बगड़ावत कथा -6

बगड़ावत कथा -6

                   

                               बगडावत कथा -6


भगवान विष्णु बगड़ावतों को श्राप देने के लिये देव लोक से पृथ्वी पर साधु का वेश धारण कर बगड़वतों के गांव गोठां में प्रकट होते हैं। साडू माता अपने महल में पूर्ण नग्न अवस्था में स्नान कर रही होती है और सभी बगड़ावत गायें चराने हेतु जंगल में गये होते हैं। साधु वेश धारण कर भगवान विष्णु साडू माता के द्वार पर आकर भिक्षा मांगते हैं। साडू माता की दासी भिक्षा लेकर आती है तो साधु भिक्षा लेने से मना कर देते है और कहते हैंकि वह दास भिक्षा ग्रहण नहीं करेगें तुम्हारी मालकिन अभी जिस अवस्था में है उसी अवस्था में आकर भिक्षा दे तो वो ग्रहण करेगें अन्यथा वह श्राप देकर चले जायेंगे। यह बात सुनकर साडू माता सोचती है कि यह साधु जरुर कोई पहुंचे हुए संत हैं, इन्हें अगर इसी अवस्था में भिक्षा नहीं दी तो वो जरुर श्राप दे देंगे। साडू माता नहाना छोड़ नग्न अवस्था में ही दान लेकर साधु महाराज को देने के लिये आती है। भगवान देखते है कि यह तो उसी अवस्था में चली आ रही है। साडू माता एक दैवीय शक्ति होती है। उसके सतीत्व के प्रभाव से उसके सिर के केश (बाल) इतने बढ़ जाते हैं कि उसके केशों से सारा शरीर ढक जाता है। साधु को दान देकर उन्हे प्रणाम करती है। साधु वेश धारण किये भगवान कहते है कि मैं तुमसे प्रसन्न हुआ। तू कोई भी एक वरदान मांग। मैं आया तो तुझे छलने के लिये था (श्राप देने) मगर तेरे विश्वास से मैं प्रसन्न हुआ। साडू माता भगवान से कहती है कि महाराज मेरे कोई सन्तान नहीं है और अपने केशों की झोली फैलाकर कहती है की मेरी खाली झोली भर दो। भगवान कहते हैं तथास्तु। साडू माता तू अगर अपनी कोख बताती तो मैं तेरे गर्भ से जन्म लेता। लेकिन तूने झोली फैलाई है इसलिये मैं तेरी झोलियां ही आउंगा साडू माता पूछती है भगवान कैसे? साधू महाराज अपने असली रुप में आकर साडू माता को दर्शन देते हैं और कहते हैं कि जब भी तुम पर कोई विपदा आये तो तुम सुवा और सोतक के दिन टाल कर सुबह ब्रह्म मुहर्त में नहा-धोकर मालासेरी डूंगरी जाकर सच्चे मन से मेरा ध्यान करना, मेरा अवतार वहीं होगा।सबसे पहले चट्टान फटेगी,पानी बहकर आयेगा और उसमें कमल के फूल खिलेंगे। उन्हीं में से एक कमल के फूल में से मैं अवतरीत होकर तेरी झोल्या आउंगा। यह कह कर भगवान अन्तध्र्यान हो जाते हैं। भगवान विष्णु वापस आकर राजा बासक से कहते हैं मैं गया तो साडू माता को छलने के लिये था मगर उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दे बैठा। अब मैं कुछ नहीं कर सकता। चलो मैं तुमको शक्ति (दुर्गा) के पास ले जाता हूं, वह ही कुछ कर सकती हैं। भगवान विष्णु और राजा बासक दुर्गा के पास आते है और अपनी सारी बात वताते है। दुर्गा उन दोनों की बात सुनकर कहती है कि बगड़ावत तो मेरे सेवक हैं, मेरी भक्ति से पूजा करते रहते हैं। मैं उन्हें कैसे छल सकती हूं? मगर आपके लिये कुछ तो करना ही होगा। और बगड़ावतों को खपाने (मारने) का वचन राजा बासक को दे देती है। और दुर्गा, बुआल के राजा के यहां अवतरित होने की योजना बनाती है। एक दिन बुआल के राजा ईडदे सोलंकी शिकार खेलने जंगल में जाते हैं और उन्हें वहाँ एक पालने में शिशु कन्या मिलती है। वह उसे घर ले आते है और उसका नाम जयमती रखते हैं। जयमती के रुप मे दुर्गा देवी के साथ एक और देवी, दासी के घर जन्म लेती है। उसका नाम हीरा होता है बुआल के राजा के कोई सन्तान नहीं होती है इसलिए वह बहुत खुश होते है और उनका बहुत खुशी से पालन पोषण करते हैं। हीरा और जयमती साथ-साथ बड़ी होती है और सखियों की तरह रहती हैं। हीरा राजकुमारी जयमती की सेवा में ही रहती है।

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