राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड कक्षा 10वीं हिंदी पाठ्यपुस्तक आधारित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर ,अध्याय -07 छाया मत छूना गिरिजा कुमार माथुर
जीवन
परिचय-
- गिरिजा कुमार माथुर का जन्म ग्वालियर जिले के अशोक नगर कस्बे में 22 अगस्त सन 1918 में हुआ था।
- वे एक कवि, नाटककार और समालोचक के रूप में जाने जाते हैं।
- गिरिजाकुमार की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई।
- उनके पिता ने घर में ही उन्हें अंग्रेजी, इतिहास, भूगोल आदि पढाया।
- स्थानीय कॉलेज से इण्टरमीडिएट करने के बाद वे 1936 में स्नातक उपाधि के लिए ग्वालियर चले गये।
- 1938 में उन्होंने बी.ए. किया, 1941 में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय में एम.ए. किया तथा वकालत की परीक्षा भी पास की।
- सन 1940 में उनका विवाह दिल्ली में कवयित्री शकुन्त माथुर से हुआ।
- शुरुआत में उन्होंने वकालत की, परन्तु बाद में उन्होंने आकाशवाणी एवं दूरदर्शन में नौकरी की।
साहित्यिक परिचय-
गिरिजाकुमार की काव्यात्मक शुरुआत 1934 में ब्रजभाषा
के परम्परागत कवित्त-सवैया लेखन से हुई। उनकी रचना का प्रारम्भ द्वितीय विश्वयुद्ध
की घटनाओं से उत्पन्न प्रतिक्रियाओं से युक्त है तथा भारत में चल रहे राष्ट्रीय
स्वतंत्रता आन्दोलन से प्रभावित है। कविता के अतिरिक्त वे एकांकी नाटक, आलोचना, गीति-काव्य तथा
शास्त्रीय विषयों पर भी लिखते रहे हैं। भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद की
साहित्यिक पत्रिका ‘गगनांचल’ का संपादन करने के अलावा उन्होंने कहानी, नाटक तथा
आलोचनाएँ भी लिखी हैं। उनका ही लिखा एक भावान्तर गीत “हम होंगे कामयाब” समूह गान के
रूप में अत्यंत लोकप्रिय है।
काव्य रचनाएँ :- गिरिजाकुमार
माथुर जी की प्रमुख काव्य- रचनाएँ निम्नलिखित हैं।
नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले, भीतरी नदी की यात्रा इत्यादि। 1991 में कविता-संग्रह “मैं
वक्त के सामने” के लिए उन्हें हिंदी के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया
गया।
भाषा-शैली :- भाषा
के दो रंग उनकी कविताओं में मौजूद हैं। वे जहाँ रोमानी कविताओं में छोटी-छोटी
ध्वनि वाले बोलचाल के शब्दों का प्रयोग करते हैं, वहीं क्लासिक मिज़ाज की कविताओं में लम्बी और गंभीर ध्वनि वाले शब्दों
का इस्तेमाल करते हैं।
छाया मत छूना
कविता का सार:
प्रस्तुत कविता “छाया मत छूना” में कवि
गिरिजाकुमार माथुर जी ने हमें यह संदेश देने की कोशिश की है कि हमें अपने अतीत के
सुखों को याद कर अपने वर्तमान के दुःख को और गहरा नहीं करना चाहिए। अर्थात व्यक्ति
को अपने अतीत की यादों में डूबे न रहकर, अपनी वर्तमान स्थिति का डट कर सामना करना चाहिए और
अपने भविष्य को उज्जवल बनाना चाहिए। कवि हमें यह बताना चाहता है कि इस जीवन में
सुख और दुःख दोनों ही हमें सहन करने पड़ेंगे। अगर हम दुःख से व्याकुल होकर अपने
अतीत में बिताए हुए सुंदर दिन या सुखों को याद करते रहेंगे, तो हमारा दुःख
कम होने की बजाय और बढ़ जाएगा। हमारा भविष्य भी अंधकारमय हो जाएगा। इसलिए हमें अपने
वर्तमान में आने वाले दुखों को सहन करके, अपने भविष्य को उज्जवल बनाने का प्रयास करना चाहिए।
परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण
सप्रसंग व्याख्या
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ
सुहावनी
छवियों की चित्र-गंध फैली
मनभावनी;
तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी,
कुंतल के फूलों की याद बनी
चाँदनी।
भूली सी एक छुअन बनता हर जीवित
क्षण
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
छाया मत छूना कविता का भावार्थ
:- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि छाया मत छूना अर्थात अतीत की पुरानी यादों
में जीने के लिए मना कर रहा है। कवि के अनुसार, जब हम अपने अतीत के बीते हुए सुनहरे पलों को याद करते हैं, तो वे हमें बहुत प्यारे लगते हैं, परन्तु जैसे ही हम यादों को भूलकर वर्तमान में वापस
आते हैं, तो हमें उनके
अभाव का ज्ञान होता है। इस तरह हृदय में छुपे हुए घाव फिर से हरे हो जाते हैं और
हमारा दुःख बढ़ जाता है।
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपने पुराने मीठे पलों को याद कर
रहा है। ये सारी यादें उनके सामने रंग-बिरंगी छवियों की तरह प्रकट हो रही हैं, जिनके साथ उनकी सुगंध भी है। कवि
को अपने प्रिय के तन की सुगंध भी महसूस होती है। यह चांदनी रात का चंद्रमा कवि को
अपने प्रिय के बालों में लगे फूल की याद दिला रहा है। इस प्रकार हर जीवित क्षण जो
हम जी रहे हैं, वह पुरानी यादों
रूपी छवि में बदलता जाता है। जिसे याद करके हमें केवल दुःख ही प्राप्त हो सकता है, इसलिए कवि कहते हैं छाया मत छूना, होगा दुःख दूना।
यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया;
जितना ही दौड़ा तू उतना ही
भरमाया।
प्रभुता का शरण बिंब केवल
मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात
कृष्णा है।
जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर
पूजन
छाया मत छूनामन, होगा दुख दूना।
छाया मत छूना कविता का भावार्थ :- इन पंक्तियों
में कवि हमें यह सन्देश देना चाहते हैं कि इस संसार में धन, ख्याति, मान, सम्मान
इत्यादि के पीछे भागना व्यर्थ है। यह सब एक भ्रम की तरह हैं।
कवि का मानना यह है कि हम अपने जीवन-काल में धन, यश, ख्याति
इन सब के पीछे भागते रहते हैं और खुद को बड़ा और मशहूर समझते हैं। लेकिन जैसे हर
चांदनी रात के बाद एक काली रात आती है, उसी तरह सुख के बाद दुःख भी आता है। कवि ने इन सारी भावनाओं को छाया
बताया है। हमें यह संदेश दिया है कि इन छायाओं के पीछे भागने में अपना समय व्यर्थ
करने से अच्छा है, हम वास्तविक जीवन की कठोर सच्चाइयों का सामना डट कर करें। यदि हम
वास्तविक जीवन की कठिनाइयों से रूबरू होकर चलेंगे, तो हमें इन छायाओं के दूर चले जाने से दुःख का सामना नहीं करना
पड़ेगा। अगर हम धन, वैभव, सुख-समृद्धि इत्यादि के पीछे भागते रहेंगे, तो
इनके चले जाने से हमारा दुःख और बढ़ जाएगा।
दुविधा हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं,
देह सुखी हो पर मन के दुख का
अंत नहीं।
दुख है न चाँद खिला शरद-रात
आने पर,
क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत
जाने पर?
जो न मिला भूल उसे कर तू
भविष्य वरण,
छाया मत छूना
मन, होगा दुख दूना।
छाया मत छूना कविता का भावार्थ :- कवि कहता है कि आज के इस युग में मनुष्य अपने कर्म पथ पर चलते-चलते जब
रास्ता भटक जाता है और उसे जब आगे का रास्ता दिखाई नहीं देता, तो
वह अपना साहस खो बैठता है। कवि का मानना है कि इंसान को कितनी भी सुख-सुविधाएं मिल
जाएं वह कभी खुश नहीं रह सकता, अर्थात वह बाहर से तो सुखी दिखता है, पर उसका मन किसी ना किसी कारण से दुखी हो जाता है। कवि के अनुसार, हमारा
शरीर कितना भी सुखी हो, परन्तु हमारी आत्मा के दुखों की कोई सीमा नहीं है। हम तो किसी भी
छोटी-सी बात पर खुद को दुखी कर के बैठ जाते हैं। फिर चाहे वो शरद ऋतू के आने पर
चाँद का ना खिलना हो या फिर वसंत ऋतू के चले जाने पर फूलों का खिलना हो। हम इन सब
चीजों के विलाप में खुद को दुखी कर बैठते हैं।
इसलिए कवि ने हमें यह संदेश दिया है कि जो चीज़ हमें ना मिले या फिर
जो चीज़ हमारे बस में न हो, उसके लिए खुद को दुखी करके चुपचाप बैठे रहना, कोई
समाधान नहीं हैं, बल्कि हमें यथार्थ की कठिन परिस्थितियों का डट कर सामना करना चाहिए
एवं एक उज्जवल भविष्य की कल्पना करनी चाहिए।
परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही
है?
उत्तर-कवि ने यथार्थ के पूजन की बात इसलिए कही है
क्योंकि यथार्थ ही जीवन की सच्चाई है। बीते समय की सुखद यादों में खोए रहने से
वर्तमान का यथार्थ अच्छा नहीं बन जाता। वर्तमान में हमारे सामने जो भी
परिस्थितियाँ हैं, उन्हें
न स्वीकारना, उनसे
पलायन करना कायरता के लक्षण हैं। हमें कठिन यथार्थ का साहस से सामना करना चाहिए
तथा उन पर विजय पाते हुए आगे बढ़ना चाहिए। इससे भविष्य को सुंदर और सुखमय बनाने का
हौंसला मिलता है।
प्रश्न 2.‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?
उत्तर-‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ का भाव कविता की निम्न पंक्ति में व्यक्त हुआ है ‘जो न मिला भूल उसे कर भविष्य का वरण’।
प्रश्न 3.भाव स्पष्ट
कीजिए
प्रभुता
का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर
चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
उत्तर-भाव
यह है कि प्रभुता का शरणबिंब अर्थात् ‘बड़प्पन
का अहसास’ एक छलावा था भ्रम मात्र है जो मृग मारीचिका
के समान है। जिस प्रकार हिरन रेगिस्तान की रेत की चमक को पानी समझकर उसके पास
भागकर जाता है, परंतु पानी न पाकर निराश होता है। इसी बीच
वह अन्यत्र ऐसी ही चमक को पानी समझकर भागता-फिरता है। इसी प्रकार मनुष्य के लिए यह
‘बड़प्पन का भाव’ एक छल बनकर रह जाता है। मनुष्य को याद रखना चाहिए
कि चाँदनी रात के पीछे अमावस्या अर्थात् सुख के पीछे दुख छिपा रहता है। मनुष्य को
सुख-दुख दोनों को अपनाने के लिए तत्पर रहना चाहिए।
प्रश्न 4.‘छाया’ शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है? कवि ने उसे छूने के लिए
मनां क्यों किया है?
उत्तर-‘छाया’ शब्द का प्रयोग कवि
ने बीते समय की सुखंद यादों के लिए किया है। ये यादें हमारे मन में उमड़ती-घुमड़ती
रहती हैं। कवि इन्हें छूने से इसलिए मना करता है क्योंकि इन यादों से हमारा दुख कम
नहीं होता है, इसके
विपरीत और भी बढ़ जाता है। हम उन्हीं सुखद यादों की कल्पना में अपना वर्तमान खराब
कर लेते हैं।
प्रश्न 5.‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग
किस अर्थ में हुआ है?
उत्तर-मई-जून महीने की चिलचिलाती गरमी में
रेगिस्तान में दूर से चमकती रेत पानी का भ्रम पैदा करती है। गरमी में प्यास से
बेहाल मृग उसी चमक को पानी समझकर उसके पास दौड़कर जाता है और निराश होता है। वहाँ
से उसे कुछ दूर पर यही चमक फिर पानी का भ्रम पैदा करती है और वह रेगिस्तान में
इधर-उधर भटकता-फिरता है। इस कविता में इसका प्रयोग बड़प्पन के अहसास के लिए किया
गया है जिसके पीछे मनुष्य आजीवन भागता-फिरता है।
प्रश्न 6.‘छाया मत
छूना’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता
है?
अथवा
‘छाया मत छूना’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-‘छाया मत छूना’ कविता
के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि जीवन में सुख और दुख दोनों आते-जाते रहते
हैं। विगत समय के सुख को याद करके वर्तमान के दुख को बढ़ा लेना अनुचित है। विगत की
सुखद काल्पनिकता से जुड़े रहना और वर्तमान के यथार्थ से भागने की अपेक्षा उसकी
स्वीकारोक्ति श्रेयकर है। यह कविता अतीत की यादों को भूलकर वर्तमान का सामना करने
एवं भविष्य के वरण का संदेश देती है।
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