बगडावत कथा -15
इधर युद्धभूमि से वापिस आकर नेतुजी
नियाजी को जगाती है और कहती है कि उठिए, आप के दोनों बेटे
घमासान युद्ध में मारे गए हैं। जब नियाजी उठते हैं तो देखते हैं कि उनके महल की छत
पर बहुत सारी गिरजें (चीलें) बैठी हुई हैं। नियाजी गिरजों से पूछते हैं कि कहो
आपका यहाँ कैसे आना हुआ। गिरजें कहतीं हैं कि हमें रावजी और बगड़ावतों के युद्ध की
खबर सात समुन्दर पार से लगी है। कलयुग के इस महाभारत में हम अपनी भूख मिटाने आई
हैं। अगर आप हमारी भूख मिटाने का वचन दो तो हम यहाँ रुकें नहीं तो वापस जाएं।
नियाजी जवाब देते हैं कि इस युद्ध में मैं बहुत लोगों के सिर काटूगां। तुम पेट भर
कर खाना। और अगर तुम मेरी बोटियाँ खाना चाहती हो तो ६ महीनें बाद आना। मैं ६ महीने
का भारत करुँगा (नियाजी को ६ महीने आगे तक का पहले से ही आभास हो जाता था) नियाजी
युद्ध में जाने से पहले भगवान से प्रार्थना करते हैं कि मैं महल में बहुत आराम से
रहा और अगले जन्म भी मुझे इसी देश में ही भेजना और भाई भी सवाई भोज जैसा ही देना।
फिर नेतुजी नियाजी की आरती उतारती है और युद्ध में जाने के लिए उनके तिलक करती
हैं। नेतुजी फिर नियाजी को सवाईभोज से मिलने जाने के लिए कहती है। नियाजी, नेतुजी कि बात मानकर सवाई भोज से मिलने
जाते हैं। जब दोनों भाई गले मिलते हैं तब दोनों की आँखों में आँसू आ जाते हैं कि
अबके बिछ्ड़े जाने कब मिलेगें। नियाजी कहते हैं कि अब हमारा मिलना नहीं होगा।
नियाजी फिर रानी जयमती से भी मिलते हैं और एक वर मांगते हैं कि हमारे मरने के बाद
हमारा नाम लेने वाला कौन होगा ? भवानी कहती है कि
बहरावत का बेटा भूणा जी और सवाई भोज के वारिस मेहन्दूजी पानी देने के लिए रहेंगे।
इन दोनों को तुम राज्य से दूर भेज दो, तो ये बच जाऐंगे। और
तुम बगड़ावतों का नाम लेने वाला छोछू भाट रहेगा। और तुम्हारे यहाँ भगवान स्वयं
अवतार लेंगे। इतना सुन नियाजी सवाई भोज के पास वापस आ जाते हैं। और उनके महल में
अपनी बड़ी भाभी (सवाई भोज की पहली रानी पदमा दे) को बुलवाकर मेहन्दूजी को ले जाने
का आग्रह करते हैं। पदमा दे बड़े भारी मन से अपने बेटे को नियाजी के साथ विदा करती
है और यह तय होता है कि वो बगड़वतों के धर्म भाई भैरुन्दा के ठाकुर के पास अजमेर
में रहेगा। सवाई भोज उस समय मेहन्दू के साथ कुछ सेवक और घोड़े और उनके खर्चे के
लिये काफी सारी सोने की मोहरें एवं काफी सारी धन-दौलत भी भेजते हैं। सवाई भोज कहते
हैं बेटा मेहन्दू कई वर्ष पहले एक बिजौरी कांजरी नटनी अपने यहां कर्तब दिखाने आयी
थी तब उसे हमने ढ़ाई करोड़ का जेवर दान में दिया था। उसमें से आधा तो वो अपने साथ
ले गयी और आधा (सवा करोड़ का) जेवर यहीं छोड़ गयी थी वो मेरे पास रखा है। मेरे मरने
के बाद अगर वो आ जाये तो तुम ये जेवर उसे दे देना और उसके नाम का यह खत भी उसे दे
देना। जेवर को एक रुमाल की पोटली में बांध कर दे देते हैं और कहते हैं कि अगर वो
नहीं आये तो यह धन अपने पास मत रखना इसे कोई भी जनसेवा के काम में लगा देना। कुंआ, तालाब, बावड़ी
बनवा देना। इतना कहकर सवाई भोज नियाजी और मेहंदूजी को भारी मन से भेरुन्दा ठाकुर
के पास भेजने के लिए विदा करते हैं। और संदेश देते हैं कि जब कभी भी बिजौरी कांजरी
आए, यह जेवर उसे मेहन्दू
के हाथ से दिला देना। सवाई भोज मेहन्दु जी के अलावा बगड़ावतों के ४ और बच्चे नियाजी
को दे देते हैं और कहते हैं कि इन सबको भेरुन्दा ठाकुर के पास पहुँचा देना रानी
जयमती को इस बारे में पता चलता है तो वो हीरा को कहती है कि नियाजी चोरी करके ४
बच्चों को ले गए हैं लेकिन मैं किसी को नहीं छोडूंगी और वह अपना चक्र चला कर
मेहन्दूजी के अलावा बाकी सब बच्चों के शीश काट लेती है। मेहन्दू जी भेरुन्दा
ठाकुर के पास अजमेर चले जाते हैं। यहां से फिर नियाजी अपनी रानी नेतुजी को साथ
लेकर बाबा रुपनाथजी के पास गुरु महाराज के दर्शन के लिये रुपायली जाते हैं। और
उनके पांव छूकर कहते हैं कि गुरुजी आज्ञा दो तो युद्ध शुरु करे, बाबा आशिष देवो। नियाजी बाबा रुपनाथजी
की परिक्रमा लगा कर कहते हैं मेरे जैसे चेले तो आपको बहुत मिल जायेगें, मगर मुझे आप जैसा गुरु फिर नहीं मिलेगा।
बाबा रुपनाथजी कहते हैं, बच्चा यह क्या कहते
हो, मेरे जैसे तो बाबा
बहुत मिल जायेगें मगर तेरे जैसा चेला नहीं मिलेगा। नियाजी कहते हैं कि जब मैं अगला
जन्म लूं तो मुझे शेर का जन्म देना ताकि मेरे मरने के बाद आपके बिछाने के लिए मेरी
खाल काम आ जाए। नेतुजी बाबा रुपनाथ से कहती है कि मेरे पति को अगले जन्म में अगर
शेर का जन्म मिले तो मुझे शेरनी का जन्म देना ताकि मैं उनके साथ वन में रह कर उनके
दर्शन करती रहूँ। बाबा रुपनाथ फिर नेतुजी से कहते हैं कि अगर नियाजी का शीश भवानी
ले जाए तो तू इसका खाण्डा अपने साथ ले जाना और इसके खाण्डे के साथ ही सती हो जाना।
बाबा रुपनाथ यह वचन नेतुजी से ले लेते हैं। बाबा रुपनाथ जी नियाजी को अपनी कुटिया
के अन्दर ले जाते हैं। उन्हें एक जड़ी-बूटी देते हैं और कहते हैं कि इसे अपने साथ
युद्ध-भूमि पर ले जाओ। नियाजी को जड़ी देकर बाबा रुपनाथ कहते हैं कि यह ऐसी जड़ी है
जिसके असर से सिर कटने के बाद भी तुम ८० पहर तक दुश्मन से लड़ सकते हो। तुम इसे
अपनी जांघ पर बांध लो लेकिन इसकी खबर किसी को भी मत देना।
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देवनारायण कथा