SMILE 3.0 गृहकार्य
दिनांक 20 सितम्बर 2021
कक्षा-12 विषय-
हिन्दी अनिवार्य
पाठ – ‘बादल राग’ सूर्यकांत
त्रिपाठी ‘निराला’
कवि परिचय
जीवन परिचय-
- महाप्राण कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म सन 1899 में बंगाल राज्य के महिषादल नामक रियासत के मेदिनीपुर जिले में हुआ था।
- इनके पिता रामसहाय त्रिपाठी मूलत: उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ाकोला नामक गाँव के निवासी थे।
- जब निराला तीन वर्ष के थे, तब इनकी माता का देहांत हो गया।
- इन्होंने स्कूली शिक्षा अधिक नहीं प्राप्त की, परंतु स्वाध्याय द्वारा इन्होंने अनेक भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया।
- पिता की मृत्यु के बाद ये रियासत की पुलिस में भर्ती हो गए।
- 14 वर्ष की आयु में इनका विवाह मनोहरा देवी से हुआ।
- इन्हें एक पुत्री व एक पुत्र प्राप्त हुआ। 1918 में पत्नी के देहांत का इन पर गहरा प्रभाव पड़ा।
- आर्थिक संकटों, संघर्षों व जीवन की यथार्थ अनुभूतियों ने निराला जी के जीवन की दिशा ही मोड़ दी।
- ये रामकृष्ण मिशन, अद्वैत आश्रम, बैलूर मठ चले गए। वहाँ इन्होंने दर्शन शास्त्र का अध्ययन किया तथा आश्रम के पत्र ‘समन्वय’ का संपादन किया।
- सन 1935 में इनकी पुत्री सरोज का निधन हो गया।
- इसके बाद ये टूट गए तथा इनका शरीर बीमारियों से ग्रस्त हो गया।
- 15 अक्तूबर, 1961 ई० को इस महान साहित्यकार ने प्रयाग में सदा के लिए आँखें मूंद लीं।
रचनाएँ- सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ प्रतिभा-संपन्न व
प्रखर साहित्यकार थे। इन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं पर लेखनी चलाई।
इनकी रचनाएँ हैं-
(i) काव्य- संग्रह-परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, नए पत्ते, बेला, अर्चना, आराधना आदि।
(ii) उपन्यास- अलका, अप्सरा, प्रभावती, निरुपमा, काले कारनामे आदि।
(iii) कहानी- संग्रह-लिली, सखी, चतुरी चमार, अपने घर।
(iv) निबंध- प्रबंध-पद्य, प्रबंध प्रतिभा, चाबुक आदि।
(v) नाटक- समाज, शंकुतला, उषा–अनिरुद्ध।
(vi) अनुवाद- आनंद मठ, कपाल कुंडला, चंद्रशेखर, दुर्गेशनंदिनी, रजनी, देवी चौधरानी।
(vii) रेखाचित्र- कुल्लीभाट, बिल्लेसुर बकरिहा।
(viii) संपादन-‘समन्वय’ पत्र तथा ‘मतवाला’ पत्रिका का संपादन।
काव्यगत
विशेषताएँ-
निराला जी छायावाद के आधार स्तंभ थे। इनके
काव्य में छायावाद, प्रगतिवाद
तथा प्रयोगवादी काव्य की विशेषताएँ मिलती हैं। ये एक ओर कबीर की परंपरा से जुड़े
हैं तो दूसरी ओर समकालीन कवियों की प्रेरणा के स्रोत भी हैं। इनका यह विस्तृत
काव्य-संसार अपने भीतर संघर्ष और जीवन, क्रांति
और निर्माण, ओज और
माधुर्य, आशा-निराशा
के द्वंद्व को कुछ इस तरह समेटे हुए है कि वह किसी सीमा में बँध नहीं पाता। उनका
यह निर्बध और उदात्त काव्य-व्यक्तित्व कविता और जीवन में फ़र्क नहीं रखता। वे आपस
में घुले-मिले हैं। उनकी कविता उल्लास-शोक, राग-विराग, उत्थान-पतन, अंधकार-प्रकाश
का सजीव कोलाज है।
भाषा-शैली-
निराला जी ने अपने काव्य में तत्सम
शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली का प्रयोग किया है। बँगला भाषा के प्रभाव के कारण इनकी
भाषा में संगीतात्मकता और गेयता का गुण पाया जाता है। प्रगतिवाद की भाषा सरल, सहज
तथा बोधगम्य है। इनकी भाषा में उर्दू, फ़ारसी
और अंग्रेजी के शब्द इस तरह प्रयुक्त हुए हैं मानो हिंदी के ही हों।
कविता का प्रतिपादय एवं सार
प्रतिपाद्य- ‘ बादल राग ‘ कविता ‘अनामिका’ काव्य से ली गई है।
निराला को वर्षा ऋतु अधिक आकृष्ट करती है, क्योंकि बादल के
भीतर सृजन और ध्वंस की ताकत एक साथ समाहित है। बादल किसान के लिए उल्लास और
निर्माण का अग्रदूत है तो मजदूर के संदर्भ में क्रांति और बदलाव। ‘बादल राग’ निराला जी की
प्रसिद्ध कविता है। वे बादलों को क्रांतिदूत मानते हैं। बादल शोषित वर्ग के हितैषी
हैं, जिन्हें देखकर
पूँजीपति वर्ग भयभीत होता है। बादलों की क्रांति का लाभ दबे-कुचले लोगों को मिलता
है, इसलिए किसान और
उसके खेतों में बड़े-छोटे पौधे बादलों को हाथ हिला-हिलाकर बुलाते हैं। वास्तव में
समाज में क्रांति की आवश्यकता है, जिससे आर्थिक
विषमता मिटे। कवि ने बादलों को क्रांति का प्रतीक माना है।
सार- कवि बादलों को
देखकर कल्पना करता है कि बादल हवारूपी समुद्र में तैरते हुए क्षणिक सुखों पर दुख
की छाया हैं जो संसार या धरती की जलती हुई छाती पर मानी छाया करके उसे शांति
प्रदान करने के लिए आए हैं। बाढ़ की विनाश-लीला रूपी युद्ध-भूमि में वे नौका के
समान लगते हैं। बादल की गर्जना को सुनकर धरती के अंदर सोए हुए बीज या अंकुर नए
जीवन की आशा से अपना सिर ऊँचा उठाकर देखने लगते हैं। उनमें भी धरती से बाहर आने की
आशा जागती है। बादलों की भयंकर गर्जना से संसार हृदय थाम लेता है। आकाश में तैरते
बादल ऐसे लगते हैं मानो वज्रपात से सैकड़ों वीर धराशायी हो गए हों और उनके शरीर
क्षत-विक्षत हैं।
कवि कहता है कि छोटे व हलके पौधे हिल-डुलकर हाथ
हिलाते हुए बादलों को बुलाते प्रतीत होते हैं। कवि बादलों को क्रांति-दूत की
संज्ञा देता है। बादलों का गर्जन किसानों व मजदूरों को नवनिर्माण की प्रेरणा देता
है। क्रांति से सदा आम आदमी को ही फ़ायदा होता है। बादल आतंक के भवन जैसे हैं जो
कीचड़ पर कहर बरसाते हैं। बुराईरूपी कीचड़ के सफ़ाए के लिए बादल प्रलयकारी होते
हैं। छोटे-से तालाब में उगने वाले कमल सदैव उसके पानी को स्वच्छ व निर्मल बनाते
हैं। आम व्यक्ति हर स्थिति में प्रसन्न व सुखी रहते हैं। अमीर अत्यधिक संपत्ति
इकट्ठी करके भी असंतुष्ट रहते हैं और अपनी प्रियतमाओं से लिपटने के बावजूद क्रांति
की आशंका से काँपते हैं। कवि कहता है कि कमजोर शरीर वाले कृषक बादलों को अधीर होकर
बुलाते हैं क्योंकि पूँजीपति वर्ग ने उनका अत्यधिक शोषण किया है। वे सिर्फ़ जिदा
हैं। बादल ही क्रांति करके शोषण को समाप्त कर सकता है।
SMILE 3.0 गृहकार्य
दिनांक 20 सितम्बर 2021
प्रश्न -1. अस्थिर सुख पर दुख की छाया- पंक्ति में दुःख की छाया किसे कहा गया है और क्यों ?
उत्तर - कवि ने
‘दुख की
छाया’ मानव-जीवन
में आने वाले दुखों, कष्टों
को कहा है। कवि का मानना है कि संसार में सुख कभी स्थायी नहीं होता। उसके साथ-साथ
दुख का प्रभाव रहता है। धनी शोषण करके अकूत संपत्ति जमा करता है परंतु उसे सदैव
क्रांति की आशंका रहती है। वह सब कुछ छिनने के डर से भयभीत रहता है।
प्रश्न -2 अशनि-पात से शापित उन्नत
शत-शत वीर, पंक्ति में किसकी और संकेत किया गया है ?
उत्तर - इस
पंक्ति में कवि ने पूँजीपति या शोषक या धनिक वर्ग की ओर संकेत किया है। ‘बिजली
गिरना’ का
तात्पर्य क्रांति से है। क्रांति से जो विशेषाधिकार-प्राप्त वर्ग है, उसकी
प्रभुसत्ता समाप्त हो जाती है और वह उन्नति के शिखर से गिर जाता हैं। उसका गर्व
चूर-चूर हो जाता है।
प्रश्न -3 अट्टालिका नहीं है रे
आंतक–भवन
सदा पंक पर ही होता
जल-विप्लव-प्लवन, व्याख्या करो ?
उत्तर –
प्रसंग- प्रस्तुत
काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में
संकलित कविता ‘बादल
राग’ से
उद्धृत है। इसके रचयिता महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं।
इसमें कवि ने बादल को विप्लव व क्रांति का प्रतीक मानकर उसका आहवान किया है।
व्याख्या-कवि
कहता है कि पूँजीपतियों के ऊँचे-ऊँचे भवन मात्र भवन नहीं हैं अपितु ये गरीबों को
आतंकित करने वाले भवन हैं। ये सदैव गरीबों का शोषण करते हैं। वर्षा से जो बाढ़ आती
है, वह सदा
कीचड़ से भरी धरती को ही डुबोती है। भयंकर जल-प्लावन सदैव कीचड़ पर ही होता है।
विशेष-
(i) कवि ने पूँजीपतियों के विलासी जीवन
पर कटाक्ष किया है।
(ii) प्रतीकात्मक भाषा का प्रयोग है।
(iii) तत्सम
शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है।
(iv) ‘पंक पर’ में अनुप्रास अलंकार है।
(v) मुक्तक छंद है।
प्रश्न -4 विप्लव रव से छोटे ही शोभा पाते ,छोटा शब्द किसका सूचक है ?
उत्तर – विप्लव-रव
से तात्पर्य है-क्रांति-गर्जन। जब-जब क्रांति होती है तब-तब शोषक वर्ग या
सत्ताधारी वर्ग के सिंहासन डोल जाते हैं। उनकी संपत्ति, प्रभुसत्ता
आदि समाप्त हो जाती हैं। कवि ने कहा है कि क्रांति से छोटे ही शोभा पाते हैं। यहाँ
‘छोटे’ से
तात्पर्य है-आम आदमी। आम आदमी ही शोषण का शिकार होता है। उसका छिनता कुछ नहीं है
अपितु उसे कुछ अधिकार मिलते हैं। उसका शोषण समाप्त हो जाता है।
प्रश्न -5 बादल राग कविता के लिए निम्न में से
कोनसा विकल्प सही है –
अ- सामाजिक व आर्थिक विषमता का यथार्थ
चित्रण किया गया है
ब-शब्द बिम्बों का प्रयोग छायावादी शिल्प के अनुसार किया
गया है
स –मुक्त छंद है
द –उपरोक्त सभी
उत्तर - उपरोक्त सभी