कक्षा -11 हिन्दी अनिवार्य
घर की याद – भवानीप्रसाद मिश्र पार्ट-2
जीवन परिचय-
- v भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म 1913 ई. में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के टिगरिया गाँव में हुआ।
- v इनका हिंदी, अंग्रेजी व संस्कृत भाषाओं पर अधिकार था।
- v फिर वे कल्पना पत्रिका, आकाशवाणी व गाँधी जी की कई संस्थाओं से जुड़े रहे।
- v इन्हें साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन का शिखर सम्मान, दिल्ली प्रशासन का गालिब पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- v साहित्य व समाज सेवा के कारण भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री से अलंकृत किया।
- v देहावसान 1985 ई. में हुआ।
रचनाएँ-इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं
सतपुड़ा के जंगल, सन्नाटा, गीतफ़रोश, चकित है दुख, बुनी हुई रस्सी, खुशबू के शिलालेख, अनाम तुम आते हो, इदं न मम् आदि। गीतफ़रोश
इनका पहला काव्य संकलन है। गाँधी पंचशती की कविताओं में कवि ने गाँधी जी को
श्रद्धांजलि अर्पित की है।
काव्यगत विशेषताएँ-सहज लेखन और सहज व्यक्तित्व का नाम है-भवानी
प्रसाद मिश्र। ये कविता,
साहित्य और
राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख कवियों में से एक हैं। गाँधीवाद में इनका अखंड विश्वास
था। इन्होंने गाँधी वाडमय के हिंदी खंडों का संपादन कर कविता और गाँधी जी के बीच
सेतु का काम किया। इनकी कविता हिंदी की सहज लय की कविता है। इस सहजता का संबंध
गाँधी के चरखे की लय से भी जुड़ता है, इसलिए उन्हें कविता का गाँधी भी कहा गया है।
कविता का सारांश
इस कविता में घर
के मर्म का उद्घघाटन है। कवि को जेल-प्रवास के दौरान घर से विस्थापन की पीड़ा
सालती है। कवि के स्मृति-संसार में उसके परिजन एक-एक कर शामिल होते चले जाते हैं।
घर की अवधारणा की सार्थक और मार्मिक याद कविता की केंद्रीय संवेदना है। सावन के
बादलों को देखकर कवि को घर की याद आती है। वह घर के सभी सदस्यों को याद करता है।
उसे अपने भाइयों व बहनों की याद आती है। उसकी बहन भी मायके आई होगी। कवि को अपनी
अनपढ़,
पुत्र के दुख से
व्याकुल,
परंतु स्नेहमयी
माँ की याद आती है। वह पत्र भी नहीं लिख सकती।
कवि को अपने
पिता की याद आती है जो बुढ़ापे से दूर हैं। वे दौड़ सकते हैं, खिलखिलाते हैं। वो मौत या शेर से नहीं डरते।
उनकी वाणी में जोश है। आज वे गीता का पाठ करके, दंड लगाकर जब नीचे परिवार के बीच आए होंगे, तो अपने पाँचवें बेटे को न पाकर रो पड़े होंगे। माँ ने उन्हें समझाया होगा।
कवि सावन से निवेदन करता है कि तुम खूब बरसो, किंतु मेरे माता-पिता को मेरे लिए दुखी न होने देना। उन्हें मेरा संदेश देना
कि मैं जेल में खुश हूँ। मुझे खाने-पीने की दिक्कत नहीं है। मैं स्वस्थ हूँ।
उन्हें मेरी सच्चाई मत बताना कि मैं निराश, दुखी व असमंजस में हूँ। हे सावन! तुम मेरा संदेश उन्हें देकर धैर्य बँधाना। इस
प्रकार कवि ने घर की अवधारणा का चित्र प्रस्तुत किया है।
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Q.1. कवि के पिता किसका नाम लेकर रो
पड़े होंगे ?
उत्तर- कवि के पिता ने जब सभी भाई-बहनों को खड़े या खेलते देखा होगा तो
उन्हें पाँचवें पुत्र भवानी की याद आई होगी। वे उसका नाम लेकर रो पड़े होंगे।
Q.2. कवि
ने सोने पर सुहागा किसे बताया है ?
उत्तर- कवि ने ऐसा इसलिए कहा है, क्योंकि जिस प्रकार वन में
रहने वाला मोर आसमान में घिरे बादलों को देख प्रसन्न हो जाता है, उसी प्रकार कवि भी अपने आराध्य को
देखकर प्रसन्न होता है। सोने व सुहागे का आपस में घनिष्ठ
संबंध है।
Q.3. कवि की माँ ने
उनके पिता को किस प्रकार सांत्वना दी ?
उत्तर- कवि की माँ ने पिताजी को यह कहकर
समझाया होगा कि भवानी ने तुम्हारे मन की बात
को समझा और अपनेपन का अनुभव करके ही वह भारत छोड़ो आदोलन में भाग लेकर जेल गया है
अर्थात् मन से तुम भी ऐसा चाहते थे। उसने बिल्कुल ठीक काम किया है।
Q.4. कवि सजीले सावन से क्या प्रार्थना करता है ?
उत्तर- कवि सजीले सावन को अपना संदेशवाहक
बनाता है और उससे प्रार्थना करता है कि वह चाहे कितना
भी बरस ले किन्तु उसके पिता के मर्म को दुखी न करे। वह पिता को जाकर बताए कि भवानी
जेल में मस्त है।
Q.5. कारागृह में कवि का
वजन कितना और कैसे हुआ है ?
उत्तर- मेरा वजन सत्तर सेर
है। मैं ढेर सारा भोजन करता हूँ, खेलता-कूदता हूँ तथा दुख को अपने नजदीक आने नहीं देता। मैं यहाँ मस्त रहता हूँ,