जनकजी ने भरी सभा में यह प्रण किया कि जो भी इस धनुष को तोडेगा, जानकीजी बिना किसी विचार के उसका वरण कर लेंगी। शिवजी का धनुष राहु की तरह भारी और कठोर था। सुमेरु पर्वत उठाने वाला बाणासुर भी हृदय में हारकर उसकी परिक्रमा करके चला गया और कैलास पर्वत को उठाने वाला रावण भी उस सभा में पराजय को प्राप्त हुआ। धनुष को उठाना तो दूर रहा, रावण और बाणासुर इसकी कोशिश करने की भी हिम्मत नहीं कर पाए।