google.com, pub-9828067445459277, DIRECT, f08c47fec0942fa0 बगड़ावत देवनारायण फड़ भाग 4

बगड़ावत देवनारायण फड़ भाग 4


4 बगड़ावत और रावजी नौलखा बाग में


नियाजी से मिलकर नीमदेवजी वापिस रावजी के पास जाकर कहते हैं कि वे तो बाघ जी के बेटे बगड़ावत हैं। रावजी कहते हैं कि फिर तो वे अपने ही भाई है ।  रावजी सवाई भोज के पास आकर उनको अपना धर्म भाई बना लेते हैं। और उन्हें बड़े आदर के साथ नौलखा बाग में ठहराते हैं और खूब दारू पिलाते हैं।
 यह बात सुनकर पातु शर्त के लिये तैयार हो जाती है और सवाई भोज के पास जाती है और अपनी सारी दारु सवाई भोज की हथेली में उंडेलती है। यहां तक की पातु की सारी दारु खतम हो जाती है। उसकी दोनों दारु की झीलें सावन और भादवा खाली हो जाती हो जाती है।    मगर सवाई  भोज की हथेली खाली रह जाती है, भर नहीं पाती है। यह देखकर पातु घबरा जाती है और सवाई भोज के पांव पकड़ लेती है और कहती है कि आप मुझे अपनी राखी डोरा की बहन बना लीजिये। और सवाई भोज को राखी बान्ध कर अपना भाई बना लेती है।  बगड़ावत नौलखा बाग से वापस आते समय मेघला पर्वत पर पातु द्वारा दिया गया दारु का बीड़ा खोलते हैं। उसमें से इतनी दारु बहती है कि धोबी उसमें अपने कपड़े धोने लगते है। बगड़ावत वहां काफी मात्रा में शराब गिराते है और उससे कुल्ले करते हैं। वह शराब इतनी मात्रा में जमीन पर उण्डेलते है कि शराब रिस कर पाताल लोक में जाने लगती है जो पृथ्वी को अपने शीश पर धारण करने वाले राजा बासक के सिर पर जाकर टपकती हैं, उससे शेषनाग कुपित हो जाते है। गुस्सा होते हुए राजा बासक तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु के पास जाकर बगड़ावतों की शिकायत करते हैं और कहते हैं कि हे नारायण बगड़ावतों को सजा देनी होगी। उन्होने मेरा धर्म भ्रष्ट कर दिया है। आप कुछ करिये भगवान।

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