शिक्षक की स्थिति
मंदिर के घंटे के समान है,
जिसे अधिकारी से लेकर नेता
सब
बजाने की सोचते हैं।
अफ़सोस तो तब होता है
जब बाकी विभागों के
निकम्मे कर्मचारी भी
असहाय
परन्तु
इस कर्मशील वर्ग को कोसते हैं।।
शैक्षिक, ग़ैरशैक्षिक,
विभागीय, ग़ैर
विभागीय
सब काम शिक्षक करता है।
कोरोना जैसी संक्रामक
बीमारी में भी बेबस,लाचार
शिक्षक वर्ग ही मरता है।।
क्योंकि लगता है शिक्षक
कुछ
नेताओं व अधिकारियों की
आँखों
की किरकिरी है।
जब ही तो ऐसी घातक
संक्रामक बीमारी में भी,
इन तथाकथित बुद्धिमानों की
मति
फिरी है।।
इसीलिए कोरोना जैसी
संक्रामक बीमारी के सर्वे में भी
केवल शिक्षकों को लगाया जा रहा है,
कोई अधिकारी शौचालय गिनवा रहा है,
तो कोई किचन गार्डन तैयार करवा रहा है।।
अधिकांश अधिकारियों को
बच्चों
की छुट्टियों के साथ,
शिक्षकों की छुट्टी नहीं भा रही है,
इसीलिए तुगलकी आदेशों की
बहार आ रही है।।
हर कोई जिलाधिकारी
इस विषम परिस्थिति में भी
शिक्षक के विरुद्ध खड़ा है,
लगता है उनका पद
भारत के प्रधानमंत्री
से भी बड़ा है।।
जो भारत के नागरिकों को
इस घातक बीमारी से बचने के लिए,
घर से बाहर नहीं निकलने की
चेतावनी दे रहा है।
इधर अधिकारियों का कुनबा
शिक्षक को इन संक्रामक पीड़ितों
के सर्वे की कह रहा है।।
हर सर्वे,हर
चुनाव,हर गणना,
हर सरकारी योजना का तारणहार
शिक्षक को आज इस महामारी में
धकेलने में अधिकारी क्यों आमादा है?
क्या शिक्षकों को मरवाकर
कम
करने का इरादा है।।
जो हर कदम पर
सरकार का साथ देता है,
हर सरकारी योजना को
परवान चढ़ाता है,
जिसका आज की परिस्थिति में विद्यालय में कोई
रोल नहीं,
क्या उसके जीवन का कोई मोल नहीं।।
क्यों उसको बिन काम
विद्यालय बुलाया जा रहा है,
क्यों उसको इस विषम परिस्थिति में
अन्य कामों में उलझाया जा रहा है।।
उसको भी इस विषम परिस्थिति में,
बेवजह के कामों में मत अटकाओ,
उसकी जान जोखिम में मत डलवाओ,
राष्ट्रीय आपदा की स्थिति में,
आप भी मानवीय दृष्टिकोण अपनाओ,
कुछ दिन उसको भी
अपने परिवार के साथ रहने दो,
किसी को उससे बेवजह के कामों
की मत
कहने दो।।
क्योंकि अब विद्यालयों में
न बच्चे हैं और न परीक्षा,
उससे अब किसको
दिलवाओगे शिक्षा,
क्यों उसकी जान को
जोखिम में डाल रहे हो,
क्यों उसको सर्वे के काम
में घाल रहे हो।।
बीमारी की भयानकता को पहचानो,
बेबस और लाचार की
इस गंभीर बात को मानो,
भारत सरकार के आदेशों की
उसे पालना करने दो,
उसे जोखिमपूर्ण काम मे
उलझाकर मत मरने दो।।