google.com, pub-9828067445459277, DIRECT, f08c47fec0942fa0 Buddhist & Prostitute Story: बुद्ध ने आनंद को वेश्या के पास क्यों जाने दिया?

Buddhist & Prostitute Story: बुद्ध ने आनंद को वेश्या के पास क्यों जाने दिया?

 

Buddhist & Prostitute Story: बुद्ध ने आनंद को वेश्या के पास क्यों जाने दिया?

यह उन दिनों की बात है जब बुद्ध की शरण में दीक्षा ले रहे भिक्षुओं को कई नियमों का पालन करना पड़ता था। वे किसी के भी घर तीन दिन से ज्यादा नहीं रुक सकते थे। यह नियम स्वयं बुद्ध ने बनाया था। उद्देश्य यह था कि उनकी सेवा में लगे लोगों को किसी तरह की कोई तकलीफ न हो। बुद्ध और उनके भिक्षु जब यात्राओं पर निकलते थे, तो वे रास्ते में आने वाले गरीब घरों में ही शरण लेते थे। वे इन घरों में अधिकतम तीन दिनों तक रुक सकते थे। तीन दिनों के बाद उन्हें अगली यात्रा पर निकल जाना पड़ता था।

एक दिन वे ऐसे ही एक गांव में पहुंचे। बुद्ध और उनके शिष्य अपने रहने के लिए जगह ढूंढ रहे थे। बुद्ध के शिष्य आनंद को एक वेश्या ने अपने घर रहने को आमंत्रित किया। वह बहुत ही खूबसूरत युवती थी। आनंद ने उसे कहा कि वह उसके घर पर रह सकता है, पर इसके लिए उसे बुद्ध से अनुमति लेनी होगी।
क्या तुम्हें इसके लिए सचमुच अपने गुरू से अनुमति लेनी होगी? युवती ने पूछा।
नहीं, मैं जानता हूं कि बुद्ध मेरी बात मान जाएंगे, पर उनसे पूछना एक रिवाज है।
ऐसा जवाब देकर आनंद बुद्ध के पास पहुंचे।
हे बुद्ध, इस गांव में तीन दिनों के विश्राम के दौरान एक स्त्री मुझे अपने घर पर आमंत्रित कर रही है। लेकिन वह स्त्री एक वेश्या है। क्या मैं उसके आमंत्रण को स्वीकार कर सकता हूं? आनंद ने बुद्ध से पूछा।
बुद्ध ने आनंद की ओर मुस्कराकर देखते हुए कहा अगर वह तुम्हें इतने प्यार से आमंत्रित कर रही है, तो तुम्हें उसके निमंत्रण को ठुकराना नहीं चाहिए। जाओ और आराम से उसके घर ही रहो।
बुद्ध की यह बात दूसरे शिष्यों को गवारा न हुई। उन्होंने बुद्ध से सवाल पूछा-
आप आनंद को एक वेश्या के घर कैसे भेज सकते हैं? यह भिक्षुओं के आचरण के खिलाफ है।
बुद्ध ने जवाब दिया- तुम लोग थोड़ा इंतजार करो। तुम्हें तीन दिनों में अपने सवाल का जवाब मिल जाएगा।
सारे शिष्य चुप हो गए।
फिर आनंद अगले तीन दिनों के लिए उस वेश्या के घर रहने चले गए और बाकी के शिष्य आनंद की जासूसी में लग गए और सारी बातें बुद्ध के कान में डालने लगे।
बुद्ध शालीन मुस्कान लिए चुप बने रहे।
पहले दिन वेश्या के घर से आनंद और महिला के गाने की आवाज़ आई। यह बहुत नई बात थी। एक भिक्षु का वेश्या के साथ यूं गाना गाना। शिष्यों ने कहा- बस यह तो गया!
पर दूसरे दिन घर से गाने के साथ नाचने की भी आवाज़ें आने लगीं।
अब सारे शिष्य एक स्वर में कहने लगे - अब तो यह पक्का ही गया!
तीसरे दिन तो सचमुच ही उन्होंने खिड़की से आनंद और उस महिला को नाचते-गाते देख लिया।
सबका यह अनुमान था कि आनंद इतनी मौज में है, तो वह भिक्षुओं के साथ आगे की यात्रा पर नहीं आएगा।
अगले दिन सभी भिक्षु कानाफूसियों के बीच चौक पर जमा हुए।
सभी ने आनंद के आने की उम्मीद छोड़ दी थी। सभी सोच रहे थे कि वह इतनी सुंदर स्त्री का साथ छोड़ भिक्षुओं के साथ क्यों आएगा। परंतु तभी सबने आनंद को एक सुंदर स्त्री के साथ अपनी ओर आते देखा।
वह सुंदर स्त्री एक महिला भिक्षुक का रूप धरे हुए थी।
बुद्ध उसे देखकर मुस्करा रहे थे जबकि बाकी विस्मित होकर खुले मुंह से आनंद और उस महिला भिक्षुक को ताक रहे थे।
बुद्ध ने आनंद की पीठ पर हाथ रखते हुए भिक्षुओं को संबोधित किया- अगर खुद पर भरोसा है, तो आपको कोई भ्रष्ट नहीं कर सकता। बल्कि अगर आपका चरित्र बलवान है, तो आप भ्रष्ट को भी चरित्रवान बना सकते हैं।
ऐसा कहते हुए बुद्ध ने वेश्या से भिक्षुक बनी महिला का स्वागत किया और सभी लोग आगे की यात्रा पर निकल पड़े।

बुद्ध और आनंद की यह कहानी हमें सिखाती है कि अगर हमारी इच्छाशक्ति मजबूत है, तो हम किसी भी स्थिति के गुलाम नहीं बनते। यह बहुत मजेदार बात है कि खोट तो हमारे अपने दिल में होता है और शक हम दूसरों पर करते हैं। अपने दिल को साफ रखेंगे, तो दुनिया भी हमें साफ नजर आएगी। किसी किताब को कभी उसके कवर से न आंकिए। इस बात को समझ लें कि हम अगर पारदर्शी जीवन जिएं, तो हमें किसी कवर की कभी जरूरत ही नहीं पड़ेगी।

 



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