भेरुजी और
जोगनियाँ
देवनारायण के
मामा ने उनको कह रखा था कि जंगल में सिंध बड़ की तरफ कभी मत जाना वहां चैसठ
जोगणियां और बावन भैरु रहते है, तुम्हे खा जायेगें। एक
दिन देवनारायण जंगल में बकरियां चराने जाते हैं अपने साथियों को तो बहाना बना कर
गांव वापस भेज देते हैं और खुद बकरियों को लेकर सिंध बड़ की ओर चले जाते हैं। सिंध
बड़ पहुंचकर सभी जोगणियों को और बावन भैरु को पेड़ पर से उतार कर कहते हैं कि मैं
यहां सो रहा हूं, तुम सब मेरी बकरियों को
चराओ। मेरे जागने पर एक भी बकरी कम पड़ी तो मैं तुम्हारी आंतों में से निकाल लूंगा
और देवनारायण कम्बल ओढ कर वहीं सिंध बड़ के नीचे सो जाते हैं। दो पहर सोने के बाद
उठते हैं और सब को आवाज देकर बुलाते हैं। जोगणियां और भैरु नारायण के पांव पड़ जाते
हैं और कहते है भगवान आज तो हम भूखे मर गये। नारायण पूछते हैं कि तुम यहां क्या
खाते हो, अपना पेट कैसे भरते हो ? भैरु कहते है कि उड़ते हुए पकिंरदों को पकड़ कर खाते हैं। आज
तो पूरा दिन आपकी बकरियां चराने में रह गये। नारायण कहते है मेरी एक बकरी को छोड़कर
तुम सब बकरियों को खाजाओं। देवनारायण अपनी बकरी को गोद में उठाकर वापस आ जाते हैं।
मामा पूछते है की नारायण बाकि सब बकरियां कहां है। नारायण कहते हैं मैं रास्ता भूल
गया और सिंध बड़ पहुंच गया। वहां देखता हूं की बड़ के पेड़ से काले-काले भूत निकलकर
सारी बकरियों को खा गऐ, मैं अपनी बकरी को लेकर
भाग के आ गया। मामा कहते हैं तू वहां से जीवित वापस कैसे आ गया, तेरे को किसी भूत ने नहीं पकड़ा ? मामाजी सोचते हैं ये जरुर कोई अवतार है। वह सा माता से
देवनारायण के बारे में पूछते हैं। सा माता उन्हें सब सच बताती है। मामाजी
देवनारायण के लिए चन्दन का आसन बनवाते हैं और दूधिया नीम के नीचे देवनारायण को
बिठाकर उनकी पूजा करते हैं। गांव के सभी लोग उनके दर्शनों को आते हैं और देवनारायण
लूले-लगड़े, कोढ़ी मनुष्यों को ठीक कर
उनका कोढ़ झाड़ देते हैं। इस प्रकार से देवनारायण अपने मामा के यहां मालवा में बड़े
होते हैं।
इधर छोछू भाट को
भगवान देवनारायण की याद आती है कि अब भगवान नारायण ११ बरस के हो गये होगें। उन्हें
मालवा जाकर बताना चाहिये कि उन्हें अपने बाप और काका का बैर लेना है। छोछू भाट
अपनी माताजी डालू बाई को अपने साथ लेकर मालवा चल पड़ता हैं। ४-५ दिनों तक चलकर
मालवा पहुंचते हैं। वहां जंगल में नारायण की गायें चर रही होती हैं, छोछू भाट उन्हें देखकर पहचान जाता है कि ये गायां तो
बगड़ावतों की हैं। वह ग्वालों से पूछता है कि ये गायां किसकी है। ग्वाल कहते हैं की
नारायण की गायें हैं। और वहां नापा ग्वाल आ जाता है। वो छोछू भाट को देखकर पहचान
जाता हैं। दोनों गले मिलते हैं और छोछू भाट नारायण पास ले चलने के लिये कहता हैं।
नापा मना कर देता हैं कि तेरे को मैं नहीं ले जा क्योंकि मुझे सा माता ने मना किया
है और कहा है कि छोछू भाट को मालवा में नहीं आने देना। क्योंकि भाट नारायण को
बगड़ावतों के युद्ध की सारी बात बता देगा और उन्हें लड़ाई करने के लिये वापस गोठां
ले जायेगा। जैसे बगड़ावत मारे गये वैसे ही वो नारायण को नहीं खोना चाहती हैं। छोछू
भाट ये बात सुनकर नापाजी से कहता है कि मैं मेवाड़ की धरा से नारायण के दर्शनों के
लिये यहां चलकर आया हूं और यदि नारायण के दर्शन नहीं होगें तो मैं और मेरी मां
यहीं जान दे देगें। यह सुनकर नापा छोछू भाट को मालवा में नारायण के घर लेकर आ जाता
हैं। सा माता भाट को देखकर कहती है कि भाटजी आ गए अब वापस कब जाओगे। भाट कहता है
कि भगवान नारायण से मिलकर, दो-चार दिन यहीं रहेगें।
साडू माता भाट के
लिये भोजन तैयार करती हैं। जब सा माता भाट को खाना परोसती है। भाट कहता है माताजी
मुझे तो थाली में खाना नहीं खाना। जिस दिन से मेरे धणी मालिक (बगड़ावत) मारे गये
उसी दिन से सोगन्ध उठा रखी है कि नारायण जब तक राण के रावजी को नहीं मारेंगे तब तक
पातल (पत्तो की बनी थाली) में ही भोजन कर्रूंगा। साडू माता सोचती है कि कहीं भाट
नारायण को बगड़ावतों का सारा किस्सा ना सुना दे। इसलिए वह भाट को सिंध बड़ भेजकर
मारने की योजना बनाती है और कहती है कि भाटजी ऐसा करो रास्ते में नदी के किनारे एक
बड़ का पेड़ है, वहीं नहा धोकर निपट कर
आते समय सिंध बड़ के पत्ते तोड़ लाना और उसी में भोजन करना। मैं आपके वास्ते अच्छा
भोजन तैयार करवाती हूं। भाटजी अपना लोटा साथ लेकर सिंध बड़ की और चल पड़ते हैं। सिंध
बड़ के नीचे आकर नदी के घाट पर स्नान ध्यान कर जैसे ही छोछू भाट बड़ के पत्ते तोड़ने
का प्रयास करते है सिंध बड़ से ६४ जोगणियां और ५२ भैरु उतर भाट को पकड़ कर उसके
टुकड़े-टुकड़े कर सभी आपस में बांट-चूंट कर खा जाते हैं। जब देवनारायण अपनी गायें
चराकर घर वापस लौटते हैं तब उन्हें छोछू भाट के आने का पता चलता है और यह भी पता
चलता है कि भाटजी सिंध बड़ के रास्ते गये हैं तो वो अपने नीलागर घोड़े पर सवार होकर
सीधे सिंध बड़ पहुंचते हैं। वहां उन्हें भाट कहीं दिखाई नहीं देते लेकिन उनके कपड़े
और लोटा पड़ा होता है। तब देवनारायण समझ जाते हैं कि भाटजी को तो जोगणियां और भैरु
खा गये हैं। देवनारायण अपने काले भैरु को बुलाते और सिंध बड़ को हिलाने का आदेश
देते हैं। काला भैरु बड़ के पेड़ को पकड़ कर जोर से हिलाता है। ६४ जोगणियां और ५२
भैरु नीचे आकर गिरते और कहते हैं कि भाटजी को तो हम खा गये। नारायण कहते हैं कि
भाटजी को अभी उगलो नहीं तो मैं तुम सब को अभी खत्म करता हूं। देवनारायण के डर से
सभी जोगणियां और भैरु उगल कर एक-एक टुकड़े को जोड़ कर भाटजी को पूरा करते हैं।
देवनारायण अपनी माया से भाट में प्राण डालते हैं। भाट वापस जिन्दा हो जाता है।
देवनारायण भाट को साथ लेकर वापस लौटते हैं तो सभी जोगणियां और भैरु नारायण से
विनती करते हैं कि भगवान हमारे को इस गति से आजाद कर हमारा उद्धार करो। देवनारायण
सभी ६४ जोगणियां और ५२ भैरु को अपने बांये पांव में समा लेते हैं और इसके बाद भैरु
और जोगणियां सदा देवनारायण की सेवा में रहते हैं। देवनारायण भाट को साथ लेकर आते
हैं और रास्ते में भाट नारायण को सारी घटनाऐं बताते हैं कि किस तरह से बगड़ावत मारे
गये। उनके पास जो खजाना था, वो कौन-कौन लूट कर ले गये
हैं। और उनके भाईयों के बारे में भी बताते हैं। और उन्हें जोश दिलाते हैं कि आपको
अपने परिवार का बैर लेना चाहिये। अगले दिन ही मालवा छोड़कर गोठां चलने की विनती
करते हैं। नारायण सारी बातें सुनने के बाद भाटजी से कहते हैं कि अभी तो घर चलते
हैं और माता साडू से बात करेगें। भाटजी अपने साथ में बड़ के पेंड़ से तोड़े पत्ते
लेकर सा माता के यहां आते हैं और पत्तो से पत्तल बनाते हैं। नारायण कहते हैं कि
भाटजी दःो पत्तल बनाओ, मैं भी आपके साथ पत्तल
में ही भोजन कर्रूंगा।
गुर्जर इतिहास/मारवाड़ी मसाला के लिए ब्लॉग पढे :-https://gurjarithas.blogspot.com
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