google.com, pub-9828067445459277, DIRECT, f08c47fec0942fa0 वो अवकाश चाहिए

वो अवकाश चाहिए



मन की थकान जो उतार दे
वो अवकाश चाहिए।
इस भागती सी जिंदगी में
फुरसत की सांस चाहिए ।
चेहरों को नहीं दिल को भी
पढ़ने का वक्त हो ….
मोबाइल लैपटॉप से
कुछ पल
सन्यास चाहिए।
मन की जमीं के सूखे ,पर तो
ध्यान ही नहीं।
कब बन गए उसर
हमें ये भान ही नहीं।
कोई फूल ,इस पर
खिलने को
प्रयास चाहिए ।
अपनों की
देखभाल का
एहसास चाहिए ।
अब बहुत मन भर गया
बड़प्पन और मान से।
है बहुत तृप्त अहम
झूठी आन बान शान से।
इसको भी एक दिन का
उपवास चाहिए ।
बन जाऊं
तितली या परिंदा कोई
वो आभास चाहिए ।
मन की थकान
जो उतार दे
वो अवकाश चाहिए..
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