देवनारायण की
मालवा से वापसी
दूसरे दिन सुबह
जल्दी ही गोठां जाने के लिये तैयार होते हैं। नारायण को उनकी मामियां और मामाजी
जाने से रोकते हैं कि आप छोटे से मोटे यहाँ हुये हो आपको देख कर तो हम धन्य होते
हैं। आप चले जाओगे तो हमें आपके दर्शन कैसे होंगे। तब नारायण भाट से कहते हैं कि
छीपा से हमारा चित्र छपाकर लाओ फिर हम यहाँ से चलेगें। मालवा में छीपा जाती के
चित्रकार से भाट देवनारायण का चित्र छपवाकर लाते हैं और नारायण को देते हैं।
नारायण अपनी मामियों को अपना चित्र देते हैं और कहते हैं कि आप रोज मेरे इस चित्र
को देखकर मुझे याद कर लेना। साडू माता, हीरा दासी, नापा ग्वाला और कई ग्वाले, छोछू भाट, भाट की माँ डालू बाई और देवनारायण को देवनारायण के नानाजी
और मामा-मामियाँ सभी बड़े प्यार से विदा करते हैं और कहते हैं कि वहाँ जाकर हमें
भूल मत जाना। देवनारायण के साथ मालवा से लौटते समय ६४ जोगणियां और ५२ भैरु जो उनके
बाएँ पाँव में समा जाते हैं वो भी साथ आते हैं।
मालवा से लौटते
समय रास्ते में धार नगरी होती है। धार नगरी में एक सूखा हुआ बाग होता है।
देवनारायण का काफिला वहां रुकता हैं और सभीे वहीं विश्राम करते हैं। जैसे ही
देवनारायण उस बाग में अपने कदम रखते हैं, बाग हरा भरा हो जाता हैं।
वहीं देवनारायण विश्राम करते हैं। उस बाग में धार नगरी की राजकुमारी पीपलदे अपनी
सखियों के साथ देवी के मन्दिर में पूजा करने के लिये आती है। राजकुमारी के सिर पर
सींग होता है और उसके सारे शरीर में कोढ़ होता है। वह रोज इस बाग में देवी की पूजा
करने आया करती थी। राजकुमारी देखती है कि ये बाग तो सूखा हुआ था, आज एक दम हरा भरा कैसे हो गया ? राजकुमारी पीपलदे देवी की पूजा कर अपनी सखियों के साथ आती
है जहाँ देवनारायण के डेरे लगे हुए थे। राजकुमारी देखती है कि ये कौन सिद्ध पुरुष
इस बाग में आकर रुके हैं। इनके आने से बाग हरा भरा हो गया है। वह उनके दर्शनों के
लिये आती है। जैसे ही देवनारायण की दृष्टि पीपलदे पर पडती है उसके माथे का सींग झड़
(गिर) जाता है और उसके शरीर का सारा कोढ़ भी खत्म हो जाता है और वह खूबसूरत हो जाती
है। यह चमत्कार देख कर पीपल बहुत खुश होती है और भगवान के चरणों में गिर पड़ती है
और उसे पिछले जन्म की सारी बात याद आ जाती है कि नारायण के कहने से ही मैंने
बगड़ावतों का संहार किया और मुण्ड माला धारण की थी और नेतु ने मुझे श्राप दिया था
कि माथे पर सींग होगा, कोढीं, लूली-लंगड़ी के रुप में धार में जन्म लेगी। और भगवान विष्णु
देवनारायण अवतार लेगें उनकी दृष्टि से ही मुझे श्राप से मुक्ति मिलेगी। पूर्व जन्म
का आभास होने पर उसे याद आता है कि देवनारायण के साथ ही मेरा विवाह होगा। और
पीपलदे जी अपनी कावरी हथनी पर सवार बधावा गीत गाती हुई राजा के दरबार में आती है ।
राजा जय सिंहदे पीपलदे से पूछते हैं कि यह सब कैसे हुआ और ये बधावा किस के लिये गा
रही हो ? पीपलदे जी कहती है कि
तीनों लोकों के नाथ देवनारायण ने अवतार लिया है। उन्होनें मेरा कोढ़ ठीक किया है, मेरी सारी बीमारी दूर कर दी है। उन्हीं के गीत गा रही हूं
और उन्हीं के साथ मेरा विवाह करवाओ। धार नगरी के राजा जय सिंह जी देवनारायण के जात
पात का पता लगाते हैं, और कहते हैं कि ये विवाह
नहीं हो सकता हैं क्योकि वो हमारे बराबर के नहीं है। पीपलदे विवाह के लिये जिद
करती है और अन्न-जल छोड़ देती है। विवश हो राजा एक युक्ति निकालते हैं कि क्यों न
देवनारायण को गढ़ गाजणा में भेज दःे, वहां का राक्षस राजा
इन्हें मार डालेगा, अपना काम वैसे ही हो
जाएगा। राजा जय सिंह देवनारायण को पत्र लिखते हैं कि हमारी धार नगरी के किवाड़ गढ़
गाजणा का राजा राक्षस ले गया है वो वापस लेकर आओ तो पीपलदे के साथ आपका विवाह
करावें। उधर डेरे से सा माता की घोड़ी को भी राक्षस चोरी कर ले गए। जब देवनारायण को
सा माता की घोड़ी का पता चलता है तब देवनारायण सोचते हैं कि दोनों काम साथ ही करके
आ जायेगें। देवनारायण भैरुजी को पहरे पर लगाकर नीलागर घोड़े पर सवार गढ़ गाजणे से
धार के किवाड़ और सा माता की घोड़ी लेने निकल पड़ते हैं।
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