देवनारायण एवं
पीपलादे का विवाह
नाग कन्या और
दैत्य कन्या से विवाह करने के बाद भगवान देवनारायण गढ़ गाजणा से धार के किवाड़ गज
दन्त और नीम दन्त के सिर पर लदवाकर धार नगरी में भेज देते हैं। धार नगरी के बाहर
दोनों राक्षस दरवाजे वापस लगा देते हैं। सुबह धार नगरी की प्रजा जागती हैं और
देखती है कि नगरी के किवाड़ वापस आ गये हैं। ये समाचार राजा जय सिंह को मिलता है।
राजा देखने आते हैं और उन्हें पूरा विश्वास हो जाता है कि देवनारायण जरुर कोई
अवतारी पुरुष है। इसके साथ अपनी कन्या का विवाह कर देना चाहिये। राजा जय सिंह जी ४
पण्डितों के साथ देवनारायण के लिए लग्न-नारियल (सोने का) भिजवाते हैं। चारों
पण्डित जी नारियल लेकर छोछू भाट के पास आते हैं। छोछू भाट उन ४ ब्राह्मणों
(पण्डित) को माता साडू के पास लेकर जाता हैं और ब्राह्मण माता साडू को नारियल
स्वीकार करने को कहते हैं। देवनारायण उस वक्त सोये हुए होते हैं। साडू माता उन्हें
उठाकर कहती है कि धार के राजा के यहां से ४ ब्राह्मण आपके लिये राजकुमारी पीपलदे
का लगन लेकर आये हैं। देवनारायण कहते है माताजी पहले कन्या को देख आओ, कैसी है ? बिना देखे मेरा ब्याह
करवा रही हो। माता साडू छोछू भाट को लड़की देखने भेजती है। भाटजी पीपलदे को देखकर
आते हैं। माताजी को बताते हैं कि राजकुमारी जी तो बहुत सुन्दर है, पूरी तरह से नारायण के लायक है। धार के राजाजी के यहां
शहनाईयां बजने लग जाती है, नगाड़े बजते और पीपलदे और
नारायण के डोरा (डोलडा) बांधते हैं। मंगल गीत गाये जाते हैं। देवनारायण और पीपलदे
की शादी हो जाती है। मगर नारायण ३ फेरे ही खाते हैं बाकि के आधे फेरे मंगरोप में
आकर खाते हैं।
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बगड़ावत देवनारायण फड़