कक्षा-11 विषय- हिन्दी अनिवार्य
पाठ -11 ‘नमक का दरोगा’
लेखक परिचय- मुंशी प्रेमचंद
जीवन
परिचय-
· मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 ई. में उत्तर प्रदेश के लमही
गाँव में ।
· प्रेमचंद का मूल नाम धनपतराय
था।
· प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है।
· माता का नाम आनन्दी देवी
· पिता मुंशी अजायबराय
· उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार
· शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था।
· गाँधी जी के असहयोग आंदोलन
में सक्रिय होने के कारण उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।
· राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ने
के बाद भी उनका लेखन कार्य सुचारु रूप से चलता रहा।
· ये अपनी पत्नी शिवरानी देवी
के साथ अंग्रेजों के खिलाफ आदोलनों में हिस्सा लेते रहे।
· इनके जीवन का राजनीतिक संघर्ष
इनकी रचनाओं में – सामाजिक संघर्ष बनकर सामने आया जिसमें जीवन का यथार्थ और आदर्श
दोनों थे।
· इनका निधन 8 अक्टूबर 1936 ई. में हुआ।
रचनाएँ- प्रेमचंद का साहित्य संसार अत्यंत
विस्तृत है। ये हिंदी कथा-साहित्य के शिखर पुरुष माने जाते हैं। इनकी प्रमुख रचनाएँ
निम्नलिखित हैं-
उपन्यास- सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि, गोदान।
कहानी-संग्रह-सोजे-वतन, मानसरोवर (आठ खंड में), गुप्त धन।
नाटक- कर्बला, संग्राम, प्रेम की देवी।
निबंध-संग्रह- कुछ विचार, विविध प्रसंग।
साहित्यिक विशेषताएँ-हिंदी साहित्य के
इतिहास में कहानी और उपन्यास की विधा के विकास का काल-विभाजन प्रेमचंद को ही
केंद्र में रखकर किया जाता रहा है। प्रेमचंद ही
पहले रचनाकार हैं जिन्होंने कहानी और उपन्यास की विधा को कल्पना और रुमानियत के
धुंधलके से निकालकर यथार्थ की ठोस जमीन पर प्रतिष्ठित किया। आदशो आदर्शोन्मुख यथार्थवाद स्वयं उन्हीं की गढ़ी हुई संज्ञा है।साहित्य के बारे में प्रेमचंद का कहना है-
‘‘ साहित्य वह
जादू की लकड़ी है जो पशुओं में ईंट-पत्थरों में पेड़-पौधों में भी विश्व की आत्मा
का दर्शन करा देती है। ”
नमक का दारोगा पाठ में आये महत्वपूर्ण
मुहावरे
· घर में औधरा, मस्जिद में दीया
अवश्य जलाएँगे।– अर्थ ( अर्थात् घर की स्थति
दयनीय है
फिर भी बाहर जाकर दिया जलाएंगे अर्थात् समाज सेवा करेंगे )
·
पौ बारह होना - अर्थ
(सभी ओर से जीत अथवा लाभ होना।)
· चोरी - छिपे – अर्थ (गुप्त रूप से )
· कगारे पर का वृक्ष
होना– अर्थ (जिसका अंत समीप हो, किनारे खड़ा पेड़।)
· पीर का मजार – अर्थ ( पीर के मजार पर चढ़ावा चढ़ाना अर्थात् घुस देना )
· पूर्णमासी का चांद – अर्थ ( पूर्णमासी का चांद ,एक महीने में
केवल एक बार निकलता है
ठीक उसी प्रकार वेतन होता है। वह भी महीने में एक बार मिलता है।
· मीठी नींद में
सोना – अर्थ ( अच्छी नींद में सोना)
· गोलमाल – अर्थ ( किसी उलझन में )
· चलते - पुरजे आदमी – अर्थ ( जो किसी भी चीज में अत्यधिक सक्रिय हो )
· टीका टिपण्णी करना । – अर्थ ( किसी
के विषय में बात करना , चुगली करना )
· उछल पड़े – अर्थ ( खुश होना )
· उदारता का सागर
उमड़ना – अर्थ ( अत्यधिक आदर भाव देना , सत्कार करना )
पाठ का सारांश –‘नमक का दरोगा’
‘नमक का दरोगा’ प्रेमचंद की बहुचर्चित कहानी है जो आदर्शोन्मुख यथार्थवाद का एक
मुकम्मल उदहारण है | यह कहानी धन के ऊपर धर्म की जीत है | ‘धन’ और ‘धर्म’ को क्रमश: सद्वृत्ति और असद्द्वृत्ति, बुराई और अच्छाई, असत्य और
सत्य कहा जा सकता है | कहानी में इनका
प्रतिनिधित्व पंडित अलोपीदीन और मुंशी वंशीधर नामक पात्रों ने किया है | ईमानदार कर्मयोगी मुंशी वंशीधर को खरीदने में असफल रहने के
बाद पंडित अलोपीदीन अपने धन की महिमा का उपयोग कर उन्हें नौकरी से हटवा देते है, लेकिन अंत: सत्य के आगे उनका सिर झुक जाता है | वे सरकारी विभाग से बर्खास्त वंशीधर को बहुत ऊँचे वेतन और
भत्ते के साथ अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त करते है और गहरे
अपराध-बोध से भरी हुई वाणी में निवेदन करते है –
“परमात्मा से यही प्रार्थना है कि वह आपको सदैव
वही नदी के किनारे वाला बेमुरौवत, उद्दंड, किंतु धर्मनिष्ठ दरोगा बनाए रखे |”
नमक का विभाग बनने के बाद लोग नमक का व्यापार
चोरी-छिपे करने लगे | इस काले व्यापार
से भ्रष्टाचार बढ़ा | अधिकारीयों के
पौ-बारह थे | लोग दरोगा के पद के लिए लालायित थे | मुंशी वंशीधर भी रोज़गार को प्रमुख मानकर इसे खोजने चले | इनके पिता अनुभवी थे | उन्होंने
घर की दुर्दशा तथा अपनी वृद्धावस्था का हवाला देकर नौकरी में पद की और ध्यान न
देकर ऊपरी आय वाली नौकरी को बेहतर बताया | वे कहते
है कि मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते
लुप्त हो जाता है | ऊपरी आय बहता हुआ
स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है | आवश्यकता
व अवसर देखकर विवेक से काम करो | वंशीधर ने पिता
ने की बातें ध्यान से सुनीं ओर चल दिए | धैर्य, बुद्धि आत्मावलंबन वा भाग्य के कारण नमक विभाग के दरोगा पद
पर प्रतिष्ठित हो गए | घर में खुशी छा
गई |
सर्दी के मौसम की रात में नमक के सिपाही नशे
में मस्त थे | वंशीधर ने छह महीने में ही अपनी
कार्यकुशलता व उत्तम आचार से अफसरों का विश्वास जीत लिया था | यमुना नदी पर बने नावों के पुल से गाड़ियों की आवाज़ सुनकर वे
उठ गए | उन्हें गोलमाल कि शंका थी | जाकर देखा तो गाडियों की कतार दिखाई दी | पूछताछ पर पता चला कि उसमें नमक है |
पंडित अलोपीदीन अपने सजीले रथ में ऊँघते हुए जा
रहे थे तभी गाड़ी वालों ने गाड़ियाँ रोकने की खबर दी | पंडित
सारे संसार में लक्ष्मी को प्रमुख मानते थे | न्याय, निति सब लक्ष्मी के खिलौने है | उसी घमंड
में निश्चित होकर दरोगा के पास पहुँचे | उन्होंने
कहा कि मेरी सरकार तो आप ही है | आपने व्यर्थ ही
कष्ट उठाया | मैं सेवा में स्वयं आ ही रहा था | वंशीधर पर ईमानदारी का नशा था | उन्होंने
कहा कि हम अपना ईमान नही बेचते | आपको गरफ्तार
किया जाता है |
यह आदेश सुनकर पंडित अलोपीदीन हैरान रह गए | यह उनके जीवन की पहली घटना थी | बदलू सिंह
उसका हाथ पकड़ने से घबरा गया, फिर अलोपीदीन ने
सोचा कि नया लड़का है | दीनभाव में
बोले-आप ऐसा न करें | हमारी इज्जत
मिट्टी में मिल जाएगी | वंशीधर ने साफ़
मना कर दिया | अलोपीदीन ने चालीस हजार तक की रिश्वत
देनी चाही, परंतु वंशीधर ने उनकी एक न सुनी | धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला |
सुबह तक हर जबान पर यही किस्सा था | पंडित के व्यवहार कि चारों तरफ निंदा हो रही थी | भ्रष्ट भी उसकी निंदा कर रहे थे | अगले दिन
अदालत में भीड़ थी | अदालत में सभी
पंडित अलोपीदीन के माल के गुलाम थे | वे उनके
पकडे जाने आक्रमण को रोकने के लिए वकीलों की फ़ौज तैयार की गई | न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया | वंशीधर के पास सत्य था, गवाह लोभ
से डाँवाडोल थे |
मुंशी जी को न्याय में पक्षपात होता दिख रहा था
| यहाँ के कर्मचारी पक्षपात करने पर तुले
हुए थे | मुक़दमा शीघ्र समाप्त हो गया | डिप्टी मजिस्ट्रेट ने लिखा कि पंडित अलोपीदीन के विरुद्ध
प्रमाण आधारहीन है | वे ऐसा कार्य नही
कर सकते | दरोगा का दोष अधिक नही है, परन्तु एक भले आदमी को दिए कष्ट के कारण उन्हें भविष्य में
ऐसा न करने की चेतावनी दी जाती है | इस फैसले से सबकी
बाँछे खिल गई | खूब पैसा लुटाया गया जिसने अदालत की नींव
तक हिला दी | वंशीधर बाहर निकले तो चारों तरफ से
व्यंग्य की बातें सुनने को मिलीं | उन्हें न्याय, विद्द्ववता, उपाधियाँ आदि सभी
निरर्थक लगने लगे |
वंशीधर की बर्खास्तगी
का पत्र एक सप्ताह में ही आ गया। उन्हें कर्त्तव्यपरायणता
का दंड मिला। दुखी मन से वे घर चले। उनके पिता खूब बड़बड़ाए। यह अधिक ईमानदार बनता
है। जी चाहता है कि तुम्हारा और अपना सिर फोड़ लूँ। उन्हें अनेक कठोर बातें कहीं।
माँ की तीर्थयात्रा की आशा मिट्टी में मिल गई। पत्नी कई दिन तक मुँह फुलाए रही।
एक सप्ताह के बाद अलोपीदीन सजे रथ में बैठकर
मुंशी के घर पहुँचे। वृद्ध मुंशी उनकी चापलूसी करने लगे तथा अपने पुत्र को कोसने
लगे। अलोपीदीन ने उन्हें ऐसा कहने से रोका और कहा कि कुलतिलक और पुरुषों की कीर्ति
उज्ज्वल करने वाले संसार में ऐसे कितने धर्मपरायण मनुष्य हैं जो धर्म पर अपना सब
कुछ अर्पण कर सकें। उन्होंने वंशीधर से कहा कि इसे खुशामद न समझिए। आपने मुझे
परास्त कर दिया। वंशीधर ने सोचा कि वे उसे अपमानित करने आए हैं, परंतु पंडित की बातें सुनकर उनका संदेह दूर हो गया।
उन्होंने कहा कि यह आपकी उदारता है। आज्ञा दीजिए।
अलोपीदीन ने कहा कि नदी तट पर आपने मेरी
प्रार्थना नहीं सुनी, अब स्वीकार करनी
पड़ेगी। उसने एक स्टांप पत्र निकाला और पद स्वीकारने के लिए प्रार्थना की। वंशीधर
ने पढ़ा। पंडित ने अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर छह हजार वार्षिक वेतन, रोजाना खर्च, सवारी, बंगले आदि के साथ नियत किया था। वंशीधर ने काँपते स्वर में
कहा कि मैं इस उच्च पद के योग्य नहीं हूँ। ऐसे महान कार्य के लिए बड़े अनुभवी
मनुष्य की जरूरत है।
अलोपीदीन ने वंशीधर को कलम देते हुए कहा
कि मुझे अनुभव, विद्वता, मर्मज्ञता, कार्यकुशलता की चाह नहीं। परमात्मा से यही प्रार्थना है कि
वह आपको सदैव वही नदी के किनारे वाला बेमुरौवत, उद्दंड, कठोर, परंतु धर्मनिष्ठ
दरोगा बनाए रखे। वंशीधर की आँखें डबडबा आई। उन्होंने काँपते हुए हाथ से मैनेजरी के
कागज पर हस्ताक्षर कर दिए। अलोपीदीन ने उन्हें गले लगा लिया।
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