर्णन मिलता है। परन्तु रिपोर्ताज में किसी घटित घटना को कलात्मकता के साथ भावपूर्ण शैली में व्यक्त किया जाता है। कुछ आलोचक इसे स्वतंत्र विधा न मानकर कहानी, निबंध, रेखाचित्र या यात्रावृत्त में समाविष्ट करने का प्रयत्न करते हैं पर ऐसा नहीं है। यह एक स्वतंत्र विधा है।
उत्तर:रिपोर्ट और रिपोर्ताज दोनों ही एक विधा के अंग हैं पर इनमें काफी अंतर है। रिपोर्ट साहित्यिक विधा नहीं है, इसमें तो वास्तविक घटना का ही वर्णन मिलता है। परन्तु रिपोर्ताज में किसी घटित घटना को कलात्मकता के साथ भावपूर्ण शैली में व्यक्त किया जाता है। कुछ आलोचक इसे स्वतंत्र विधा न मानकर कहानी, निबंध, रेखाचित्र या यात्रावृत्त में समाविष्ट करने का प्रयत्न करते हैं पर ऐसा नहीं है। यह एक स्वतंत्र विधा है।
प्रश्न 38.आचार्य उमेश शास्त्री के अनुसार
रिपोर्ताज की मुख्य विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:आचार्य उमेश शास्त्री के अनुसार रिपोर्ताज की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
उत्तर:आचार्य उमेश शास्त्री के अनुसार रिपोर्ताज की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
·
रिपोर्ताज में तथ्यों के साथ भाव प्रवणता होती है।
·
रिपोर्ताज का स्वरूप कलापूर्ण होता है। लेखक यथार्थ विषय को
कल्पना के माध्यम से साहित्यिक परिवेश में प्रस्तुत करता है।
·
रिपोर्ताज में मुख्य विषयवस्तु घटना होती है। घटना का
काल्पनिक अथवा यथार्थपरक होना लेखक पर निर्भर करता है। घटना को कथात्मक रूप में
प्रस्तुत किया जाता है।
·
इस विधा की कोई सीमा नहीं होती।
·
रिपोर्ताज में बाह्य स्वरूप की अभिव्यक्ति अधिक और आंतरिक
स्वरूप की अभिव्यक्ति कम होती है।
·
जन-जीवन की प्रभावकारी परिस्थिति का चित्रण होने के साथ
ऐतिहासिकता के लिए प्रमाण भी अपेक्षित है।
·
रिपोर्ताज लेखक का उद्देश्य वस्तुगत तथ्यों को प्रभावपूर्ण
ढंग से अभिव्यक्त करना होता है।
·
रिपोर्ताज लेखक साहित्यिक लेखनी को हाथ में लेकर जागरूक
बौद्धिकता के साथ यथार्थ जगत् से संपर्क किये रहता है।
·
रिपोर्ताज का प्रभाव सीमित होता है। सम-सामयिक विषय और
घटनाओं पर आधारित होने के कारण इसका प्रभाव सार्वजनीन नहीं रहता है।
·
लेखक का दृष्टिकोण मनोविश्लेषणात्मक होता है।
·
भाषा में सरलता, सहजता,
सुबोधता,
सजीवता
एवं सरसता होना आवश्यक होता है।
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गुर्जर इतिहास /मारवाड़ी
कविता/NEW UPDATE/ RBSE /BSER CLASS – 12/10 नोट्स
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