google.com, pub-9828067445459277, DIRECT, f08c47fec0942fa0 शिव-पार्वती विवाह की भूमिका

शिव-पार्वती विवाह की भूमिका

यज्ञ में प्राणोत्सर्ग के समय सती ने भगवान हरि से यह वर माँगा कि मेरा जन्म-जन्मांतर तक शिवजी के चरणों में अनुराग रहे। इसी कारण शरीर भस्म होने के बाद उनका जन्म हिमाचल के घर पर उमा यानी पार्वती के रूप में हुआ। एक बार नारदजी घूमते हुए हिमाचल के घर पहुंचे। हिमाचल ने नारदजी से कहा कि आप त्रिकालज्ञ और सर्वज्ञ हैं, अतः आप इस कन्या का भविष्य बताएँ। नारदजी बोले कि कन्या की रेखाओं से यह स्पष्ट है कि इसे गुणहीन, मानहीन, उदासीन, लापरवाह, योगी, जटाधारी, नंगा और अमंगल वेष वाला मिलेगा। यह सुनकर पार्वती के माता-पिता हिमाचल और मैना दोनों को भारी दुख हुआ, जबकि पार्वतीजी बहुत खुश हुई, क्योंकि वे जानती थीं कि ये सारे अवगुण तो शिवजी की ओर संकेत करते हैं|
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