बगडावत कथा -23
गढ़ गाजणा के बाहर देवनारायण राक्षसों को मारना शुरु करते हैं।
एक को मारे दो हो जाऐं, दो मारे चार हो जाऐं। राक्षसों के खून की बूंदें
जमीन पर गिरते ही नये राक्षस पैदा हो जाते। ये देखकर देवनारायण अपने दायें पांव से
६४ जोगणीयां और ५२ भैरुओं को बाहर निकालकर उन्हें आदेश देते हैं कि इन राक्षसों के
खून की एक भी बूंद जमीन पर नहीं गिरनी चाहिये और अब भगवान राक्षसों का संहार करना
शुरु करते हैं। सभी जोगणियां और भैरु जितना भी खून होता है सब चट कर जाते हैं। इस
तरह सारे राक्षस मारे जाते हैं। अन्त में दो राक्षस बचते हैं। गज दन्त और नीम दन्त
जो साडू माता की घोड़ी लेकर गढ़ गाजणा की खाई में कूद जाते हैं और पाताल लोक में
छुप जाते हैं। भगवान देवनारायण भी राक्षसों के पीछे-पीछे पाताल लोक में कूदते हैं।पाताल लोक में
पृथ्वी को अपने शीश पर धारण करने वाले राजा शेष नाग आराम कर रहे हैं। भगवान के
घोड़े के टापों की आवाज सुनकर शेष नाग उठते हैं। देवनारायण उनसे पूछते हैं कि दो
राक्षस यहां आये हैं ? शेष नाग कहते हैं, हां आये हैं। नारायण कहते हैं उन्हें मेरे हवाले
कर दो। शेष नाग कहते हैं भगवान मेरे एक कुंवारी नाग कन्या है उसके साथ विवाह करों
तो मैं राक्षसों का पता बताता हूँ और फिर नारायण नाग कन्या के साथ विवाह कर लेते
हैं। पहला फेरा करके चंवरी से उठ कर फटकार मारते हैं और सेली बनाकर जोगी भोपा को
दे देते हैं। जिसे काली डोरी के रुप में देवनारायण के फड़ बाचने वाले भोपे अपने गले
में धारण किये रहते हैं। नाग कन्या से विवाह हो जाने के बाद शेष नाग देवनारायण को
गढ़ गाजणा का रास्ता बता देते हैं। गढ़ गाजणा पहुंचकर देवनारायण दैत्यराज पर हमला
करते हैं। देवनारायण से डर कर दैत्यराज के खास राक्षस गजदन्त और नीम दन्त दोनों
भगवान के पांव में पड़ जाते हैं और कहते हैं कि धार के किवाड़ हम वापस दे देगें और
ये साडू माता की काली घोड़ी भी आपको वापस दे देतें हैं। आप हमारे राजा की कन्या
चिमटीं बाई (दैत्य कन्या) से विवाह कर लो। भगवान दूसरा
विवाह चिमटीं बाई से करते हैं और दूसरा फेरा कर चवंरी से उठ फटकार मारते हैं और
लकड़ी बना कर जोगी भोपा को दे देते हैं जो देवनारायण की फड़ का परिचय देते वक्त भोपा
दृष्य दिखाने के काम में लेता है।नाग कन्या और दैत्य कन्या से विवाह करने के बाद
भगवान देवनारायण गढ़ गाजणा से धार के किवाड़ गज दन्त और नीम दन्त के सिर पर लदवाकर
धार नगरी में भेज देते हैं। धार नगरी के बाहर दोनों राक्षस दरवाजे वापस लगा देते
हैं। सुबह धार नगरी की प्रजा जागती हैं और देखती है कि नगरी के किवाड़ वापस आ गये
हैं। ये समाचार राजा जय सिंह को मिलता है। राजा देखने आते हैं और उन्हें पूरा
विश्वास हो जाता है कि देवनारायण जरुर कोई अवतारी पुरुष है। इसके साथ अपनी कन्या
का विवाह कर देना चाहिये। राजा जय सिंह जी ४ पण्डितों के साथ देवनारायण के लिए लग्न-नारियल (सोने का) भिजवाते हैं। चारों पण्डित जी
नारियल लेकर छोछू भाट के पास आते हैं। छोछू भाट उन ४ ब्राह्मणों (पण्डित) को माता साडू के पास लेकर
जाता हैं और ब्राह्मण माता साडू को नारियल स्वीकार करने को कहते हैं। देवनारायण उस
वक्त सोये हुए होते हैं। साडू माता उन्हें उठाकर कहती है कि धार के राजा के यहां से ४
ब्राह्मण आपके लिये राजकुमारी पीपलदे का लगन लेकर आये हैं। देवनारायण कहते है
माताजी पहले कन्या को देख आओ, कैसी है ? बिना देखे मेरा ब्याह करवा रही हो। माता साडू छोछू
भाट को लड़की देखने भेजती है। भाटजी पीपलदे को देखकर आते हैं। माताजी को बताते हैं
कि राजकुमारी जी तो बहुत सुन्दर है, पूरी तरह से नारायण के लायक है। धार के राजाजी के
यहां शहनाईयां बजने लग जाती है, नगाड़े बजते और पीपलदे और नारायण के डोरा (डोलडा) बांधते हैं। मंगल गीत गाये
जाते हैं। देवनारायण और पीपलदे की शादी हो जाती है। मगर नारायण ३ फेरे ही खाते हैं बाकि के आधे
फेरे मंगरोप में आकर खाते हैं।इसके बाद देवनारायण धार नगरी से अपने डेरे हटाकर
रवाना होते हैं। धार से चलने के बाद आगे आकर वे लोग सोनीयाना के बीहड़ (जंगल) में आकर विश्राम करते
हैं।भगवान देवनारायण तो पांच पहर की नींद में सो जाते हैं। सोनियाना के जंगल में
शिव-पार्वती
बैठे होते हैं। पार्वती जी शिवजी से पूछती है भगवान ये कौन है। शिवजी बताते हैं ये
विष्णुअवतार देवनारायण हैं, तो पार्वती कहती है कि अगर ये स्वयं भगवान के
अवतार हैं तो मैं इनकी परीक्षा लेती हूं। देवनारायण के काफिले को देखकर पार्वती जी
अपनी माया से एक राक्षस सोखिया पीर बनाती है और उसे कहती है कि आस-पास के १२ कोस का सारा पानी सोख ले
सोखिया पीर आसपास का सारा पानी पीकर एक पेड़ के नीचे छिप जाता हैं। अब गायों को और
काफिले के सारे इन्सानों को पानी की प्यास लगती है। सभी लोग पानी के लिये तड़पने
लगते हैं। गायें बल्ड़ाने (चिल्लाने) लगती हैं तो नापा ग्वाल और अन्य ग्वालें आसपास
पानी का पता करते हैं। उन्हें १२-१२ कोस दूर तक कहीं भी पानी नहीं मिलता हैं।
परेशान होकर नापाजी भगवान देवनारायण को जाकर उठाते हैं। कहते हैं नींद से जागो
भगवान, पानी
के बिना गायें और सब इन्सान मरे जा रहे हैं। देवनारायण गायों के प्यासी मरने की
बात सुन नींद से जागते हैं और भैरुजी को आदेश देते हैं कि भैरु आसपास के जंगल में
कौनसा पेड़ सबसे हरा है।
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देवनारायण कथा