जब गंगा नदी के तट पर आने के बाद रामचंद्रजी ने केवट से नाव लाने को कहा, तो उसने प्रेमवश इंकार कर दिया। निषादराज केवट ने कहा कि वह नाव इसलिए नहीं लाएगा, क्योंकि अहल्या की तरह कहीं उनके पैर लगते ही वह नाव स्त्री न बन जाए। जब इन चरणों को छूते ही पत्थर की शिला सुंदर स्त्री हो गई, तो मेरी नाव भी स्त्री बन जाएगी, जिससे मेरी रोज़ी रोटी का सहारा चला जाएगा। मैं इसी नाव से परिवार का पेट पालता हूँ, इसलिए अगर आप नाव में बैठना चाहते हैं, तो पहले मुझे अपने पैर पखारने दें, तभी मैं नाव पर चढ़ाऊँगा। इस तरह पैर पखारने के बाद केवट ने उन्हें गंगा पार कराई।
जब रामचंद्रजी केवट को नाव की उतराई देने लगे, तो केवट ने मना करते हुए उनके चरण पकड़ लिए। गोस्वामीजी ने इसका वर्णन नहीं किया है, लेकिन किंवदंती है कि केवट ने उतराई लेने से इंकार करते हुए कहा कि जैसे मैंने आपको नदी पार कराई है, उसी तरह आप भी मरने के बाद मुझे वैतरणी नदी पार करा देना। यह सुनकर रामचंद्रजी ने हँसते हुए उसे वैकुंठ धाम में पहुँचाने का वचन दिया।
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