(विश्व के प्रथम कोरोना
योद्धा शिक्षक साथी श्री दिनेश जी वैष्णव को समर्पित है यह रचना जिन्होंने जीते जी
कोरोना वैक्सीन परीक्षण हेतु राजस्थान सरकार को अपना शरीर दान देने की घोषणा की
है।नमन है आधुनिक काल के इस दधीचि को ?
बिरदी-गीता
के प्रिय सुत हो,
है
नेहा से प्राणेश का नाता,
यशस्वी
के पिता हो तुम,
रेखा,लीला
के हो भ्राता।।
अमित जैसा अग्रज तुम्हारा,
सीमा जैसी है भौजाई,
जन्मस्थल है धन्य केकड़ी,
जिसने ऐसी विभूति पाई।।
वैष्णव
कुल की शान हो तुम,
तुम
नवाचार के राही हो,
शिक्षा
सुधार के अमिट नाम,
नहीं
मिट सके जो वो स्याही हो।।
स्टेट मोटिवेटर रहा सदा तू,
नवोदय क्रांति परिवार से रहा तेरा नाता,
शिक्षक समाज की शान है तू,
बच्चों का है तू भाग्य विधाता।।
तू
अनमोल रतन शिक्षा कुल का,
तेरा
त्याग, समर्पण
अनुपम है,
तू रहा
समर्पित विद्यालय हित,
है
महापुरुष तू,नहीं कम है।।
शिक्षा में किया नवाचार बहुत,
विद्यालय की पलटी काया,
लोभ,लालच
से कोसों दूर रहा,
छू नहीं पायी तुझे मोह,माया।।
परशुराम
प्राकट्य दिवस पूर्व,
कर
लिया ये संकल्पित मन,
कोरोना
वैक्सीन परीक्षण हेतु,
चाहो
ले लो मेरा ये तन।।
कोरोना से निज रक्षा
खातिर,
जब घर घर में छुपे हुए
हैं सब,
परीक्षण हेतु स्व तन
समर्पित,
करने निकला एक दधीचि तब।।
भारत
है तेरे घट घट में,
इस
हेतु समर्पित कर दिया तन,
कहा
कोरोना महामारी हेतु,
करो इसी पर वैक्सीन परीक्षण।।
कोरोना वैक्सीन जाँच हेतु,
निज शरीर को दे रहा दान,
पुनः धरा पर हुआ अवतरित,
ऋषि दधीचि सम "दिनेश" महान।।
गृहस्थी
में रहकर संत बना,
जिसने
सुख वैभव का किया दमन,
धन्य
है तू कोरोना वीर,
इस युग
के दधीचि तुझे नमन।।