राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड : कक्षा 10वीं हिंदी, पाठ्यपुस्तक आधारित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर,अध्याय -03 देव (सवैया और कवित्त)
क्षितिज भाग -2 (काव्य – खंड)
अध्याय -03 देव (सवैया
और कवित्त)
जीवन परिचय-
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कवि देव का जन्म संवत् 1730 (1673 ई.) में उत्तर प्रदेश के इटावा नगर में हुआ था।
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इनके पिता का नाम कुछ लोग बिहारीलाल दूबे मानते हैं।
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देव के गुरु वृंदावन निवासी संत हितहरिवंश माने जाते हैं।
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देव अन्य रीतिकालीन कवियों की भाँति दरबारी कवि थे।
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उन्होंने अनेक राजाओं और सम्पन्न लोगों के यहाँ समय बिताया था।
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इनको दर्शन शास्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद और तंत्र आदि विषयों का भी
ज्ञान था।
· कवि देव की मृत्यु संवत् 1824 (1767 ई.) के आस-पास मानी जाती है।
साहित्यिक परिचय-देव ने अन्य
रीतिकालीन कवियों की भाँति काव्य रीति और काव्य रचना दोनों क्षेत्रों में अपनी
प्रतिभा का परिचय दिया। कवि के रूप में देव सौन्दर्य और प्रेम के चितेरे हैं। इनको
काव्य सरस और भावोत्तेजक है। रूपवर्णन, मिलन, विरह आदि का हृदयस्पर्शी शब्दचित्र
देव ने अंकित किया है। इसके साथ ही उन्होंने संस्कृत शब्दयुक्त सरस और सशक्त
ब्रजभाषा का प्रयोग भी किया है। इनकी कविता में अनुप्रास, अक्षरमित्रता और चमत्कार प्रदर्शन भी
मिलता है। देव आचार्यत्व और कवित्व दोनों ही दृष्टियों से रीतिकाल के एक प्रमुख
कवि माने जाते हैं।
रचनाएँ-माना जाता है कि
देव ने लगभग 62 ग्रन्थों की रचना
की थी। अब केवल 15 ग्रन्थ ही मिलते
हैं। ये ग्रन्थ हैं
भावविलास, अष्टयाम, भवानीविलास, कुशलविलास, प्रेमतरंग, जातिविलास, देवचरित्र, रसविलास, प्रेमचन्द्रिका, शब्दरसायन, सुजानविनोद, सुखसागर तरंग, राग रत्नाकर, देवशतक तथा देवमायाप्रपंच।
परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण
सप्रसंग व्याख्या
देखें छिति अंबर जलै है चारि ओर छोर,
तिन तरबर सब ही कौं रूप हर्यौ है।
महाझर लागै जोति भादव की होति चलै,
जलद पवन तन सेक मानों पर्यौ है।
दारून तरनि तरें नदी सुख पावें सब,।
सीरी घन छाँह चाहिबौई चित्त धर्यौ है।
देखौ चतुराई सेनापति कविताई की जू,
ग्रीषम विषम बरसा की सम कयौ है॥
सन्दर्भ तथा प्रसंग = प्रस्तुत छंद कवि सेनापति की रचना है। यह हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि सेनापति के छंदों से लिया गया है। इस छंद
में कवि द्वारा भयंकर ग्रीष्म ऋतु को अपनी कल्पना और काव्य कौशल से वर्षा ऋतु का
रूप दिया गया है।
व्याख्या-ग्रीष्म ऋतु के पक्ष में-भयंकर गर्मी के कारण धरती और आकाश चारों ओर दूर-दूर तक जलते हुए से दिखाई दे रहे हैं। भीषण ताप ने घास और वृक्षों
सभी को झुलसाकर उनका रूप नष्ट कर दिया है। सूर्य की प्रचंड किरणों से शरीर को
अग्नि का ताप पीड़ित कर रहा है। चारों ओर वन में लगी आग को-सा प्रकाश फैलता जा रहा है। तपती हुई वायु से शरीर की सेंकाई-सी हो रही है। भयंकर रूप से तप रहे सूर्य के नीचे लोग नदियों में
ही सुख पा रहे हैं। बादलों की शीतल छाया, पानी ही सभी के मन को अच्छा लग रहा है। कवि सेनापति कहते हैं कि
उनकी कविता रचने की चतुराई को सभी कविता प्रेमी देखें। उन्होंने भयंकर ग्रीष्म ऋतु
को भी अपनी काव्य कुशलता से वर्षा ऋतु के समान बना दिया है।
(वर्षा ऋतु के पक्ष में) धरती और आकाश में वर्षा ऋतु आने के कारण चारों ओर दूर तक जल ही जल
दिखाई दे रहा है। घास और वृक्ष सभी का रंग हरा हो गया है। वर्षा की भारी झड़ी लगी
हुई है और भादों के मास में बिजली चमकने का प्रकाश होता चल रहा है। बादलों को छूकर
आ रही शीतल पवन के स्पर्श से शरीर को बड़ा सुख मिल रहा है। सभी लोग काठ की नावों
से नदियों को पार करके आनंदित हो रहे हैं। सभी बादलों की शीतल छाया में रहना चाह
रहे हैं। कवि सेनापति अपनी कविता की बड़ाई करते हुए कह रहे हैं कि उन्होंने अपनी
चतुराई से भीषण ग्रीष्म ऋतु को वर्षा ऋतु का रूप दे दिया है।
विशेष-
1. द्विअर्थक शब्दों के प्रयोग से भाषा
पर कवि के पूर्ण अधिकार का प्रमाण मिल रहा है।
2. शैली चमत्कार प्रदर्शन वाली है।
3. श्लेष और सांगरूपक अलंकारों का प्रयोग
है।
4. श्लेष अलंकार के प्रयोग से कवि ने
अपनी प्रसिद्ध प्रवीणता का परिचय कराया है।
दामिनी दमक, सुरचाप की चमक, स्याम।
घटा की झमक अति घोर घनघोर तें। कोकिला,
कलापी कल कूजत हैं जित-तित,
सीकर ते सीतल समीर की झकोर हैं।
सेनापति आवन कयो है मनभावन सु।
लाग्यौ तरसावन विरह-जुर जोर हैं।
आयौ सखी सावन मदन सरसावन,
लग्यौ है बरसावन सलिल चहुँ और तें॥
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत छंद हमारी पाठ्य पुस्तक में कवि सेनापति की ‘कवित्त रत्नाकर’ नामक रचना से संकलित ‘ऋतु वर्णन’ काव्यांश से लिया गया है। इस कवित्त
में वर्षा ऋतु के सावन के मास के आने पर दिखाई देने वाले दृश्यों का एक नारी अपनी
सखी से वर्णन कर रही है और अपने मन की दशा बता रही है।
व्याख्या-देखो सखि! श्रावण मास आने पर बादलों में बिजली चमकने लगी है। आकाश में विविध
रंगों वाला इन्द्रधनुष भी अपनी छटा बिखेर रहा है। काली घटा से बरसती मन्द-मन्द बूंदों की ध्वनि सुनाई दे रही है और घने बादल डराने वाला
गर्जन कर रहे हैं। कोयल और मोर मन्द और मधुर स्वर में जहाँ-तहाँ बोल रहे हैं। वर्षा की बूंदों से शीतल पवन के झोंके
आ रहे हैं। मेरे प्रिय ने मुझे आने का
संदेश दिया है। अब तो उनसे मिलने के लिए मेरा वियोगी हृदय तरस रहा है। हे सखि ! देखो मिलन की इच्छा जगाने वाला सावन का महीना आ गया है और चारों ओर
जल बरस रहा है।
विशेष-
1. भाषा ध्वनि-सौन्दर्य से गमक रही है। दमक, चमक, झमक कानों को गुंजित कर रहे हैं।
2. वर्षा के दृश्यों का सुखद संयोजन किया
गया है।
3. प्रकृति को मनोभावों को उत्तेजित करने
में प्रयोग हुआ है।
4. ‘कोकिला, कलापी कल कूजत’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है। ‘विरह-जुर’ में रूपक अलंकार है।
5. वियोग शृंगार रस की झलक दिखाई दे रही
है।
सीत कौ प्रबल सेनापति कोपि चढ्यौ दल,
निबल अनल, गयौ सूरि सियराइ है।
हिम के समीर, तेई बरसैं विषम तीर,
रही है गरम भौन कोनन मैं जाइ है।
धूम नैन बहैं, लोग आगि पर गिरे हैं,
हिए सौं लगाइ रहैं नैंक सुलगाई है।
मानौ भीत जानि महा सीत तें पसारि पानि,
छतियाँ की छाँह राख्यौ पाउक छिपाई कै॥
सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत छंद हमारी
पाठ्यपुस्तक में ‘ऋतुवर्णन’ शीर्षक के अन्तर्गत संकलित कवि
सेनापति के कवित्तों से लिया गया है। इस छन्द में कवि ने शीत को एक आक्रमणकारी के
रूप में चित्रित किया है।
व्याख्या-कवि सेनापति कहते
हैं कि शीत ऋतु की शक्तिशाली सेना ने जग-जीवन पर क्रोधित
होकर चढ़ाई कर दी है। इसके कारण अग्नि शक्तिहीन हो गई है और सूर्य ठण्डा पड़ गया
है। इन दोनों का प्रभाव लोगों की शीत से रक्षा नहीं कर पा रहा है। बर्फ जैसी ठण्डी
पवन ही शीत की सेना द्वारा बरसाए जा रहे भयंकर तीरों के समान है। शीत के भय से
बेचारी गर्मी घरों के कोनों में जा छिपी है। आग तापने वाले लोगों की आँखों से धुंए
के कारण जल बह रहा है। लोग ठण्ड से बचने के लिए आग पर झुके जा रहे हैं। आग के तनिक-सा सुलगते ही लोग उसे तापने लगते हैं। इस दृश्य को देखकर ऐसा लग
रहा है मानो आग को शीत से भयभीत जानकर लोगों ने उसे प्रचण्ड ठण्ड से बचाने के लिए
हाथ फैलाकर अपने छातियों की छाया में छिपा लिया है।
विशेष-
1. साहित्यिक और समर्थ
ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है।
2. शैली शब्द चित्रात्मक है। कवि ने सटीक
शब्दों का चयन करके शीतकालीन दृश्यों को साकार कर दिया है।
3. भयानक रस की झलक है।
4. ‘सूरि सियराइ’, ‘बरसैं, बिषम’, ‘पसारि पानि’, आदि में अनुप्रास अलंकार है। “मानो भीत जानि छिपाइ कै” में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों
कहा है?
उत्तर-कवि आत्मकथा लिखने से इसलिए
बचना चाहता है, क्योंकि
· उसमें मन की दुर्बलताओं, भूलों और कमियों का उल्लेख करना होगा।
· उसके द्वारा धोखा देने वालों की
पोल-पट्टी खुलेगी और फिर से घाव हरे होंगे।
· उससे कवि के पुराने दर्द फिर से हरे
हो जाएँगे। उसकी सीवन उधड़ जाएगी।
· उसमें निजी प्रेम के अंतरंग क्षणों को
भी सार्वजनिक करना पड़ेगा। जबकि ऐसा करना उचित नहीं है। निजी प्रेम के क्षण गोपनीय
होते हैं।
प्रश्न 2.‘प्रातहि
जगावत गुलाब चटकारी दै’- इस पंक्ति
का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-इस
कथन के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि निजी प्रेम के मधुर क्षण सबके सामने प्रकट
करने योग्य नहीं होते। मधुर चाँदनी रात में बिताए गए प्रेम के उजले क्षण किसी
उज्ज्वल कहानी के समान होते हैं। यह गाथा बिल्कुल निजी संपत्ति होती है। अतः
आत्मकथा में इनके बारे में कुछ लिखना अनावश्यक है।
प्रश्न 3.चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है?
उत्तर-चाँदनी रात की सुंदरता को कवि
ने निम्नलिखित रूपों में देखा है
· आकाश में फैली चाँदनी को पारदर्शी
शिलाओं से बने सुधा मंदिर के रूप में, जिससे सब कुछ देखा जा सकता है।
· सफेद दही के उमड़ते समुद्र के रूप
में।
· ऐसी फ़र्श जिस पर दूध का झाग ही झाग
फैला है।
· आसमान को स्वच्छ निर्मल दर्पण के रूप
में।
प्रश्न 4.कवि देव ने
वसंत को राजा कामदेव का पुत्र क्यों कहा है?
उत्तर-कवि
देव ने वसंत का परंपरा से अलग वर्णन करते हुए कहा है कि वसंत ऋतु अत्यंत सुंदर और
मनोरम है। उसके आने से सर्वत्र खुशी का वातावरण बन जाता है। प्राणी के साथ-साथ
यहाँ तक कि संपूर्ण प्रकृति हर्षित हो जाती है। वसंत की भाँति ही राजा कामदेव का
पुत्र सुंदर एवं खुशियाँ बढ़ाने वाला है। अतः वसंत को राजा कामदेव का पुत्र कहा
गया है।
प्रश्न 5.ऋतुराज वसंत के आगमन पर
प्रकृति में क्या-क्या दृश्य दिखाई दे
रहे हैं? ‘ऋतु वर्णन’ में संकलित छंद के आधार पर लिखिए।
उत्तर:राजा वसंत के स्वागत में प्रकृति ने अनेक प्रकार की साज-सज्जा की है। वनों और उपवनों में विविध प्रकार के वृक्ष फूलों से
सज्जित हो गए हैं। कवि उनको ऋतुराज वसंत की चतुरंगिणी सेना बता रहा है। वसंत के
स्वागत में कोयले कूक रही हैं। कवि के अनुसार ये राजा वसंत की प्रशंसा करने वाले
बंदीजन (भाट / चारण)हैं। गुंजार करते भौंरे गुणी गायक या संगीतकार हैं। सरसों आदि के
पीले फूलों की सुगंध, ‘सोने में सुगंध’ का दृश्य प्रस्तुत कर रही है।
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Nice Information..
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