ताड़का राक्षसी और उसके पुत्र ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के यज्ञों में निरंतर बाधा डालते थे। विश्वामित्रजी ने रामचंद्रजी को आदेश दिया कि वे ताड़का को मार डालें। रामचंद्रजी हिचक रहे थे, क्योंकि वह स्त्री थी, इसलिए शुरुआत में उन्होंने उसके दोनों हाथ काट डाले, ताकि उसे सबक़ मिल जाए और वह भविष्य में यज्ञ में बाधा न डाले। लेकिन आसुरी शक्तियों के बल पर ताड़का अदृश्य होकर हमला करने लगी। जब ताड़का नहीं मानी, तो विश्वामित्र ने रामचंद्रजी से कहा कि राजकुमार या राजा को स्त्री-पुरुष में भेद नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भेदभाव के बिना अपने कर्तव्य का पालन करें और बिना किसी संकोच के ताड़का का वध कर दें। ताड़का में हज़ार हाथियों का बल था, क्योंकि उसके पिता सुकेतु ने संतान प्राप्ति के लिए ब्रह्माजी की तपस्या की थी और ताड़का के बली होने का वर माँगा था। ताड़का वध के बारे में पता चलते ही मारीच और सुबाहु नाम के राक्षस सेना लेकर आ गए। लक्ष्मणजी ने राक्षस सेना का संहार किया, जबकि रामचंद्रजी ने मारीच और सुबाहु से युद्ध किया। रामचंद्रजी ने सुबाहु को मार डाला और मारीच को ऐसा बाण मारा, जिससे वह सौ योजन (लगभग 800 मील) दूर समुद्र के पार जा गिरा। इस तरह रामचंद्रर्ज और लक्ष्मणजी ने मिलकर राक्षसों का संहार किया तथा ब्राह्मणों को निर्भय कर दिया।