राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड :कक्षा 10वीं हिंदी पाठ्यपुस्तक आधारित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर,अध्याय -04 आत्मकथ्य जयशंकर प्रसाद
क्षितिज भाग -2 (काव्य – खंड)
अध्याय -04 आत्मकथ्य जयशंकर प्रसाद
जीवन परिचय-
- प्रसाद जी का जन्म काशी के एक सुप्रसिद्ध वैश्य परिवार में 30 जनवरी सन् 1889 ई. में हुआा था।
- काशी में इनका परिवार ‘सुँघनी साहू’ के नाम से प्रसिद्ध था।
- इसका कारण यह था कि इनके यहॉं तम्बाकू का व्यापार होता था।
- प्रसाद जी के पितामह का नाम शिवरत्न साहू
- पिता का नाम देवीप्रसाद था।
- प्रसाद जी के पितामह शिव के परम भक्त ओर दयालु थे।
- इनके पिता भी अत्यधिक उदार और साहित्य-प्रेमी थे।
- प्रसाद जी का बाल्यकाल सुख के साथ व्यतीत हुआ। इन्होंने बाल्यावस्था में ही अपनी माता के साथ धाराक्षेत्र, ओंकारंश्वर, पुष्कर, उज्जैन और ब्रज आदि तीर्यों की यात्रा की।
- अमरकण्टक पर्वत श्रेणियों के बीच, नर्मदा में नाव के द्वारा भी इन्होंने यात्रा की।
- यात्रा से लौटने के पश्चात् प्रसाद जी के जिता का स्वर्गवास हो गया।
साहित्यिक परिचय- प्रसाद जी ने अपनी भाषा का श्रृंगार संस्कृत के तत्सम शब्दों से किया
है। भावमयता इनकी भाषा शैली प्रधान विशेषता है। भावों ओर विचारों के अनुकूलित शब्द इनकी भाषा में सहज रूप से आ गए है।
रचनाएँ- कृतियॉं प्रसाद जी प्रमुख है।
- काव्य- ऑंसू, कामायनी, चित्राधर, लहर, झरना
- कहानी- आँधी, इन्द्रजाल , छाया, प्रतिध्वनि (प्रसाद जी अंतिम काहनी ‘सालवती’ है।)
- उपन्यास– तितली, कंकाल इरावती
- नाटक– सज्जन, कल्याणी-परिणय, चन्द्रगुप्त,
सकन्दगुप्त, अजातशुत्र, प्रायाश्चित्त, जनमेजय का नाग यज्ञ, विशाख, ध्रुवस्वामिनी
- निबन्ध- काव्यकला एवं अन्य निबन्ध
आत्मकथ्य कविता का सार
कवि का जीवन दुखों से भरा है। उसके जीवन में प्रिय-प्रेम भी स्वप्न
की तरह मधुर एवं क्षणिक रहा। प्रिय-प्रेम की स्मृतियाँ ही उसे सांत्वना देती हैं।
इसलिए संसार उसे निस्सार और नीरस लगता है। वह अपनी मनोदशा के अनुरूप ही पत्तियों
को मुरझाता, गिरता और ढेर बनकर नष्ट होता
देखता है। अपने जीवन में कुछ भी विशेष अथवा सुखद न होने के कारण वह अपनी कथा नहीं
कहना चाहता। जीवन के बनने और बिगड़ने के क्रम को देखकर भी जब लोग एक-दूसरे के दुखों को न समझकर
मजाक उड़ाते हैं तो कवि भी अपनी कथा को दबाकर रखना चाहते हैं और दुखों से भरी अपनी
अति सामान्य कथा किसी को नहीं सुनाते।
परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण
सप्रसंग व्याख्या
किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले-
अपने को समझो, मेरा रस ले अपनी भरने वाले।
यह विडंबना! अरी सरलते हँसी तेरी उड़ाऊँ मैं।
भलें अपनी या प्रवंचना औरों की दिखलाऊँ मैं।
उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
अरे खिल-खिलाकर हँसतने वाली उन बातों की।
मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देकर जाग गया।
आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
प्रसंग–प्रस्तुत काव्यांश जयशंकर प्रसाद की
कविता आत्मकथ्य से अवतरित है।
व्याख्या – कवि कहते हैं कि उनका जीवन
स्वप्न के समान एक छलावा रहा है। जीवन में जो कुछ वो पाना चाहते हैं वह सब उनके
पास आकर भी दूर हो गया। यह उनके जीवन की विडंबना है। वे अपनी इन कमज़ोरियों का
बखान कर जगहँसाई नही करा सकते। वे अपने छले जाने की कहानी नहीं सुनाना चाहता। जिस
प्रकार सपने में व्यक्ति को अपने मन की इच्छित वस्तु मिल जाने से वह प्रसन्न हो
जाता है, उसी प्रकार कवि के जीवन में भी
पएक बार प्रेम आया था परन्तु वह स्वपन की भांति टूट गया। उनकी सारी आकांक्षाएँ महज
मिथ्या बनकर रह गयी चूँकि वह सुख का स्पर्श पाते-पाते वंचित रह गए। इसलिए कवि कहते
हैं कि यदि तुम मेरे अनुभवों के सार से अपने जीवन का घड़ा भरने जा रहे हो तो मैं
अपनी उज्जवल जीवन गाथा कैसे सुना सकता हूँ।
विशेष
(i) काव्यांश की भाषा खड़ी बोली है, जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का पुट है।
(ii) इसमें नवीन उपमाओं और रूपकों का सुंदर समावेश हुआ है।
(iii) इसमें छायावादी गुण और रहस्यवाद की झलक मिलती है।
जिसके अरूण-कपोलों की मतवाली सुन्दर छाया में।
अनुरागिनी उषा लेती थी निज
सुहाग मधुमाया में।
उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके
पथिक की पंथा की।
सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों
मेरी कंथा की?
छोटे से जीवन की कैसे बड़े
कथाएँ आज कहूँ?
क्या यह अच्छा नहीं कि औरों की
सुनता मैं मौन रहूँ?
सुनकर क्या तुम भला करोगे मेरी
भोली आत्मकथा?
अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।
प्रसंग–प्रस्तुत काव्यांश जयशंकर प्रसाद की
कविता आत्मकथ्य से अवतरित है।
व्याख्या : प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपने सुंदर सपनों का उल्लेख करते हैं और
कहते हैं कि उनके जीवन में भी कुछ सुंदर सुखद पल आए थे। आज वही यादें उनके वर्तमान
जीवन के लिए मानो संबल बन गई हैं। कवि कहते हैं कि उन्होंने भी प्रेम के अनगिनत
सपने संजोए थे, किंतु वे सपने केवल सपने बनकर ही
रह गए। वास्तविक जीवन में उन्हें वह सुख मिल न सका जिसे वे प्राप्त करना चाह रहे
थे। कवि कहते हैं कि मेरी प्रेयसी के सुंदर लाल गालों की मस्ती भरी छाया में भोर
की लालिमा मानो अपनी माँग भरती थी, ऐसी रूपसी की छवि अब मेरा पाथेय बनकर रह गई है क्योंकि उसे मैं
वास्तव जीवन में पा न सका। मेरे प्यार के वे क्षण मिलन से पूर्व ही छिटक कर दूर हो
गए। इसलिए मेरे जीवन की कथा को पर्त दर पर्त खोल कर यानी जानकर तुम क्या करोगे।
कवि अपने जीवन को अत्यंत छोटा समझकर किसी को उसकी कहानी सुनाना नहीं चाहते। इसमें
कवि की सादगी और विनय का भाव स्पष्ट होता है। वे दूसरों के जीवन की कथा सुनने और
जानने में ही अपनी भलाई समझते हैं। वे कहते हैं कि अभी मेरे जीवन की घटनाओं को
कहानी के रूप में कहने का समय नहीं आया है। अतीत के साये में वे अभी सो रही हैं।
अत: उनको अभी शांति से सोने दो यानी मेरे अतीत को मत कुरेदो। मेरे अतीत जीवन की
घटनाओं को मौन कहानी के रूप में रहने दो, इसी में सबकी भलाई है।
विशेष
(i) प्रस्तुत काव्यांश संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली में रचित है।
(ii) भाषा प्रतीकात्मक है।
(iii) स्मृति-पाथेय में रूपक अलंकार है।
(iv) इसमें छायावादी शैली की स्पष्ट झलक मिलती है।
(v) ‘थकी सोई है मेरी मौन व्यथा’ में मानवीकरण अलंकार है।
(vi) इसमें कवि का यथार्थवाद झलकता है। कवि दुखी-निराश होकर भी अपने अतीत की सुखद
स्मृतियों के सहारे अपने वर्तमान जीवन को गुजार देना चाहते हैं।
परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.कवि आत्मकथा
लिखने से क्यों बचना चाहता है?
उत्तर-कवि
बादलों को क्रांति का सूत्रधार मानता है। वह उससे पौरुष दिखाने की कामना करता है।
इसलिए वह उसे गरजने-बरसने के लिए बुलाता है, न कि
फुहार छोड़ने, रिमझिम बरसने या केवल बरसने के लिए। कवि
तापों और दुखों को दूर करने के लिए क्रांतिकारी शक्ति की अपेक्षा करता है।
प्रश्न 2.स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर-कविता में बादल तीन अर्थों की
ओर संकेत करता है
1.
जल बरसाने वाली शक्ति के रूप में
2.
उत्साह और संघर्ष के भाव भरने वाले कवि के रूप में
3.
पीड़ाओं का ताप हरने वाली सुखकारी
शक्ति के रूप में।
प्रश्न 3.भाव स्पष्ट
कीजिए
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न
देखकर जाग गया।
आलिंगन
में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
(ख) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया
में।
अनुरागिनी
उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उत्तर-(क) उक्त पंक्तियों का भाव यह है कि कवि भी अन्य
लोगों की भाँति सुखमय जीवन बिताना चाहता था पर परिस्थिति वश सुखमय जीवन की यह
अभिलाषा उसकी इच्छा बनकर ही गई। सुख पाने का उसे अवसर भी मिला पर वह हाथ आते-आते
रह गया अर्थात् उसकी पत्नी की मृत्यु हो जाने से वह सुखी जीवन का आनंद अधिक दिनों
तक न पा सका।
(ख) कवि की प्रेयसी अत्यंत सुंदर थी। उसके
कपोल इतने लाल, सुंदर और मनोहर थे कि प्रात:कालीन उषा भी
अपना सौंदर्य बढ़ाने के लिए लालिमा इन्हीं कपोलों से लिया करती थी। अर्थात् उसकी
पत्नी के कपोल उषा से भी बढ़कर सौंदर्यमयी थे।
प्रश्न 4.उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’- कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर-आत्मकथ्य कविता की भाषागत
विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) संस्कृत शब्दावली की बहुलता-‘आत्मकथ्य’ कविता में संस्कृतनिष्ठ भाषा का
प्रयोग हुआ है; जैसे
· इस गंभीर अनंत-नीलिमा में असंख्य
जीवन-इतिहास।
· उसकी स्मृति पाथेय बनी है थके पथिक की
पंथा की।
(ii) प्रतीकात्मकता-‘आत्मकथ्य’ कविता में प्रतीकात्मक भाषा का खूब
प्रयोग हुआ है; जैसे
· मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी यह
अपनी।
· तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे-यह गागर रीती।
· उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की।
· सीवन को उधेड़ कर देखोगे क्यों मेरी
कंथा की।
(iii) बिंबात्मकता-‘आत्मकथ्य’ कविता में बिंबों के प्रयोग से दृश्य
साकार हो उठे हैं; जैसे
· मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी यह
अपनी।।
· मुरझाकर गिर रहीं पत्तियाँ देखो कितनी
आज घनी।
· अभी समय भी नहीं, थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।
(iv) अलंकार-आत्मकथ्य कविता में अनुप्रास
और मानवीकरण अलंकार की छटा दर्शनीय है
अनुप्रास –
· कह जाता कौन कहानी यह अपनी।
· तब भी कहते हो कह डालें।
मानवीकरण –
· मधुप गुन-गुनाकर कह जाता कौन कहानी यह
अपनी।
· थकी सोई है मेरी मौन व्यथा।
(v) गेयता एवं संगीतात्मकता-आत्मकथ्य
कविता की प्रत्येक पंक्ति के अंत में दीर्घ स्वर एवं स्वर मैत्री होने से योग्यता
। एवं संगीतात्मकता का गुण है;
जैसे
तब भी कहते हो–कह डालें, दुर्बलता अपनी बीती। तुम सुनकर सुख
पाओगे, देखोगे यह गागर रीती।
उम्मीद है पोस्ट आपको पसंद आई हो
तो पोस्ट like share और कमेंट जरुर करे और अपने मिलने वालो को
अवश्य बताये !
उपर दी गई जानकारी मे अगर यदि आपका कोई भी विचार,सुझाव हो तो कमेंट बॉक्स में
जरूर बताइए जिससे हम आपकी मदद कर सकें !
अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया है तो इसे Like
और share जरूर करें ! इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद…