राजा भोज ने धार में 1034 ईस्वी में भोजशाला के रूप में एक भव्य पाठशाला बनवाकर सरस्वती भव्य प्रतिमा स्थापित की।
🔶 भोजशाला में बसंत पंचमी को माँ सरस्वती की विशेष पूजा अर्चना सूर्योदय के साथ ही के शूरू हो जाती है। इस दिन श्रद्धालु भक्त मंदिर में आकर माँ सरस्वती की पूजा अर्चना कर सरस्वती यज्ञ में भाग लेते हैं। इसके लिए भोजशाला को विशेष रूप से सजाया जाता है और इस शुभ अवसर पर शोभायात्रा भी निकाली जाती है।
जब भोज जीवित थे तो कहा जाता था-
🔶 अद्य धारा सदाधारा सदालम्बा सरस्वती।पण्डिता मण्डिताः सर्वे भोजराजे भुवि स्थिते॥
(आज जब भोजराज धरती पर स्थित हैं तो धारा नगरी सदाधारा (अच्छे आधार वाली) है; सरस्वती को सदा आलम्ब मिला हुआ है; सभी पण्डित आदृत हैं।)
जब उनका देहान्त हुआ तो कहा गया -
🔶 अद्य धारा निराधारा निरालम्बा सरस्वती।पण्डिताः खण्डिताः सर्वे भोजराजे दिवं गते ॥
(आज भोजराज के दिवंगत हो जाने से धारा नगरी निराधार हो गयी है ; सरस्वती बिना आलम्ब की हो गयी हैं और सभी पंडित खंडित हैं।)