सूरदास
जीवन परिचय-
नाम- सूरदास
जन्म- सूरदास का जन्म संवत्
1540 (सन् 1478 ई०) में
जन्म-स्थान- के बारे में मतभेद है। कुछ विद्वान आगरा-मथुरा के बीच स्थित ‘रुनकता’ गाँव को और कुछ दिल्ली के समीप स्थित ‘सीही’ गाँव को इनकी जन्म स्थली मानते हैं।
मृत्यु- 1583 ई०
मृत्यु का स्थान- पारसौली
गुरु- आचार्य बल्लभाचार्य
भक्ति- कृष्णभक्ति
भाषा- ब्रजभाषा के अतुलनीय
कवि
काव्य कृतियां/ रचनाएं - सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी
सूर मथुरा आगरा मार्ग पर यमुना के ‘गऊघाट’ पर निवास करते थे।
सूरदास दास भाव के पदों का गान किया करते
थे।
वल्लभाचार्य जी से भेंट होने पर एवं उनके
उपदेशों से प्रभावित होकर आपने श्रीकृष्ण की सरस लीलाओं का गान प्रारम्भ कर दिया।
साहित्यिक परिचय-सूरदास श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। उनकी लीलाओं का उन्होंने
विस्तार से वर्णन किया है। मान्य रचनाएँ तीन हैं
सूरसागर-यह श्रीकृष्ण की विविध लीलाओं पर आधारित पदों का विशाल संग्रह है।
इसमें कृष्ण को बाल-वर्णन और भ्रमरगीत संग्रहीत हैं।
सूरसारावली-इसमें वल्लभाचार्य जी के पुष्टिमार्ग से सम्बन्धित सेवा पर आधारित
सूरसागर के ही विशेष पद संकलित हैं।
साहित्य लहरी-इसमें सूरदास जी द्वारा कूट शैली (चमत्कारपूर्ण अर्थ) में रचित 118 पद हैं। ब्रजभाषा को साहित्यिक स्वरूप प्रदान करके सूर ने आगामी
कवियों का मार्गदर्शन किया। आपकी कविता के भावपक्ष और कलापक्ष दोनों ही अत्यन्त
प्रभावशाली हैं।
पाठ परिचय
संकलित पद सूरसागर के भ्रमरगीत प्रसंग से लिए गए हैं। प्रथम पद में रसिक
शिरोमणि कृष्ण राधा से उसका परिचय पूछ रहे हैं। अपनी बातों में उलझाकर वह राधा को
अपने संग खेलने को राजी कर लेते हैं।
शेष तीनों पदों में गोपियाँ उद्धव के
परम मित्र कृष्ण पर व्यंग्य बाण चला रही हैं। वे कृष्ण को चोर सिद्ध करते हुए अपनी
विरह व्यथा का परिचय करा रही हैं।
गोपियाँ श्रीकृष्ण को संदेश भेज-भेजकर
हार गई हैं किन्तु उनका कोई उत्तर उन्हें नहीं मिला। लगता है कृष्ण ने संदेश ले
जाने वालों को सिखाकर (बहकाकर) रोक लिया है या फिर मधुवन के कागज जल में गल गए हैं
या स्याही समाप्त हो गई है या फिर कलम बनाने के सरकंडे जल गए हैं।
अंतिम पद में गोपियाँ श्रीकृष्ण से अपने दृढ़ प्रेम को उचित सिद्ध कर रही
हैं। जिससे जिसका मन लग जाए उसे वही सुहाता है। चाहे वह जैसा भी हो।
‘पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ।
(1) बूझत स्याम कौन तू गोरी।
कहाँ रहति काकी है बेटी, देखी नहीं कबहूँ ब्रज-खोरी॥
काहे को हम ब्रज-तन आवतिं, खेलत रहतिं आपनी पोरी।
सुनत रहतिं स्रवननि नंद ढोटा, करत फिरत माखन दधि चोरी॥
तुम्हरो कहा चोरि हम लैहें, खेलन चलो संग मिलि जोरी।
सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि, बातनि भुरई राधिका भोरी॥
शब्दार्थ-बूझत - पूछते हैं। गोरी- युवती। खोरी -गली। ब्रज-तन- ब्रज की ओर। पोरी - बरामदा, पौली। स्रवननि -कानों से। नंद ढोटा -नंद के पुत्र (कृष्ण)। दधि - दही। मिलि जोरी - जोड़ी बनाकर,
साथ-साथ। रसिक सिरोमनि - रस पूर्ण बातों में बहुत चतुर। बातनि- बातों के द्वारा। भुरई -बहका ली, राजी कर ली। भोरी - भोली, सीधी-सादी।
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद कवि सूरदास द्वारा रचित
है। यह उनकी अमर कृति ‘सूरसागर’ में संकलित है। इस पद में कृष्ण भोली
राधा को साथ खेलने-चलने को प्रेरित कर रहे हैं।
व्याख्या-एक दिन अचानक ब्रज की गली में कृष्ण की राधा से भेंट हो जाती है।
वह उससे उसका परिचय पूछते हैं। हे सुंदरी ! तुम कौन हो? तुम कहाँ रहती हो?
किसकी बेटी हो? हमने इससे पहले तुम्हें ब्रज की गलियों में नहीं देखा ? राधा उत्तर देती है- भला हमें ब्रज में आने की क्या आवश्यकता है? मैं तो अपने द्वार पर ही खेलती रहती हूँ। हाँ कानों से यह अवश्य
सुनती रहती हूँ कि कोई नन्द जी का लड़का मक्खन और दही की चोरी करता फिरता है।
कृष्ण ने कहा-हम चोर ही सही,
पर हम तुम्हारा क्या चुरा लेंगे। आओ
साथ-साथ खेलने चलते हैं। ‘सूरदास’ कहते हैं कि उनके प्रभु श्रीकृष्ण
बड़े रसिक हैं। उनको मीठी-मीठी बातें बनाना खूब आता है। उन्होंने भोली-भाली राधा
को भी अपनी बातों से बहका लिया और दोनों साथ-साथ खेलने चल दिए।
विशेष-
1. पद की भाषा सरस और सरल ब्रजभाषा है।
2. शैली संवादपरक है।
3. राधा और कृष्ण के संवादों में उनकी
आयु के अनुरूप सहज वार्तालाप के दर्शन होते हैं।
4. कवि ने कृष्ण को ‘रसिक शिरोमणि’
बताकर मधुर व्यंग्य किया है।
(2) मधुकर स्याम हमारे चोर।
मन हरि लियौ तनक चितवन मैं, चपल नैन की कोर॥
पकरे हुते हृदय उर अंतर, प्रेम प्रीति जोर।
गए छैड़ाई तोरि सब बंधन, दै गए हँसनि अँकोर॥
चौंकि परी जागत निसि बीती, दूत मिल्यौ इक भौंर।
सूरदास प्रभु सरबस लूट्यौ, नागर नवल किसोर॥
शब्दार्थ-मधुकर - भौंरा। हरि लियौ -चुरा लिया। तनक = थोड़ी-सी। चितवनि- दृष्टि। चपल- चंचल। नैन - नेत्र। कोर- कोना। पकरे हुते -पकड़ रखे थे। जोर -बल पर। छैडाइ -छुड़ाकर। हँसनि -हँसी। अँकोर -मूल्य, रिश्वत। निसि -रात। भौंर -भौंरा। सरबस - सर्वस्व, सब कुछ। नागर - चतुर, चालाक। नवल किसोर -कृष्ण।
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद महाकवि सूरदास की रचना
है। यह उनके द्वारा रचित सूरसागर महाकाव्य के भ्रमरगीत प्रसंग से संकलित है। इस पद
में गोपियाँ कृष्ण के कपटपूर्ण व्यवहार पर व्यंग्य कर रही हैं।
व्याख्या-गोपियाँ उद्धव से वार्तालाप के समय कहीं से आकर मँडराने वाले भौंरे
को कृष्ण का प्रतीक बनाकर, उन पर कपट करने का आरोप लगाते हुए कह
रही हैं- अरे भौंरे ! तुम्हारे जैसे ही श्याम रंग वाले वह कृष्ण हमारे चोर हैं।
उन्होंने अपने चंचल नेत्रों के कोनों से अपनी तनिक-सी दृष्टि डालकर हमारे मन को
चुरा लिया। हमने अपनी प्रीति और अनुराग के बल पर उन्हें अपने हृदय में बंदी बना
लिया था। उनके प्रेम पर विश्वास करके उनको अपने हृदय में बसा लिया था। किन्तु वह
हमारे प्रेम के सारे बन्धनों को तोड़कर निकल गये। वह अपनी मनमोहनी हँसी रूपी
रिश्वत देकर, हमें असावधान बनाकर, हमारे हृदय के प्रेम-बन्धनों को तोड़कर चले गए।
इस चोरी और कपट का पता चलते ही हम लोग
चौंक कर जाग पड़ीं। हमारी सारी रात जागते ही बीती। फिर हमें उनका एक दूत (संदेश
लाने वाला) भौंरा (उद्धव) मिला। उसने अपने योग के संदेशों से हम लोगों को बहुत
दुखी किया। उस चतुर नवल किशोर (कृष्ण) ने हमारा सब कुछ लूटकर हमें वियोग की ज्वाला
में जलते रहने को छोड़ दिया।
विशेष-
1. भाषा में लक्षणा शक्ति और व्यंग्य का
सौन्दर्य है।
2. शैली प्रतीकात्मक और व्यंग्यात्मक है।
3. कोमल भावनाओं और वियोग-वेदना की
अभिव्यक्ति हुई है।
4. अनुप्रास तथा रूपक अलंकार का प्रयोग
हुआ है।
3. संदेसनि मधुबन कूप भरे।
अपने तो पठवत नहीं मोहन, हमरे फिरि न फिरे॥
जिते पथिक पठए मधुबन कौं, बहुरि न सोध करे।
कै वै स्याम सिखाइ प्रमोधे, कै कहुँ बीच मरे॥
कागद गरे मेघ, मसि खूटी, सर दवे लागि जरे॥
सेवक सूर लिखन कौ आंधौ, पलक कपाट अरे॥
शब्दार्थ-संदेसनि -संदेशों से। मधुबन -मथुरा। कूप - कुएँ। पठवत - भेजते। पथिक - मथुरा जाने वाले यात्री। पठए - भेजे। बहुरि - फिर। सोध - खोज, सुध। प्रमोधे - वश में कर लिए। सिखाइ - बहकाकर, सिखाकर। कागद - कागज। गरे -गले गए। मेघ - वर्षा (से)। मसि - स्याही। खूटी -समाप्त हो गई। सर - सरकंडे, जिससे कलम बनाई जाती थी। दव -दावानल, वन में लग जाने वाली आग। जरे - जल गए। सेवक - लिखने वाला नौकर या कर्मचारी। आंधौ - अंधा। कपाट - किवाड़। अरे - अड़े हुए, बंद।
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुतं पद कवि सूरदास के ‘सूर सागर’ काव्यग्रन्थ में संकलित है। यह ‘भ्रमरगीत’ नामक प्रसंग से लिया गया है। इस पद
में गोपियाँ मथुरा में स्थित श्रीकृष्ण को अपने द्वारा भिजवाए गए संदेशों का उत्तर
न मिलने पर, चुटीले व्यंग्य बाण चला रही हैं।
व्याख्या-गोपियाँ श्रीकृष्ण के उपेक्षापूर्ण व्यवहार पर चोट करते हुए कह रही
हैं कि उन्होंने अब तक इतने संदेश श्रीकृष्ण के पास भिजवाए हैं कि उनसे मथुरा के
सारे कुएँ भर गए होंगे। मथुरा के जन-जन को हमारे संदेशों का पता चल गया होगा।
श्रीकृष्ण जान बूझकर हमारी उपेक्षा कर रहे हैं। वे अपने संदेश तो भेजते ही नहीं।
हमारे द्वारा संदेश ले गए लोग भी इधर लौटकर नहीं आए। ऐसा लगता है कि कृष्ण ने उनको
सिखाकर (बहकाकर) अपने साथ मिला लिया है। लौटकर नहीं आने दिया है या फिर वे बेचारे
कहीं बीच में ही मर गए। यदि ऐसा न होता तो वे अवश्य लौटकर आए होते। ऐसा भी हो सकता
है कि मथुरा के सारे कागज वर्षा में भीगकर गल गए हों या फिर वहाँ की सारी स्याही
ही समाप्त हो गई हो ? हो सकता है वहाँ कलम बनाने के लिए काम
आने वाले सरकंडे ही वन की आग में जलकर भस्म हो गए हों। यह भी हो सकता है कि कृष्ण
का पत्रों का उत्तर लिखने वाला सेवक ही अंधा हो गया हो। उसके नेत्रों के पलकरूपी
किवाड़ ही न खुल पा रहे हों। इनमें से कोई न कोई कारण अवश्य रहा होगा, तभी हमारे संदेशों का उत्तर हमें अब तक नहीं मिला।
विशेष-
1. पद की एक-एक पंक्ति गोपियों के आक्रोश
और व्यंग्य प्रहार से भरी हुई है।
2. गोपियों को विश्वास हो गया है कि वे
प्रेम के नाम पर कृष्ण द्वारा छली गई हैं।
3. भाषा और शैली व्यंग्य के लिए सर्वथा
उपयुक्त है।
4. ‘स्याम सिखाइ’ तथा ‘मेघ, मसि’ में अनुप्रास’ पलक कपाट’ में रूपक और पूरे पद में ‘संदेह’ अलंकार का चमत्कार है।
(4) ऊधौ मन माने की बात।
दाख छुहारी छांड़ि अमृत फल, बिषकीरा बिष खात॥
ज्यों चकोर कों देई कपूर कोउ, तजि अंगार अघात।
मधुप करत घर फोरि काठ मैं, बंधत कमल के पात॥
ज्य पतंग हित जानि आपनो, दीपक सौं लपटात।
सूरदास जाको मन जासौ , सोई ताहि सुहात॥
शब्दार्थ-ऊधौ - उद्धव, कृष्ण के मित्र जो गोपियों को समझाने
आए थे। मन माने - मन को अच्छा लगना। दाख - अंगूर। छुहारा - एक प्रकार का मेवा। बिष -जहर। बिषकीरा - एक ऐसा कीड़ा जो विष खाता है। चकोर - एक पक्षी जिसका अंगारे खाना प्रिय
माना गया है। मधुप- भौंरा। फोरि-छेद करके। काठ = लकड़ी। पति -बंधने, कमल के फूल का संपुट। पतंग - दीपक के पास मँडराने वाला और लौ में
जल जाने वाला कीट। लपटात - लिपटता है। सोई -वही। सुहात - सुहाता है, प्रिय लगता है।
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद कवि सूरदास जी द्वारा
रचित है। यह उनके काव्यग्रन्थ ‘सूरसागर’ से संकलित है। यह सूरसागर के ‘भ्रमरगीत’ प्रसंग से लिया गया है।
व्याख्या-उद्धव द्वारा कृष्ण को भुलाकर योग साधना करने का उपदेश दिए जाने पर, गोपियाँ कह रही हैं-हे उद्धव! कृष्ण जैसे भी हैं, हमें प्रिय हैं। यह तो मन के मानने की बात है। जिससे मन लग जाय वही
प्यारा लगता है। उसे व्यक्ति कष्ट पाकर भी प्रेम करता है, अपनाता है। गोपियाँ कहती हैं कि संसार में अंगूर और छोहारी जैसे
अमृत के समान मधुर फल हैं किन्तु विष का कीट इन सबको ठुकराकर विष को ही खाता है।
उसका मन विष से लगा हुआ है। चाहे चकोर को कोई सुगंधित और शीतल कपूर चुगाए पर वह
उसे त्यागकर झुलसा देने वाले अंगारे को ही खाता है। भौंरा अपना घर बनाने के लिए
कठोर काठ में भी छेद कर देता है किन्तु वही कमल की कोमल पंखुड़ियों के बीच बन्द हो
जाता है। उसे काटकर बाहर नहीं निकलता। इसी प्रकार दीपक से प्रेम करने वाला पतंगा
दीपक की लौ से लिपटने में ही अपनी भलाई मानकर उसमें भस्म हो जाता है। बात वही है
कि जिससे जिसका मन लगा होता है,
उसे वही सुहाता है। हमारा मन
श्रीकृष्ण से लगा है। हमें वही सुहाते हैं। आपके योग को स्वीकार कर पाना हमारे वश
की बात नहीं।
विशेष-
1. सरस ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।
2. शैली भावात्मक है।
3. उद्धव के उपदेशों और तर्को का गोपियों
ने अपनी प्रेम-विवशता से नम्रतापूर्ण खंडन किया है।
4. अनुप्रास, उदाहरण, दृष्टांत आदि अलंकार हैं।
5. वियोग शृगार रस की रचना है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. ‘दूत मिल्यौ एक भौंर’ से आशय है
(क) भंवरा
(ख) राधा
(ग) गोपिकाएँ
(घ) उद्धव
2. ‘नागर नवल किसोर’ विशेषण किसके लिए आया है
(क) उद्धव
(ख) गोप
(ग) कृष्ण
(घ) श्यामा
3. राधा ने नंद के पुत्र के बारे में
सुना था कि
(क) वह बड़ा सुन्दर है।
(ख) वह मधुर स्वर में बंशी बजाता है।
(ग) वह मक्खन और दही की चोरी करता फिरता
है।
(घ) वह ग्वालों के साथ गायें चराता है।
4. कृष्ण ने गोपियों का चुरा लिया था
(क) दही और मक्खन
(ख) वस्त्र
(ग) बछड़े
(घ) मन।
5. संदेश ले जाने वाले पथिकों के बारे
में गोपियों को संदेह था कि
(क) वे मथुरा नहीं पहुँचे ।
(ख) उन्होंने कृष्ण को संदेश नहीं
सौंपे।
(ग) कृष्ण ने उन्हें बहका लिया।
(घ) पथिकों ने संदेश मार्ग में फेंक दिए।
6. “ऊधौ मन माने की बात” कथन के पक्ष में गोपियों ने उदाहरण दिया है
(क) विष कीट द्वारा विष खाने का
(ख) चकोर द्वारा अंगार खाए जाने का
(ग) पतंगे को दीपक की लौ में जल जाने
का
(घ) इन सभी का।
अति
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न1.कृष्ण गोरी’ संबोधन किसके लिए कर रहे हैं?
उत्तर: राधा के लिए
प्रश्न2.सारे बंधन तोड़कर कौन कहाँ चला गया है?
उत्तर: श्रीकृष्ण मथुरा चले गए हैं।
प्रश्न .गोपियों को भ्रमर के रूप में कौन-सा दूत मिला?
उत्तर: भ्रमर के रूप में उद्धव मिले
जो श्रीकृष्ण के दूत या संदेशवाहक के रूप में आए थे।
प्रश्न 3.श्याम
ने किसको सिखाकर वश में कर लिया?
उत्तर:श्याम
ने गोपियों का संदेश लेकर जाने वाले पथिकों को सिखाकर अपने वश में कर लिया।
प्रश्न 4.कृष्ण ने राधा से क्या-क्या पूछा?
उत्तर:कृष्ण ने राधा से पूछा कि वह
कौन है, वह कहाँ रहती है, वह किसकी बेटी है और उसे कभी ब्रज की गलियों में क्यों नहीं देखा ?
प्रश्न 5.राधा कृष्ण के बारे में क्या सुनती रहती थी?
उत्तर:वह सुना करती थी कि ब्रज में
नन्द जी का पुत्र गोपियों के घरों में मक्खन और दही चुराता फिरता है।
प्रश्न 6.श्रीकृष्ण ने भोली राधा को किस प्रकार बहकाया?
उत्तर: अपनी चतुराई भरी मीठी बातों से
बहका लिया।
प्रश्न 7.गोपियाँ कृष्ण पर क्या आरोप लगाती हैं?
उत्तर: वह उनके मन को चुराने वाले चोर
हैं।
प्रश्न 8.गोपियों ने कृष्ण को कहाँ और कैसे पकड़ रखा था?
उत्तर: अपने प्रेम के बल पर अपने
हृदयों में पकड़ रखा था।
प्रश्न 9.कृष्ण ने गोपियों को कैसे पीड़ित किया?
उत्तर:कृष्ण गोपियों के प्रेम बन्धनों
को तोड़कर मथुरा में जा बसे। संदेशों के उत्तर भी नहीं दिए। इस प्रकार उन्होंने
गोपियों को पीड़ित किया।
प्रश्न 10.संदेशों को लेकर गोपियाँ क्यों दखी थीं?
उत्तर: कृष्ण अपनी ओर से कोई सुखदायक
संदेश नहीं भेज रहे थे।
प्रश्न11.मन माने की बात’
कथन से गोपियों का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:गोपियों का अभिप्राय है कि
जिसका मन जिससे लगा है, उसे वही सुहाता है।
प्रश्न12 .‘विषकीरा’ क्या करता है?
उत्तर:विष का कीड़ा अंगूर और छुहारे
जैसे मधुर फल त्यागकर विष का ही भक्षण करता है।
प्रश्न 13.कठोर काठ में छेद करके घर बनाने वाला भौंरा क्या नहीं कर पाता और
क्यों?
उत्तर:भौंरा कठोर काठ में भी छेद करने
की शक्ति रखता है, किन्तु वह कोमल कमल में बन्द रह जाता
है, क्योंकि वह उससे प्रेम करता है।
लघूत्तरात्मक
प्रश्न
प्रश्न 1.कृष्ण ने भोली राधा को बातों में कैसे उलझा लिया?
उत्तर:राधा कृष्ण को पहली बार ब्रज की गली
में मिली। उन्होंने पहले उससे उसका परिचय पूछा और फिर कहा- तुम्हें ब्रज की गली
में कभी नहीं देखा। राधा ने उपेक्षा करते हुए उत्तर दिया कि उसे ब्रज में आने की
क्या आवश्यकता है। वह तो अपने द्वार पर ही खेला करती है। राधा ने कहा कि उसने सुना
है नन्द का पुत्र दही और मक्खन चुराता रहता है। तब श्रीकृष्ण ने मीठे स्वर में कहा
कि वह उसका क्या चुरा लेंगे?
और उसे साथ मिलकर खेलने-चलने को राजी
कर लिया। इस प्रकार उन्होंने भोली राधा को बातों में उलझाकर उसको मन जीत लिया।
प्रश्न 2.मथुरा के कुएँ संदेसों से कैसे भर गए?
उत्तर:गोपियाँ जिसे भी मथुरा की ओर जाता देखती थीं, उसी के हाथों अपने संदेश कृष्ण के पास भेजती रहती थीं। श्रीकृष्ण
अपनी ओर से तो कोई संदेश भेजते ही नहीं थे और गोपियों के संदेश लाने वालों को भी
बहलाकर रोक लेते थे। लगता है वे गोपियों के संदेशों को उपेक्षा के साथ कुओं में
फिकवा देते थे। इससे वहाँ के कुएँ संदेशों से भर गए अथवा गोपियों ने इतने संदेश
भिजवाए कि कुओं पर जल लेने जाने वाली मथुरा की नारियों में उनकी ही चर्चा होने
लगी। मथुरा की नारियाँ कुओं से रोज नया संदेश लेकर घर पहुँचने लगीं।
प्रश्न 3.‘तजि अंगार अधात’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:जिससे जिसका मन लगा होता है, उसे वही सुहाता है। चकोर पक्षी के
बारे में कहा जाता है कि वह या तो चन्द्रमा की किरणों को चुगता है या फिर अंगारों
की चिनगारियों से पेट भरता है। उसे कोई सुगंधित और शीतल कपूर देता है तो वह उसे
त्यागकर अंगारे से ही अपनी भूख शान्त करता है। इसी प्रकार गोपियों का कहना है कि
उनका मन श्रीकृष्ण के प्रेम बंधन में बँधा है। वे उन्हें त्यागकर योग को नहीं अपना
सकतीं। कृष्ण जैसे भी हैं उनको वही प्रिय लगते हैं।
प्रश्न 4.गोपियाँ कृष्ण को चोर क्यों सिद्ध कर रही हैं? विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर:जो किसी की कोई वस्तु चुराता है वह चोर कहलाता है। कृष्ण ने भी
अपनी तिरछी दृष्टि से गोपियों के मन हर लिए हैं। उन्होंने कृष्ण को अपने हृदयों
में प्रेम के जोर से बंदी बना रखा था, परन्तु वह सारे बन्धन तोड़कर चले गए।
गोपियों के मन भी अपने साथ चोरी करके ले गए। इसी कारण गोपियाँ कृष्ण को चोर सिद्ध
करना चाहती हैं। कृष्ण ने एक चोर जैसा ही आचरण किया। प्रेम की आड़ लेकर उन्होंने
गोपियों के साथ धोखा किया है। उनका सबै कुछ लूटकर वह मथुरा में जा बसे हैं।
गोपियों को अपराधी होने के कारण ही उनका मथुरा से ब्रज में आने का साहस नहीं हो
रहा है। अपना दूत भेजकर वह गोपियों को बहका रहे हैं। बचपन में मक्खन और दूध-दही की
चोरी करते थे अब प्रेम के जाल में फंसाकर भोली गोपियों के मन की चोरी करने लगे
हैं।
प्रश्न 5.श्रीकृष्ण ने राधा को अपने साथ खेलने के लिए चलने हेतु कैसे राजी कर
लिया?
उत्तर:राधा की बात सुनकर कृष्ण को धक्का-सा लगा। उनको एक चोर लड़का माना
जा रहा था। फिर भी उन्होंने बात बनाई कि वह चोर ही सही पर उसका (राधा का) वह क्या
चुरा लेंगे। साथ ही उन्होंने प्रस्ताव किया-‘चलो हम दोनों साथ-साथ जोड़ी बनाकर
खेलने चलें।’ बेचारी भोली राधिका रसिक शिरोमणि
कृष्ण की चतुराई भरी बातों में आ गई और उनके साथ खेलने चल दी।
प्रश्न 6.‘मधुकर स्याम हमारे चोर’ गोपियों द्वारा कृष्ण
को ‘चोर’ कहे जाने का आशय क्या
है? पद के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:गोपियों ने इस पद में कृष्ण पर चोर होने का आरोप लगाया है। ऐसा
कहकर वे कृष्ण को एक वास्तविक चोर सिद्ध नहीं करना चाहतीं। वे इस कथन द्वारा कृष्ण
के प्रेम-व्यवहार पर व्यंग्य कर रही हैं। कृष्ण ने उनकी कोई घरेलू वस्तुएँ नहीं
चुराई हैं अपितु उनके सहज विश्वासी मन की चोरी की है। पहले उनके मन को प्रेम
द्वारा लुभाया, रिझाया, चुराया और उसमें बस गए। फिर निष्ठुर
बनकर मथुरा जा बसे। कृष्ण इस प्रकार गोपियों के मन को चुरा ले जाने के अपराधी हैं।
प्रश्न 7.कृष्ण के मथुरा चले जाने का गोपियों पर क्या प्रभाव हुआ? ‘मधुकर स्याम हमारे चोर’ पद के आधार पर लिखिए।
उत्तर:कृष्ण के मथुरा चले जाने पर गोपियों की दशा बड़ी दयनीय हो गई। वे
रात में सोते-सोते जाग पड़ती थीं। उनकी पूरी रात जागते बीतती थी। कृष्ण द्वारा
उद्धव को दूत बनाकर योग और ज्ञान का संदेश भिजवाए जाने से, उनका दुख और बढ़ गया। उन्होंने उद्धव से यहाँ तक कह दिया कि उनके
मित्र कृष्ण चोर ही नहीं अपितु हमारा सब कुछ लूट ले जाने वाले लुटेरे भी हैं।
प्रश्न 8.गोपियों ने अपनी विरह-व्यथा कृष्ण तक पहुँचाने के लिए क्या उपाय किया? इसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:कृष्ण मथुरा जाते समय गोपियों को यह आश्वासन देकर गए थे कि वे कुछ
दिनों बाद ही लौटकरे आ जाएँगे। दिन पर दिन बीतते गए किन्तु कृष्ण नहीं लौटे तब
गोपियों ने ब्रज से होकर मथुरा जाने वाले पथिकों के द्वारा अपने संदेश कृष्ण को
भिजवाना आरम्भ किया। अनेक बार संदेश भिजवाने पर भी कृष्ण की ओर से उनका कोई उत्तर
नहीं मिला। इससे उन्हें कृष्ण के बारे में अनेक शंकाएँ होने लगीं।
प्रश्न 9.‘संदेसनि मधुबन कूप भरे’ पद में गोपियों द्वारा
कृष्ण के व्यवहार को लेकर क्या-क्या शंकाएँ प्रकट की गई हैं? लिखिए।
उत्तर:जब अनेक बार संदेश भिजवाए जाने पर भी कृष्ण की ओर से कोई समाचार
नहीं आया तो गोपियों के मन में अनेक अशुभ आशंकाएँ उठने लगीं। उनको लगा कि ब्रज से
संदेश ले जाने वाले पथिकों को कृष्ण ने बहकाकर रोक लिया है या वे सभी मार्ग में ही
मर गए हैं या फिर मथुरा के सारे कागज वर्षा में भीगकर गल गए हैं अथवा वहाँ की सारी
स्याही ही समाप्त हो गई है। अथवा जिनसे कलम बनती है वे सारे सरकंडे ही वन की आग
में जलकर भस्म हो गए हैं या फिर कृष्ण के पत्रों का उत्तर देने वाला। कर्मचारी ही
अंधा हो गया है।
प्रश्न 10.ऊधौ मन माने की बात’ गोपियों के इस कथन का
क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:जब उद्धव ने गोपियों से कहा कि वे श्रीकृष्ण के विरह में व्याकुल
होना छोड़कर निर्गुण परमात्मा की आराधना करें तो गोपियों ने कहा कि उनके लिए
श्रीकृष्ण को भूल पाना सम्भव नहीं है। जिसके मन को जो अच्छा लगता है, वह उसी से प्रेम करता है। मन पर किसी का वश नहीं चलता। विष के
कीड़े को अंगूर और छुहारे जैसे अमृत के समान स्वादिष्ट फल अच्छे नहीं लगते। इनको
त्यागकर वह विष ही खाता है।
प्रश्न 11.गोपयों ने चकोर और भौंरे का उदाहरण देकर क्या सिद्ध करना चाहा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:गोपियों ने चकोर और भौंरे के उदाहरणों से सिद्ध करना चाहा है कि
जिसके मन को जो सुहाता है वह उसी से प्रेम करता है। चकोर को कोई शीतल और सुगंधित
कपूर दे तो वह उसे त्यागकर तपते हुए अंगारे ही खाता है। इसी प्रकार भौंरा, जो कठोर लकड़ी में छेद करके अपना घर बना सकता है, वह कोमल कमल से प्रेम करने के कारणें उसके संपुट में बन्द हो जाता
है। उसे काटकर बाहर नहीं निकलता।
प्रश्न 12.गोपियों ने पतंग और दीपक के द्वारा उद्धव को क्या समझाना चाहा है? अपना मत लिखिए।
उत्तर:पतंगा और दीपक का उदाहरण सच्चे प्रेम का प्रमाण माना जाता है।
दीपक से अपने प्रेम की पराकाष्ठा पतंगा उसकी लौ में भस्म होकर सिद्ध करता है। गोपियाँ
भी उद्धव को बताना चाहती हैं कि वे श्रीकृष्ण से सच्चा प्रेम करती हैं। वे
कृष्ण-प्रेम में अपने प्राण भी न्योछावर कर सकती हैं लेकिन उन्हें भुला नहीं सकतीं
। उद्धव योगी होने के कारण प्रेम की महानता नहीं समझ पा रहे थे। इसी कारण गोपियों
ने पतंग और दीपक के उदाहरण द्वारा उन्हें समझाना चाहा है।
निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.‘बूझत स्याम कौन तू गोरी’ पद के आधार पर कृष्ण और
राधा के स्वभाव में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:सूरदास जी ने इस पद में अपने इष्टदेव श्रीकृष्ण को रसिकों का
शिरोमणि बताया है। रसिक लोग रसपूर्ण बातों में बहुत रुचि रखते हैं। उन्हें सुन्दर
स्त्रियों से वार्तालाप करने और परिचय बनाने में बहुत आनन्द आता है। इस पद में कवि
ने श्रीकृष्ण का ऐसा ही स्वभाव दिखाया है। वह अपरिचित किशोरी से आगे बढ़कर उसका
परिचय पूछने लगते हैं। उसके नाम,
गाँव, माता-पिता और ब्रज की गलियों में
दिखाई न पड़ने का कारण, सब कुछ जान लेना चाहते हैं। अपनी
चतुराई भरी बातों से उस भोली-भाली लड़की को साथ में खेलने के लिए राजी कर लेते
हैं।
इसके विपरीत राधा एक सीधी-सादी, छल, कपट और चतुराई से दूर ग्रामीण किशोरी
है। वह कृष्ण के प्रश्नों से सकपका जाती है। सीधा-सा उत्तर देती है-हमें ब्रज में
आने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। हम तो अपने द्वार पर ही खेलती रहती हैं। कानों से
सुनती रहती हैं कि नंद जी का लड़का मक्खन और दही की चोरी किया करता है। उसके
भोलेपन का लाभ उठाकर ही कृष्ण उसे अपनी बातों से बहलाकर साथ खेलने को राजी कर लेते
हैं। दोनों के स्वभाव एक दूसरे के विपरीत हैं।
प्रश्न 2.गोपियाँ कृष्ण को चोर क्यों बताती हैं? संकलित पद के आधार पर लिखिए।
उत्तर:गोपियाँ श्रीकृष्ण के व्यवहार से बड़ी व्यथित थीं। उन्हें सपने में
भी विश्वास नहीं था कि उनके साथ प्रेम-लीलाएँ रचाने वाले कृष्ण उनसे इस प्रकार
मुँह मोड़ लेंगे। उनके लिए योग का संदेश भिजवायेंगे। उद्धव ने जब कहा कि वह उनके
लिए श्याम का संदेश लेकर आये हैं तो गोपियाँ बड़ी प्रसन्न हुईं। उन्हें लगा कि
संदेश में उनके लिए प्यार भरी सांत्वना होगी, आने के दिन का उल्लेख होगा। परन्तु जब
उद्धव ने योग का संदेश पढ़ना प्रारम्भ किया तो गोपियाँ अवाक रह गईं। उन्होंने एक
भौंरे को माध् यम बनाकर कृष्ण पर व्यंग्य प्रहार प्रारम्भ कर दिये।
उन्होंने कृष्ण पर चोर होने का आरोप
लगाया। इसके प्रमाण में उन्होंने कहा- अरे मधुकर ! वे कृष्ण हमारे चोर हैं। उन्होंने
अपनी जादू भरी चितवन से तनिक निहार कर, हमारे मन चुरा लिए। हमने तो उन पर
विश्वास करके उन्हें प्रीति की डोर से बाँधकर अपने हृदयों में बन्द कर लिया था, पर अपनी मनमोहक हँसी से हमें बहकाकर, प्रीति के सारे बन्धन तोड़कर, वे मथुरा चले गये। हमें ऐसा लगा कि कोई हमारा सर्वस्व लूटकर चला
गया और अब उसने एक भौंरे को दूत बना हमें बहकाने, हम से पीछा छुड़ाने के लिए भेज दिया
है।
जो किसी का सब कुछ ले जाए उसे चोर
नहीं तो क्या कहें। कृष्ण तो लुटेरे हैं। चोर तो रात के अँधेरे में चुपचाप लूटता
है, पर कृष्ण तो दिन में, सबके देखते हुए हमारा सर्वस्व ले गए।
प्रश्न 3.‘ऊधौ मन माने की बात’। गोपियों ने उद्धव से
ऐसा क्यों कहा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:उद्धव योगी थे। कृष्ण ने उन्हें गोपियों को समझाने, योगपथ की दीक्षा देने भेजा था। गोपियों ने
उन्हें अपने प्रिय श्रीकृष्ण । के मित्र समझकर उन्हें पूरा सम्मान दिया। उनके
योग-उपदेशों को चुपचाप सुना। फिर उन्होंने उन्हें अपनी विवशताएँ समझाईं। उनसे कहा
कि वे श्रीकृष्ण को किसी भी प्रकार नहीं त्याग सकतीं। इतने पर भी जब उद्धव ने उनको
योग के उपदेश देना बन्द नहीं किया तो फिर गोपियों ने उन पर व्यंग्य प्रहार करना और
अपने ग्रामीण तर्को से निरुत्तर करना आरम्भ कर दिया।
इस पद में गोपियाँ बड़ा सीधा सा तर्क
दे रही हैं। वे कहती हैं कि आपको ब्रह्म कितना भी महान हो, हम उसके लिए प्राणप्रिय कृष्ण को नहीं छोड़ सकतीं। उद्धव प्रेम, तर्कों के आधार पर नहीं किया जाता। प्रेम तो मन माने की बात है।
जिसको जो सुहाता है वह उसी को चाहता है। विष का कीड़ा अंगूर और छुआरे जैसे
स्वादिष्ट पदार्थ छोड़कर विष ही खाता है। चकोर शीतल कपूर को त्याग कर,अंगारे खाने में ही आनन्द पाता है। भौरे को कमल में बंदी हो जाना, पतंगें का दीपक की लौ पर जल जाना, से सभी उदाहरण बताते हैं कि जिसका मन
जिस से लगा है, उसे वही सुहाता है।
प्रश्न 4.गोपियों ने उद्धव और कृष्ण पर क्या-क्या व्यंग्य किए हैं? संकलित पदों के आधार पर लिखिए।
उत्तर:‘भ्रमरगीत’ प्रसंग से लिए गए संकलित पदों में
गोपियों ने उद्धव और कृष्ण को अपने तीखे व्यंग्य बाणों का निशाना बनाया है। वे
कृष्ण को छलिया और उद्धव को भौंरे का दूत भौंरा बताती हैं। जैसे कृष्ण वैसे ही
उनके सखा उद्धव। कृष्ण को गोपियों से मिलाने के बजाय उन्हें कृष्ण विमुख बनाने का
षड्यन्त्र कर रहे हैं।
‘संदेसनि मधुबन कूप भरे।” इस पद में तो गोपियों ने अपनी व्यंग्य
कुशलता का पूरा प्रमाण दिया है। कृष्ण को सीधे-सीधे । धोखेबाज सिद्ध कर दिया है।
वे कहती हैं कि उन्होंने कृष्ण के पास इतने संदेश भिजवाए हैं कि उनसे मथुरा के
कुएँ भर गये हैं, लेकिन कृष्ण ऐसा नाटक कर रहे हैं जैसे
उनको कोई संदेश मिला ही न हो। उन्होंने अपनी ओर से तो कोई संदेश भेजा ही नहीं, उनका भी संदेश-वाहक लौटकर नहीं आया। इसका सीधा अर्थ है कि कपटी
कृष्ण ने हमारे संदेश ले जाने वाले को बहका दिया है या फिर हो सकता है वे मार्ग
में ही किसी दुर्घटना के शिकार हो गये (या उनको दुर्घटना में ठिकाने लगवा दिया
गया।)।
गोपियों की तीखी झुंझलाहट उनके
व्यंग्यों को और भी पैना बना रही है। वे कहती हैं-अब तो यही लगता है कि मथुरा के
सारे कागज गल गए हैं, या स्याही समाप्त हो गई है या फिर कलम
बनाने के सरकण्डे ही दावानल में जल गये हैं। यदि ऐसा नहीं तो फिर कृष्ण का संदेश
लिखने वाला कर्मी ही अंधा हो गया है।
अन्त में गोपियों ने प्रमाण सहित अपने
कृष्ण,प्रेम की उचितता उद्धव को समझाई है। वे कहती हैं-उद्धव! आप व्यर्थ
ही हमको कृष्ण से विमुख करने की चेष्टा कर रहे हैं। आप यह सरल-सी बात क्यों नहीं
समझ पाते कि जिसका मन जिससे लग गया, उसे फिर उसके अतिरिक्त और कोई नहीं
सुहाता ।
इस प्रकार गोपियों ने अपने ग्रामीण
तर्कों और व्यंग्यों से उद्धव को निरुत्तर किया है।