सम्मान की पराकाष्ठा देखें। सबसे आगे रामचंद्रजी चल रहे थे, उनके पीछे सीताजी थीं और सबसे पीछे लक्ष्मणजी थे। सीताजी रामचंद्रजी के पदचिन्हों के बीच में पैर रखकर चल रही थीं और इस बात से डर रही थीं कि कहीं उनके पैर भगवान के पदचिन्हों पर न पड़ जाएँ। इसी तरह लक्ष्मणजी भी मर्यादा की रक्षा कर रहे थे। वे सीताजी और रामचंद्रजी दोनों के पदचिन्हों को बचाते हुए उन्हें दाहिने रखकर चल रहे थे।