google.com, pub-9828067445459277, DIRECT, f08c47fec0942fa0 बगड़ावत कथा -9

बगड़ावत कथा -9

                 
                                    बगडावत कथा -9

उधर गोठां मे बगड़ावतों के दरबार में सभी भाई बैठे होते है, हीरा चील बनकर आकाश में उड़ती हुई आती है और रानी जयमती का पत्र गिरा देती है। जिसे नियाजी देख लेते हैं और अपनी ढाल से ढक देते हैं। यह सब सवाई भोज देख लेते हैं और नियाजी से अकेले में पूछते हैं कि भाई नियाजी क्या संदेश आया है।वो कागज का परवाना कहां है जो ऊपर से गिरा था। नियाजी को हमेशा 6 महीने आगे का अहसास पहले ही हो जाता था इसलिए वह भांप जाते हैं कि इस परवाने पर अगर हम गौर करेंगे तो सभी मारे जायेगें। सवाई भोज जिद करते हैं तो नियाजी पत्र सवाई भोज को दे देते हैं। सवाई भोज रानी जयमती का पत्र पढ़ते हैं। और फिर सभी बगड़ावत भाई आपस में बैठकर निर्णय लेते हैं कि रानी को रावजी के यहां से भगाकर लाना ही होगा। रानी को भगाकर लाने के बाद क्या होगा, इसके भी सारे परिणामों पर गौर कर लिया जाता है और बगड़ावत सारी तैयारी में जुट जाते हैं। तेजाजी को भी साड़ीवान भेजकर पाटन की कचहरी बुलाया जाता है। साडू माता नियाजी को बुलाकर पूछती है कि क्या बात है, कहाँ की तैयारी है? नियाजी उन्हें सारी बात बता देते हैं कि सवाई भोज की शादी कैसे रानी जयमती के साथ हुई। फिर नियाजी साडू माता से कहते हैं कि हम सब रानी को लेने जरुर जाऐंगे। वो हमारे भाई सवाईभोज के खाण्डे के साथ शादी कर चुकी है। ऐसा कहकर नियाजी और बाकी सभी भाई अपने घोड़ो को तैयार करते हैं। जब साडू माता उन्हें जाने के लिए मना करती है तो नियाजी कहते कि हमने शक्ति को वचन दिया है इसलिए जाना तो अवश्य पडेगा।साडू माता कहती है कि ऐसी औरत को घर लाने से क्या फायदा जिसके लिये खून बहाना पड़े।एक भवानी के लिए आप को अपने माथे देने पड़ेगें। साडू माता फिर नियाजी को समझाती है कि घर में एक औरत है तो दूसरी को क्यों लाते हो? लेकिन नियाजी नहीं मानते और जयमती को लेने जाने की बात दोहराते हैं। तेजाजी की पत्नी तेजाजी को कहती है, आप तो बणीये के भाणजे हो, आप रण में मत जाना। साडू माता कहती है कि मैं आपकी दारु यहीं मंगवा देती हूं। राण में दारु पीने मत जाओ। मैं प्याले भर यहीं पिला दूंगी। तो नियाजी फिर कहते हैं कि वचन दिया हुआ है, जाना तो पडेगा। साडू माता बगड़ावतों को जाने के लिए बार-बार मना करती हैं। साडू माता कहती है कि पर नारी को अंग लगाना अच्छा नहीं है। रावण चाहे कितना ही बलवान था मगर सीता हरण करने से उसका भी अंत हो गया। जयमती रावजी की स्त्री है। पर-नारी को आप भी मत लाओ नहीं तो अन्जाम बुरा होगा। साडू माता नियाजी को बताती है कि मैंने सपना देखा है कि खारी नदी के ऊपर घमासान युद्ध हो रहा है। कटे हुए माथों का ढेर लगा हुआ है। मेरी आखों से आंसू आ रहे हैं। साडू माता कहती है कि मैंने भवानी को मुण्ड मालाधारण किये हुए खारी नदी के घाट पर बैठे देखा है। इस पर नियाजी कहते हैं कि माताजी सपना तो झूठा होता है, सपने पर क्या यकीन करना। जब बगड़ावत साडू माता के बहुत समझाने पर भी नहीं मानते हैं तो साडू माता बगड़ावतों के गुरुजी को एक पत्र लिखती है कि गुरुजी आप के चेले गलत राह पर जा रहे हैं। आप आकर इन्हें समझाओ। बाबा रुपनाथजी पत्र का जवाब देते हैं कि साडू माता रानी को तो जरुर लाना है। नियाजी बाबा रुपनाथजी का पत्र पढ कर सबको सुनाते हैं बगड़ावतों के यहां रणजीत नगाड़ा बजने लगता है।माता साडू कहती है, बाबाजी को तो आग बुझाने के लिये कहा था इन्होंने तो और आग लगा दी है। नियाजी रानी जयमती की सुन्दरता का वर्णन साडू माता के सामने करते हैं। उनके श्रृंगार और रुप के बारे में बताते हुए उन्हें रानी पद्मनी की उपमा देते हैं। इस पर साडू माता नियाजी से कहती है कि आप जाओ और रानी को लेकर आओ मैं नई रानी को अपनी बहन के जैसे समझूंगी और उसे लेकर आओगे तो उसकी आरती उतारकर हंसी-खुशी उसका स्वागत करूंगी। दूसरी सभी रानियाँ साडू माता से कहती हैं कि रानी जयमती है तो बहुत खूबसूरत लेकिन है तो दूसरे की औरत। बगड़ावत राण जाने के लिए अपने घोड़ों का श्रृंगार करते हैं। सवाई भोज हीरों-पन्नों और सोने के जेवरों से सजी हुई बुली घोड़ी पर सवार होकर निकलते हैं। साडू माता बगड़ावतों को शाम के वक्त जाने के लिए मना करती है और सुबह जाने का आग्रह कहती हैं। नियाजी कहते हैं कि जाना तो है ही, आप हमारी वापसी के लिए शगुन करना और अब हमें आज्ञा दो। साडू माता की अनुमति के बाद सभी भाई घोड़ों को नचाते हुए सवार होकर गांव के बाहर इकट्ठे होते हैं और देखते हैं सभी भाई आ गये मगर तेजाजी नहीं आये। नियाजी तेजाजी को परवाना लिखते हैं कि तेजाजी आप पत्र पढ़ते ही जल्दी आ जाना हम आप पर आंच भी नहीं आने देंगे। आपको सुरक्षित वापस लायेगें। आप नहीं आये तो आपका सिर काटकर साथ ले जायेगें। समाचार सुनकर तेजाजी अपने घोड़े पर सवार होकर अपने भाइयों के साथ आ जाते हैं। और सारे बगड़ावत भाई रानी को लेने के लिए राठौड़ा की पाल पर पहुंचते हैं। उधर रानी जयमती के लिये बनाया गया नया महल बनकर तैयार है, रानी जयमती महलों में रहने आ जाती है। जब रावजी अपनी नई रानी जयमती के पास रात को आते हैं, रानी उनके साथ चौपड़ खेलती है और अपनी माया से रावजी को मुर्गा बना देती है और हीरा को बिल्ली बना देती है। रात भर मुर्गा बने रावजी बिल्ली से बचने से लिये इधर-उधर भागते, छिपते रहते हैं। ऐसा क्रम कई दिनों तक चलता रहता है। एक दिन रावजी के छोटे भाई नीमदेजी पूछते हैं कि भाईसा नई रानी में इतना मगन हो गये हो कि आपकी आंखे इतनी लाल हो रही हैं, क्या रात भर सोये नहीं? रावजी कहते हैं कि नीमदे लगता है महल में कोई भूत प्रेत हैं जो रात भर मेरे पीछे बिल्ली बनकर घूमता रहता है और मुझे डराता है।









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