google.com, pub-9828067445459277, DIRECT, f08c47fec0942fa0 बगडावत कथा -22

बगडावत कथा -22


बगडावत कथा -22


साडू माता सोचती है कि भाटजी तो जीवित ही वापस आ गये है। इसलिए भाटजी के खाने में जहर मिला देती है। देवनारायण और भाटजी साथ में खाना खाने बैठते हैं। भगवान को सारी बात का पता होता है कि भाट के खाने में जहर मिला हुआ है। जब साडू माता खाना परोसती है तब नजर बचाकर देवनारायण भाटजी को परोसा जहर वाला खाना खुद सामने रख लेते हैं और अपने लिये परोसा खाना भाटजी के सामने रख देते हैं। दोनों भोजन करना शुरु करतेहैं। साडू माता को पता चल जाता है कि जहर वाला खाना भगवान खा रहें हैं। साडू माता सोचती है कि नारायण जहर वाला खाना खाकर मर जायेगें। अब क्या करे यह सोचकर वो बहुत दुखी होती है और रोने लगती है। तब नारायण माताजी से पूछते हैं कि माताजी क्या बात है,आप रो क्यों रही हैं इतना कहकर देवनारायण उबासी लेते हैं तो साडू माता को देवनारायण के मुंह में सारा ब्रमाण्ड दिखाई देता है। धरती आकाश और कई जानवर विचरण करते देख चकित हो जाती है और साडू माता को विश्वास हो जाता है कि ये तो तीनों लोकों के नाथ हैं। इनका जहर से कुछ नहीं बिगड़ने वाला हैइनकों कोई नहीं मार सकता हैं। खाना खाने के बाद देवनारायण दुधीया नीम के पास जाकर सारा जहर उगल देते है। कहा जाता है कि उस दिन से नीम कड़वा हो गया। छोछू भाट से सारी बात पता चलने पर नारायण साडू माता से अपने परिवार के बारे में सवाल करते हैं कि किस तरह से मेरे काकाबाबासा मारे गये हैंऔर किसने मारा है उसका बदला लेना है और कल ही गोठां चलना होगा।दूसरे दिन सुबह जल्दी ही गोठां जाने के लिये तैयार होते हैं। नारायण को उनकी मामियां और मामाजी जाने से रोकते हैं कि आप छोटे से मोटे यहाँ हुये हो आपको देख कर तो हम धन्य होते हैं। आप चले जाओगे तो हमें आपके दर्शन कैसे होंगे। तब नारायण भाट से कहते हैं कि छीपा से हमारा चित्र छपाकर लाओ फिर हम यहाँ से चलेगें। मालवा में छीपा जाति के चित्रकार से भाट देवनारायण का चित्र छपवाकर लाते हैं और नारायण को देते हैं। नारायण अपनी मामियों को अपना चित्र देते हैं और कहते हैं कि आप रोज मेरे इस चित्र को देखकर मुझे याद कर लेना। साडू माताहीरा दासीनापा ग्वाला और कई ग्वालेछोछू भाटभाट की माँ डालू बाई और देवनारायण को देवनारायण के नानाजी और मामा-मामियाँ सभी बड़े प्यार से विदा करते हैं और कहते हैं कि वहाँ जाकर हमें भूल मत जाना। देवनारायण के साथ मालवा से लौटते समय ६४ जोगणियां और ५२ भैरु जो उनके बाएँ पाँव में समा जाते हैं वो भी साथ आते हैं। मालवा से लौटते समय रास्ते में धार नगरी होती है। धार नगरी में एक सूखा हुआ बाग होता है। देवनारायण का काफिला वहां रुकता हैं और सभी वहीं विश्राम करते हैं। जैसे ही देवनारायण उस बाग में अपने कदम रखते हैं,बाग हरा भरा हो जाता हैं। वहीं देवनारायण विश्राम करते हैं। उस बाग में धार नगरी की राजकुमारी पीपलदे अपनी सखियों के साथ देवी के मन्दिर में पूजा करने के लिये आती है। राजकुमारी के सिर पर सींग होता है और उसके सारे शरीर में कोढ़ होता है। वह रोज इस बाग में देवी की पूजा करने आया करती थी। राजकुमारी देखती है कि ये बाग तो सूखा हुआ थाआज एक दम हरा भरा कैसे हो गया राजकुमारी पीपलदे देवी की पूजा कर अपनी सखियों के साथ आती है जहाँ देवनारायण के डेरे लगे हुए थे। राजकुमारी देखती है कि ये कौन सिद्ध पुरुष इस बाग में आकर रुके हैं। इनके आने से बाग हरा भरा हो गया है। वह उनके दर्शनों के लिये आती है। जैसे ही देवनारायण की दृष्टि पीपलदे पर पडती है उसके माथे का सींग झड़ (गिरजाता है और उसके शरीर का सारा कोढ़ भी खत्म हो जाता है और वह खूबसूरत हो जाती है। यह चमत्कार देख कर पीपल बहुत खुश होती है और भगवान के चरणों में गिर पड़ती है और उसे पिछले जन्म की सारी बात याद आ जाती है कि नारायण के कहने से ही मैंने बगड़ावतों का संहार किया और मुण्ड माला धारण की थी और नेतु ने मुझे श्राप दिया था कि माथे पर सींग होगाकोढींलूली-लंगड़ी के रुप में धार में जन्म लेगी। और भगवान विष्णु देवनारायण अवतार लेंगे उनकी दृष्टि से ही मुझे श्राप से मुक्ति मिलेगी। पूर्व जन्म का आभास होने पर उसे याद आता है कि देवनारायण के साथ ही मेरा विवाह होगा। और पीपलदे जी अपनी कावरी हथनी पर सवार बधावा गीत गाती हुई राजा के दरबार में आती है । राजा जय सिंह दे पीपलदे से पूछते हैं कि यह सब कैसे हुआ और ये बधावा किस के लिये गा रही हो पीपलदे जी कहती है कि तीनों लोकों के नाथ देवनारायण ने अवतार लिया है। उन्होनें मेरा कोढ़ ठीक किया हैमेरी सारी बीमारी दूर कर दी है। उन्हीं के गीत गा रही हूं और उन्हीं के साथ मेरा विवाह करवाओ। धार नगरी के राजा जय सिंह जी देवनारायण के जात पात का पता लगाते हैंऔर कहते हैं कि ये विवाह नहीं हो सकता हैं क्योकि वो हमारे बराबर के नहीं है। पीपलदे विवाह के लिये जिद करती है और अन्न-जल छोड़ देती है। विवश हो राजा एक युक्ति निकालते हैं कि क्यों न देवनारायण को गढ़ गाजणा में भेज देवहां का राक्षस राजा इन्हें मार डालेगाअपना काम वैसे ही हो जाएगा। राजा जय सिंह देवनारायण को पत्र लिखते हैं कि हमारी धार नगरी के किवाड़ गढ़ गाजणा का राजा राक्षस ले गया है वो वापस लेकर आओ तो पीपलदे के साथ आपका विवाह करावें। उधर डेरे से साडू माता की घोड़ी को भी राक्षस चोरी कर ले गए। जब देवनारायण को साडू माता की घोड़ी का पता चलता है तब देवनारायण सोचते हैं कि दोनों काम साथ ही करके आ जायेगें। देवनारायण भैरुजी को पहरे पर लगाकर नीलागर घोड़े पर सवार गढ़ गाजणे से धार के किवाड़ और साडू माता की घोड़ी लेने निकल पड़ते हैं।
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