प्रेरक प्रसङ्ग
राजा पृथु एक दिन सुबह-सुबह घोड़ों के तबेले में जा पहुँचे।
तभी वहाँ एक साधु भिक्षा मांगने आ पहँचा। सुबह-सुबह साधु को भिक्षा मांगते देख
पृथु क्रोध से भर उठे। उन्होंने साधु की निंदा करते हुये, बिना विचारे
तबेले से घोड़े की लीद उठाई और उसके पात्र में डाल दी। साधु भी शांत स्वभाव का था, सो भिक्षा ले
वहाँ से चला गया और वह लीद कुटिया के बाहर एक कोने में डाल दी।
♦कुछ समय उपरान्त
राजा पृथु शिकार के लिये गये। पृथु ने जब जंगल में देखा कि, एक कुटिया के
बाहर घोड़े की लीद का बड़ा सा ढेर लगा हुआ है। उन्होंने देखा कि, यहाँ तो न कोई
तबेला है और न ही दूर-दूर तक कोई घोड़े दिखाई दे रहे हैं। वह आश्चर्यचकित हो
कुटिया में गये और साधु से बोले, "महाराज ! आप हमें एक बात बताइये, यहाँ कोई घोड़ा भी
नहीं, न ही तबेला है, तो यह इतनी सारी
घोड़े की लीद कहा से आई ?" साधु ने कहा, " राजन् ! यह लीद
मुझे एक राजा ने भिक्षा में दी है। अब समय आने पर यह लीद उसी को खानी पड़ेगी। यह
सुन राजा पृथु को पूरी घटना याद आ गई। वे साधु के पैरों में गिर क्षमा मांगने लगे।
उन्होंने साधु से प्रश्न किया, हमने तो थोड़ी-सी लीद दी थी, पर यह तो बहुत
अधिक हो गई ? साधु ने कहा, "हम किसी को जो भी
देते हैं, वह दिन-प्रतिदिन
प्रफुल्लित होता जाता है और समय आने पर हमारे पास लौटकर आ जाता है, यह उसी का परिणाम
है।"
♦️यह सुनकर पृथु की आँखों
में अश्रु भर आये। वे साधु से विनती कर बोले, "महाराज ! मुझे क्षमा कर
दीजिये। मैं आइन्दा ऐसी गलती कभी नहीं करूँगा। कृपया कोई ऐसा उपाय बता दीजिये, जिससे मैं अपने
दुष्ट कर्मों का प्रायश्चित कर सकूँ।"
राजा की ऐसी दु:खमयी हालत देखकर साधु बोला, "राजन् ! एक उपाय
है। आपको कोई ऐसा कार्य करना है, जो देखने में तो गलत हो, पर वास्तव में
गलत न हो। जब लोग आपको गलत देखेंगे, तो आपकी निंदा करेंगे। जितने ज्यादा लोग आपकी
निंदा करेंगे, आपका पाप उतना
हल्का होता जायेगा। आपका अपराध निंदा करने वालों के हिस्से में आ जायेगा।
♦️यह सुनकर राजा पृथु ने
महल में आकर काफी सोच-विचार किया और अगले दिन सुबह से शराब की बोतल लेकर चौराहे पर
बैठ गये। सुबह-सुबह राजा को इस हाल में देखकर सब लोग आपस में राजा की निंदा करने
लगे कि, कैसा राजा है ? कितना निंदनीय
कृत्य कर रहा है, क्या यह शोभनीय
है ? आदि-आदि ! निंदा
की परवाह किये बिना राजा पूरे दिन शराबियों की तरह अभिनय करते रहे। इस पूरे कृत्य के पश्चात जब राजा पृथु पुनः
साधु के पास पहुँचे,
तो लीद के ढेर के स्थान पर एक मुट्ठी लीद देख आश्चर्य से
बोले, "महाराज ! यह कैसे
हुआ ? इतना बड़ा ढेर
कहाँ गायब हो गया ?"
♦️साधू ने कहा, "यह आपकी अनुचित
निंदा के कारण हुआ है राजन् ! जिन-जिन लोगों ने आपकी अनुचित निंदा की है, आपका पाप उन
सबमें बराबर-बराबर बंट गया है। जब हम किसी
की बेवजह निंदा करते हैं, तो हमें उसके पाप का बोझ भी उठाना पड़ता है। तथा हमें अपने
किये गये कर्मों का फल तो भुगतना ही पड़ता है। अब चाहे हँसकर भुगतें या रोकर। हम
जैसा देंगे, वैसा ही लौटकर
वापिस आयेगा।
♦️"दूसरे की निंदा करिये और अपना घड़ा
भरिये।" हम जाने-अनजाने अपने आस-पास के व्यक्तियों की निंदा करते रहते हैं।
जबकि हमें उनकी वास्तविक परिस्थितियों का तनिक भी ज्ञान नहीं होता। निंदा-रस का
स्वाद बहुत ही रुचिकर होता है। इसलिये लगभग हर व्यक्ति इसका स्वाद लेने को आतुर
रहता है l
वास्तव में निंदा एक ऐसा
मानवीय गुण है, जो सभी व्यक्तियों में कुछ-न-कुछ मात्रा में अवश्य पाया
जाता है। यदि हमें ज्ञान हो जाये कि, पर-निंदा का परिणाम कितना भयानक होता है, तो हम इस पाप से
आसानी से बच सकते हैं।