जोधा और जगरुप का
युद्ध में काम आना
दूसरा हमला रावजी
नेगड़िया पर करते हैं। वहां नियाजी 6 महीने की नींद में सो रहे होते हैं। नियाजी की
रानी नेतुजी हाथ में जल की जारी ले कर उन्हें जगाने आती है। लेकिन नियाजी नहीं
जागते। फिर नेतुजी नियाजी की माँ लखमादे राठौड़ को नियाजी को जगाने के लिए बुलाती
है। लेकिन वे भी उनको नहीं जगा पाती तब नियाजी के लड़के जोधा और जगरुप अपनी माँ को
कहते हैं कि पिताजी को क्युं जगाती हो, उन्हें सोने दो हम लड़ाई करने जायेगें। माँ नेतुजी अपने बेटो को मना करती है कि
अभी तुम छोटे हो ( 9 बरस के) अभी तुम्हारी युद्ध में
जाने की उम्र नहीं है। इस पर जोधा और जगरुप जिद करते हैं कि हम रावजी से अकेले ही
निपट लेगें। पिताजी (नियाजी) को सोने दो, उन्हे मत जगाओ।
नेतु अपने दोनों बेटो
जोधा-जगरुप की आरती करती है और उन्हें युद्ध के
लिये भेजती है। जोधा-जगरुप रावजी से युद्ध करने जाते हैं। दोनों भाई रावजी की फौजों से लडाई करते
हुए कई सामंतो और सरदारों को मार देते हैं और तीन दिन तक लगातार युद्ध करते रहतें हैं। जोधा-जगरुप का युद्ध देखकर
भवानी हीरा को कहती है कि ये दो लड़के युद्ध करने आये हैं और रावजी की फौज के साठ
हजार सैनिकों को खत्म कर दिया। यह देख रानी भवानी ने एक चक्र चलाया औरे दोनों
भाइयों के माथे उतार लिये। जब रावजी ने दीयाजी से पूछा की आज की लड़ाई कैसी रही। दीयाजी ने कहा टोड़ा का रावजी आज काम आ गये और हमने सभी फौज में
मरने वालों की पगड़ी और शव उनके घर भेज दिये हैं।
नेतुजी साड़ीवान से
युद्ध के समाचार पूछती है, तो साड़ीवान कहता है
कि आपके कुवंरों ने युद्ध तो अच्छा किया लेकिन वह दोनों भी मारे गए। जोधा और जगरुप
दोनों ही शादीशुदा नहीं थे इसलिए नेतुजी जब अपने बेटों के कटे हुए सिर और धड़ो की
आरती के लिये आती है, गिरजों से बात करती
है और पूछती है कि तुमने मेरे बेटों की लाशों को क्यों नहीं खाया। गिरजे जोधा-जगरुप की लाशों को देखकर कहती है कि अभी इनकी मरने की उम्र नहीं थी, मगर भवानी को लाने से
यह दिन देखना पड़ा। इसलिए हम इन्हें नहीं खाना चाहती। भवानी जोधा और जगरुप के सिर
अपनी मुण्ड माला में धारण करती है। नेतु अपने दोनों बेटो के कटे हुए धड़ की आरती
उतार कर विलाप करती है। और अपने पति नियाजी को जगाने के लिए महल में चली जाती है।
अटाल्या जी और अन्य भाइयों की युद्ध में मृत्यु तीसरा हमला रावजी की सेना अटाली पर
करती है जहां बगड़ावत भाई अटालयाजी अपनी एक हजार सेना के साथ रावजी के साथ युद्ध
करते हैं। रावजी के छोटे भाई (तीसरे नम्बर के) आमादेजी मारे जाते
हैं। रावजी की सेना से संग्राम करते हुए
अटालयाजी, आलोजी भी युद्ध में
मारे जाते हैं और भवानी उनका सिर काट अपने मुण्ड माला में धारण कर लेती है।
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बगड़ावत देवनारायण फड़