बगडावत कथा -30
भैंसासुर दानव जाकर देवनारायण को ललकारता है। देवनारायण अपनी तलवार
से भैंसा सुर का वध कर देते हैं। लेकिन भैंसा सुर दानव के रक्त की बूंदे जमीन पर
गिरते ही और कई दानव पैदा हो जाते हैं। यह देख देवनारायण अपने बायें पांव को झटकते
हैं, उसमें से ६४ जोगणियां और ५२ भैरु निकलते हैं। देवनारायण उन्हें आदेश
देते हैं कि मैं दानवो को मारूंगा और तुम उनके खून की एक भी बूंदजमीन पर गिरने मत
देना। सभी जोगणियां और भैरु अपना खप्पर लेकर तैयार हो जाते हैं, और
देवनारायण एक-एक दानव का संहार करते जाते हैं। भैंसा सुर दानव व अनेक दानवों के मारे जाने की
खबर बिसलदेव जी को लगती है तब बिसलदेव जी देवनारायण को गरड़ा घोड़ा देते हैं जो अपने
ऊपर किसी को भी सवारी नहीं करने देता था और आदमियों को खा जाता था। देवनारायण उस
घोड़े पर बैठकर वहीं एक पत्थर के खम्बे को तलवार से काट कर दो टुकड़े कर देते हैं।
देवनारायण का बल देखकर बिसलदेव जी घबरा जाते हैं और दौड़ते हुए देवनारायण के पास
आकर कहते हैं भगवान मुझसे गलती हुई, क्षमा करें। और बहुत सा धन देकर देवनारायण को वापस खेड़ा चौसला रवाना
करते हैं। इसके बाद देवनारायण और मेहन्दू जी भाट से पूछते हैं कि हमारा क्या-क्या सामान कौन-कौन ले गया है और उसे कैसे
लेकर आना है ? भाटजी
उन दोनों को बताते हैं कि सवाई भोज की बुंली घोड़ी सावर के ठाकुर दियाजी के पास है, उसे
वापस लेकर आना है। ये बात सुनकर मेहन्दू जी कहते हैं कि मैं अभी जाकर सांवर से
बाबासा की घोड़ी छुड़ा कर लाता हूं, और छोछू भाट को साथ लेकर चल देते है। मेहन्दू जी मानकराय बछेरा पर
सवार हो और छोछू भाट फुलेरे बछेरे पर सवार होकर सावर के लिये निकल पड़ते हैं। आगे
एक जगह जाकर रुकते हैं जहां से सावर के लिए दो रास्ते फटतें हैं। मेहन्दू जी भाट
से पूछते हैं भाटजी कौनसे रास्ते जाना चाहिये। भाट कहता है सरकार एक रास्ता एक दिन
का और दूसरा रास्ता तीन दिन का है। एक दिन वाले रास्ते पर खतरा है और तीन दिन वाले
रास्ते पर कोई खतरा नहीं है। आप हुकम करो उसी रास्ते चलते हैं। मेहन्दू जी कहते
हैं कि अपने पास शस्र है, खतरा होगा तो निपट लेगें। और एक दिन वाले रास्ते चल पड़ते हैं। आगे
घना जंगल आता हैं। वहां भगवान शिव और पार्वती जी दोनों विराजमान होते हैं। पार्वती
जी छल करने के लिये नो हाथ लम्बा शेर अपनी माया से बनाकर मेहन्दू जी के सामने छोड़
देती है। मेहन्दू जी शेर देखकर घबरा जाते हैं कि इतना बड़ा शेर तो कभी देखा नहीं और
वो पीछे हट जाते हैं, और वापस खेड़ा चौसला लौट जाते हैं। जब मेहन्दू जी खाली हाथ वापस आते
हैं तब देवनारायण छोछू भाट को लेकर अपने नीलागर घोड़े पर सवार हो सांवर के रास्ते
चल पड़ते हैं। रास्ते में वहीं जाकर रुकते हैं जहां दो रास्ते अलग-अलग दिशा में जाते हैं।
देवनारायण भाटजी से पूछते हैं बाबा भाट कौनसे रास्ते जाना चाहिये। छोछू भाट कहता
है एक रास्ता एक दिन का है जिसमें खतरा ही खतरा है, दूसरा
रास्ता तीन दिन का है। देवनारायण कहते है भाटजी हम तो एक दिन वाले रास्ते ही
जायेगें, और वो आगे चलते हैं। आगे घना जंगल आता है जहां शिवजी आंखे बंद किये
ध्यान में लीन है और पार्वती जी शिव के पांव दबा रही है। पार्वती जी देखती है कि
देवनारायण आ रहे हैं और वह शिवजी से कहती है कि भगवान मैं तो इनकी परीक्षा लूंगी।
शिवजी मना करते हैं कि ये तो स्वयं नारायण हैं आपका शेर मारा जाएगा। पार्वती जी
नहीं मानती हैं और वो अपने शेर को देवनारायण के आगे छोड़ देती है।
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देवनारायण कथा