वनगमन

वनगमन



रामचंद्रजी के वनगमन के अवसर पर पूरे अयोध्या में हाहाकार मच गया और लंका में बुरे शकुन होने लगे। देवलोक में सब हर्षित हो गए, क्योंकि उन्हें इस बात का हर्ष था कि उनके कष्टों का अब अंत होगा और राक्षसों का नाश होगा। अयोध्यावासी वर्तमान दुख से दुखी हो रहे थे, जबकि लंकावासी भावी दुख की आशंका से दुखी हो रहे थे। सिर्फ देवता ही भावी सुख की कल्पना करके खुश थे। ध्यान रखें, बुरी दिखने वाली परिस्थिति के परिणाम सुखकारी भी हो सकते हैं। विपत्ति में प्रायः सौभाग्य का बीज छिपा होता है। रामचंद्रजी का वनगमन बहुत बुरा दिख रहा था, लेकिन इसी कारण राक्षसों का संहार होने वाला था, हालाँकि उस समय देवताओं को छोड़कर कोई यह बात नहीं जानता था। काल की गति अनिर्वचनीय है, अतः कोई नहीं जानता कि किस घटना से परिणामों की वह श्रृंखला शुरु हो जाएगी, जो विपत्ति को अंततः सौभाग्य में बदल देगी।
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