google.com, pub-9828067445459277, DIRECT, f08c47fec0942fa0 SMILE 3.0 HOMEWORK SOLUSTION DATE 20 SEP.2021 कक्षा-11 विषय- हिन्दी अनिवार्य पाठ निर्मला पुतुल (आओ, मिलकर बचाएँ)

SMILE 3.0 HOMEWORK SOLUSTION DATE 20 SEP.2021 कक्षा-11 विषय- हिन्दी अनिवार्य पाठ निर्मला पुतुल (आओ, मिलकर बचाएँ)

SMILE 3.0 HOMEWORK SOLUSTION DATE 20 SEP.2021

कक्षा-11  विषय- हिन्दी अनिवार्य

                         पाठ निर्मला पुतुल (आओ, मिलकर बचाएँ)

जीवन परिचय- 

  • निर्मला पुतुल का जन्म सन् 1972 में झारखंड राज्य के दुमका क्षेत्र में एक आदिवासी परिवार में हुआ।
  • इनका प्रारंभिक जीवन बहुत संघर्षमय रहा।
  • इनके पिता व चाचा शिक्षक थे, घर में शिक्षा का माहौल था।
  • इसके बावजूद रोटी की समस्या से जूझने के कारण नियमित अध्ययन बाधित होता रहा।
  • इन्होंने सोचा कि नर्स बनने पर आर्थिक कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी।
  • इन्होंने नर्सिग में डिप्लोमा किया तथा काफी समय बाद इग्नू से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
  • इनका संथाली समाज और उसके रागबोध से गहरा जुड़ाव पहले से था, नर्सिग की शिक्षा के समय बाहर की दुनिया से भी परिचय हुआ।
  •  दोनों समाजों की क्रिया-प्रतिक्रिया से वह बोध विकसित हुआ जिससे वह अपने परिवेश की वास्तविक स्थिति को समझने में सफल हो सकीं।

रचनाएँ- नगाड़े की तरह बजते शब्द, अपने घर की तलाश में।

साहित्यिक विशेषताएँ-

कवयित्री ने आदिवासी समाज की विसंगतियों को तल्लीनता से उकेरा है। इनकी कविताओं का केंद्र बिंदु वे स्थितियाँ हैं, जिनमें कड़ी मेहनत के बावजूद खराब दशा, कुरीतियों के कारण बिगड़ती पीढ़ी, थोड़े लाभ के लिए बड़े समझौते, पुरुष वर्चस्व, स्वार्थ के लिए पर्यावरण की हानि, शिक्षित समाज का दिक्कुओं और व्यवसायियों के हाथों की कठपुतली बनना आदि है। वे आदिवासी जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं से, कलात्मकता के साथ हमारा परिचय कराती हैं और संथाली समाज के सकारात्मक व नकारात्मक दोनों पहलुओं को बेबाकी से सामने रखती हैं। संथाली समाज में जहाँ एक ओर सादगी, भोलापन, प्रकृति से जुड़ाव और कठोर परिश्रम करने की क्षमता जैसे सकारात्मक तत्व हैं, वहीं दूसरी ओर उसमें अशिक्षा और शराब की ओर बढ़ता झुकाव जैसी कुरीतियाँ भी हैं।

 

                                                 कविता का सारांश

 

इस कविता में दोनों पक्षों का यथार्थ चित्रण हुआ है। बृहतर संदर्भ में यह कविता समाज में उन चीजों को बचाने की बात करती है जिनका होना स्वस्थ सामाजिक-प्राकृतिक परिवेश के लिए जरूरी है। प्रकृति के विनाश और विस्थापन के कारण आज आदिवासी समाज संकट में है, जो कविता का मूल स्वरूप है। कवयित्री को लगता है कि हम अपनी पारंपरिक भाषा, भावुकता, भोलेपन, ग्रामीण संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। प्राकृतिक नदियाँ, पहाड़, मैदान, मिट्टी, फसल, हवाएँ-ये सब आधुनिकता के शिकार हो रहे हैं। आज के परिवेश, में विकार बढ़ रहे हैं, जिन्हें हमें मिटाना है। हमें प्राचीन संस्कारों और प्राकृतिक उपादानों को बचाना है। कवयित्री कहती है कि निराश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अभी भी बचाने के लिए बहुत कुछ शेष है।

SMILE 3.0 HOME WORK SOLUSTION  दिनांक 20 SEP 2021

Q.1 निर्मला पुतुल का जन्म कब और कहाँ हुआ ?

उत्तर. निर्मला पुतुल का जन्म सन् 1972 में झारखंड राज्य के दुमका क्षेत्र में एक आदिवासी परिवार में हुआ।

Q.2 कवयित्री मूलतः किस पेशे से समन्धित  है ?

उत्तर. बहुचर्चित संथाली लेखिका, कवयित्री और सोशल एक्टिविस्स्ट

Q.3 “बस्तिया नंगी होने “ से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर. बस्तियों को शहरी जिंदगी के प्रभाव से अमर्यादित होने से बचाएँ। शहरी सभ्यता ने हमारी बस्तियों का पर्यावरणीय व मानवीय शोषण किया है। हमें अपनी बस्ती को शोषण से बचाना है नहीं तो पूरी बस्ती हड्डयों के ढेर में दब जाएगी।

Q.4 “झारखंडी” से कवियत्री का क्या तात्पर्य है ?

उत्तर.  इसका अभिप्राय है-झारखंड की भाषा की स्वाभाविक बोली, उनका विशिष्ट उच्चारण। कवयित्री चाहती है कि संथाली लोग अपनी भाषा की स्वाभाविक विशेषताओं को नष्ट न करें।

Q.5 निर्मला पुतुल की रचनाएँ बताइए ?

उत्तर . नगाड़े की तरह बजते शब्द, अपने घर की तलाश में।

 

 

 

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