google.com, pub-9828067445459277, DIRECT, f08c47fec0942fa0 खरी-खरी बात !

खरी-खरी बात !


         

'मारवाड़ी' लोगां की देखो, हालत हो रही माड़ी।
अस्त व्यस्त व्यपार हुयो, पटरी सूं उतरी गाड़ी।।
पटरी सूं उतरी गाड़ी, नही काबू मे आवे।
कमाई तो कमती हुगी, खरचो रोज बढ़ावे।।

कई साल पहला तक सगळा, आछी करी कमाई।
मारकेट मे रहता और, बासे री रोटियां खाई।।
बासे री रोटियां खाई पण, चोखी मौज मनाता।
साल में दो बार गाँव री, मुसाफ़री कर आता।।

जके दिन से गाँव सु, फैमेली अठे लाया।
उण दिन सु ही खुद रे हाथा, खुद रा पाँव कटाया।।
खुद रा पाँव कटाया, मति गई थी मारी।
लुगायाँ ने कोलकाता रो, चस्को लाग्यो भारी।।

बैंका सूं लेकर के लोन, अठे फ्लैट मोलाया।
कोई लिया 'बेंगलोर' मे तो, कोई  'कोलकाता' आया।।
कोई 'बम्बोई' आया बां की, किस्ता भरणी भारी।
ई मन्दी के मायने तो, अकड़ निकल गई सारी।।

अणुता पैसा वाला रे, कमी नही है भाई।
प्रॉपर्टी है घर की बे, भाड़ा सूं करे कमाई।।
भाड़ा सूं करे कमाई, बां के फरक नही पड़ेला।
ओछी पूंजी वाळा ही, ई मन्दी में झडेला।।

घर दुकान दोनु भाड़े रा, वे सगळा सूं दोरा।
धंधो बिलकुल ठप पड्यो है, कियां होवे सोरा।।
कियां होवे सोरा या ही, चिंता फिकर लागी।
पाछा गांव जाणे री भी, अब तो मन में आगी।।

गांव चालण रो केवे जद, लुगायाँ आँख दिखावे।
करे रूप विकराल और फिर, रणचण्डी बण जावे।।
कहे कवि तो उड़ने लाग्या होश।
आप गमाया कामणा, अब कुण ने देवा दोस ।।
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