श्री श्री 1008 भगवान
देवनारायण चालीसा
: : प्रारम्भः :
दोहा
ॐ नमो
गणपति गुरू , नमो
सरस्वती माया
देव
सुयशवर्णन करूँ , कण्ठ
विराजोआय ॥
- चौपाई -
नमो देव
नारायण स्वामी ।घट घट के प्रभु अन्तर्यामी॥
जगत
उजागर सब गुण । सागर देवनारायण नटवर नागर ॥
जय जय जय
भक्तन हितकारी इच्छा पूरण करो हमारी ॥
भोग
मोक्ष के दाता देवा । निस दिन करूँ आपकी सेवा ॥
दे सत
पंथ कुपंथ निवारो । किरपा कर भव पार उतारो ॥
अधम
उधारण नाम तुम्हारा ।भक्त मनोरथ पूरण हारा ॥
धर कर
संत रूप यदुराया । साडू माता को याचन आया ॥
करत
स्नान साडुमाता सुन आई । अपने घर खुद भिक्षा लाई॥
प्रेम
विवश ज्यों की त्यों धाई । बिना वस्त्र पहने चली आई ॥
नग्न देख
प्रभु संकुचे मन माई । पीठ फेरली जब यदुराई ॥
साडूमाता
यो वचन उचारा । तुम हो जगत पिता करतारा ॥
मैं बालक
तुम हो पितु माता । नग्न देख प्रभु क्यो शरमाता ॥
सुनत बचन
देखा भगवन्ता । बाल बढ़ाय तन ढ़का तुरन्ता ॥
ले
भिक्षा यों कहत मुरारी ।
मांगहु वर इच्छा अनुसारी ॥
जो तुम स्वामी देना चाहो।आप समान पुत्र बक्षाओ ॥
मम समान और कौ भोरी । मैं सुत होहुँ मात हित तोरी ॥
मैं छलने आया था तौही । उलटा छला मात ते मोही ॥
नापा साडुमात को मारण धाया । उसी समय प्रकटे यदुराया ॥
आम्बा निम्बा मरे सिरदारा । जिन्दा करया आप किरतारा ॥
किशना खाती का कोढ़ हटाया । कर दीन्ही कंचन सी काया ॥
प्रकटया जब प्रभु मालासेरी माही।राण नगर सारी थर्राई ॥
मारण विप्र आपको आया । संग आपके भुजंग पाया ॥
दुजा विप्र आया शैताना । बने आप उसी वक्त जवाना ॥
तीजा विप्र आया कर रीसा । वृद्ध रूप धरिया जगदीशा ॥
काल भैरव असुर बड़धारी । वश मे किया आप गिरधारी ॥
मालवा देश माहि गोविन्दा ।छोछु भाट को किना जिन्दा ॥
धारा नगरी राजा की बाई । पीपलदे शुभ नाम कहाई ॥
ताके कोढ़ नशाये आपा । अखिंया खोली हरे सन्तापा ॥
भुणा जी को लेने ताई । छोछु भाट को जवान बनाया ॥
भुणा जी को कीना वीरा । टुट पड़या जुड़ा जंजीरा ॥
आप धणी देमाली आया । बीला जी का कोढ़ हटाया ॥
वैधा नाथ की धुणी आया । बहु कोढ़िन का कोढ़ हटायाद ॥
जैतु का सब संकट मेटा । इच्छा पुरी दीन्हा बेटा ॥
लाला था इक जात बलाई । उसकी आप दो देह बनाई ॥
दीनो के रक्षक कहलाओ ।म्हारे
ताई क्यो शरमाओ ॥
आशा पूरण करो हमारी । अरजी सुणयो बेग मुरारी ॥
मनोकामना पूरण किज्यो । अष्ट सिद्धि नव निधि दीज्यो ॥
कई मोहि मारे ताना।लज्जा तुम राखो भगवाना ॥
हंसी जो मेरी करवासी । उध्द बिड़द आपकी जासी ॥
आप हमारे गुरू पितु माता । आप ही मित्र द्रव धाता ॥
आप कृपा बुद्धि बल पाऊँ । दाता तुम कह जाचन जाऊँ ॥
जय जय जय भुणा जी के भ्राता । कुमति निवारो सुमति दाता॥
दुष्टो को अब बेग खपाओ ।
धर्म ध्वजा जग में फहराओ ॥
-:दोहा:-
चालिसा यह प्रेम से , जो नित पढ़े प्रभाता ।
मनोकामना पूरसी , श्रीदेमाली नाथ ॥
तन - मन से शनिवार को पाठ करें चालिस ॥
भैरूराम सब मिटे , सुख हो विश्वा बीस ॥
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देवनारायण कथा