google.com, pub-9828067445459277, DIRECT, f08c47fec0942fa0 बगड़ावत कथा -11

बगड़ावत कथा -11


                            बगडावत कथा -11

हीरा रावजी के दरबार में जाकर फरियाद-फरियाद चिल्लाती है। रावजी पूछते है हीरा क्या बात हैं। हीरा कहती है दरबार बाईसा के पेट में बहुत दर्द हो रहा है और लगता है बीमारी इनकी जान लेकर ही छोड़ेगी। रावजी नीमदेवजी को कहते है भाई नीमदेव रानीजी की बीमारी बढ़ती ही जावे है। कोई अच्छा जाना-माना भोपा हो तो पता करवाओं। ६ महीनो से ये बीमारी निकल ही नहीं रही है। नीमदेवजी उडदू के बाजार में आते हैं। वहाँ उन्हें चांवडिया भोपा मिलता हैं और नीमदेवजी से कहता है कि डाकण (डायन), भूत, छोट (प्रेत), मूठ (दुष्ट आत्मा) को तो मैं मिनटों में खत्म कर देता हूं। उसे नीमदेवजी अपने साथ महलों में ले जाते हैं। नीमदेवजी हीरा से कहते हैं कि इसे ले जा और तेरे बाईसा को दिखा। हीरा भील को रानी जयमती के महल में ले जाती है। रानी अपनी माया से भोपा में भाव डाल देती है जिससे भोपा रावजी के पास आकर कहता है कि मैं रानी जी को ठीक कर सकता हूँ। भोपा ने बताया कि रानी जयमती ने भैरुजी से अपने लिए राजा जैसा वर मांगा था। उन्होनें राजा जैसा वरतो पा लिया मगर भैरुजी की जात अभी तक नहीं जिमाई। इसलिये भैरुजी का दोष लग गया। जात जिमानी पडेगी,नीमदेवजी हीरा से पूछते हैं कि जात जिमाने में क्या लगेगा? हीरा बताती है की १२ मन का पूवा, १२ मणकी पापड़ी, १२ मण का सुवर जिसके बाल खड़े नहीं होवे, खून निकले हुआ नहीं हो, को बाईसा पर वारकर छोड़ो तो बाईसा बचे, नहीं तो नहीं बचेगी। और यह टोटका रावजी के हाथ का ही लगेगा और किसी के हाथ का सूअर नहीं चढ़ेगा। और ये बात सुनते ही रावजी सूअर का शिकार करने के लिये अपनी सेना तैयार करने का हुकम देते हैं। उसमें सभी उमराव दियाजी, कालूमीर, सावर के उमराव और रावजी के खासम खास सरदार और ५०० घुड़ सवार तैयार हुए।इतने में दियाजी ने कहा रावजी मेहलों में पहरा अच्छा लगाना क्योकि २४ बगड़ावत भाई नौलखा बाग में डटे हुए है। वो कहीं रानी सा को उठा कर न ले जाये। रावजी कहते है वो तो मेरे भाई हैं और उन्होनें ही मेरी शादी करवाई और पैसा भी उन्होने ही खर्च किया। वो ऐसा नहीं कर सकते। फिर भी रावजी शिकार पर जाने से पहले नीमदेवजी को पहरे की जिम्मेदारी सोंप कर जाते हैं। उधर रानी जयमती अपने पसीने से एक सूअर बनाती है। उसका वजन १२ मण होता है। और अपनी माया से उसे रावजी के आगे छोड़कर कहा की हे सुवरड़ा राजाजी को नाग पहाड़ से भी आगे दौड़ाता हुआ ले जाना और ४ दिनो तक वापस आने का अवसर मत देना। इस तरह रावजी सुवर के पीछे-पीछे नाग पहाड़ से आगे निकल जाते हैं। नाग पहाड़ पहुंच कर वह माया से बना सूअर गायब हो जाता है।







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