श्रीमान तेजाराम जी थाकण Safalta Ki Khani, Motivational Story in Hindi:

श्रीमान तेजाराम जी थाकण Safalta Ki Khani, Motivational Story in Hindi:

मित्रों नमस्कार !

           यह कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की जिन्होंने अपने जीवन में वास्तविक संगर्ष किया और अपने जीवन में लगातार सफलता प्राप्त की और आज एक ऐसे मुकाम पर है जहाँ से अपने ज्ञान से हम सबको लाभान्वित कर रहे है !!

 

श्रीमान तेजाराम जी थाकण

यह कहानी है  श्रीमान तेजाराम जी थाकण की जो वर्तमान में बरवाली में संस्कृत व्याख्याता के पद पर कार्यरत है !  आगे की कहानी स्वयं श्रीमान तेजाराम जी थाकण की लेखनी से .................

आप सब से मुझे इस मंच पर प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष रूप से बहुत कुछ सीखने को मिला। गरीब मजदूर , किसान और दलित की तकलीफ बताते समय कहीं आपकी विचारधारा या आदर्श नेता की भावना पर ठेस पहुंची हो तो क्षमाप्रार्थी हूं।

क्या करें मित्रों ! मानवीय संवेग हैं कभी द्रवित तो कभी उत्साहित भी हो जाते हैं। जिस परिस्थिति से हम आए हैं उस परिस्थिति का पक्ष स्वतः ही आ जाता है।

 

जीवन परिचय: मेरा जन्म आज से 45 वर्ष पूर्व एक गरीब किसान के घर हुआ। हम चार भाई और एक बहिन है। बड़े भाई साहब शिक्षक , उनसे छोटे मजदूर, तीसरे नं मैं शिक्षक और सबसे छोटा कैटर ।

सबका अलग - अलग धंधा और घर है। लेकिन फिर भी मन से एक हैं। मैं व्यापारिक दृष्टिकोण वाला व्यक्ति था । चौमासे की समाप्ति पर गायें ,भैंसें, बकरियाँ और भेड़ों के रेवड़ को चराते-चराते मूंग की फलियाँ बीनकर (चुगकर) मूंग को बाजार में बेच आता और पाटी-बड़ता(स्लेट-पेंसिल)खरीद लाता था,साथ में कुछ छोटी वाली मीठी गोलियाँ भी। एक गोली के रस का आस्वादन 20 मिनट तक करते थे। फिर मैंने बेर बेचने का व्यवसाय किया। सूरज की घड़ी को देखकर जल्दी स्कूल के लिए रवाना हो जाते थे , रास्ते में शहीद मंगेज सिंह जी का खेत "राम आळा" था वहाँ से झाड़ी के बेर थे उन्हें तोड़कर 'असलम' जिनके पापा अकबर जी के कपड़े की दूकान और घाणी थी तथा 'लक्ष्मी नारायण' जिनके किराणा की दूकान थी ,तथा मेरे कक्षा-साथी थे, को बेर बेचकर कोपी,किताब,पेन व कपड़े का थैला लेता था। लेकिन माताजी को जब थैले का पता चला उन्होंने मेरी कड़ी परीक्षा ली। लठ्ठ से मार मार कर एडियाँ सूजा दी जब सच्चाई का पता चला तो माँ रोने लगी लेकिन तब तक मैं काफी सहज हो गया था। माँ को शांत कराया। ईमानदारी और मानवता की भावना माँ ने मुझमें कूट-कूट भर दी थी। उसी वजह से आज मैं शिक्षा विभाग में संस्कृत के व्याख्याता में अपने कर्त्तव्य का निर्वहन कर रहा हूं।

जब मैं छोटा था तो भैंस की पाडी(जोटी) को पानी पिलाने के लिए कुए पर लेकर जा रहा था। जेवड़ा (रस्सी)से मेरे हाथ के सरक पाश लगा ली। मेरा चचेरा भाई जो मेरे से बीस वर्ष बड़ा है को मजाक सूजी और पानी पीती हुई पाडी को चिमका(बिदका) दी। मेरे हाथ की रस्सी की गांठ न तो टूटी न खुली। पाडी मुझे कांटों और पत्थरों में से होकर घसीट रही थी । सामने कंटीली लकड़ियों की बाड़ थी उससे मेरा शरीर छलनी हो गया और चूना निकालने वाले पत्थर गरठ से मेरा सिर फूट गया। फूटे हुए में कांटे घुस गए। मुझे देखकर घर वाले दुःखी हो गए फिर ताऊजी ने एक कपड़ा जलाकर सिर के घाव में ठूंसा।

महीने भर बाद, मैं पूर्णतया ठीक हो गया। कुस्ती और कबड्डी खेलने जैसा। तीन बार और यह सिर फूटा लेकिन रोग प्रतिरोधक क्षमता थी। भेड़ का दूध पीते थे।

जब मैं छठी कक्षा में पढ़ रहा था तो मेरी व्यापारिक आकांक्षा तीक्ष्ण होती गई। हमारे गाँव में रानाबाईजी का मेला प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को भरता है। मैं डेगाना जाकर नारियल ,बताशे और मखाणे लेकर आ गया और प्रसाद की दुकान ठेला लगाने की तैयारी करने लगा लेकिन घर वालों ने मना कर दिया कि सगे- संबंधी हंसेंगे। क्या कहेंगे जब तेरे सास - ससुर भी आएंगे। साहब मेरा बस नहीं चला,मन मसोस कर रह गया।

लेकिन हिम्मत नहीं हारी। केर सांगरी तो बेच ही आता। उसकी मनाही नहीं थी। कमजोर थका हुआ भले ही था लेकिन आवाज बुलंद थी । जब मैं भरी दुपहरी में आवाज लगाता तो सेठ-सेठाणी जी को बाहर आकर झांकना ही पड़ता था। बेच आता सा पूरे केर सांगरी को। कभी तो बेचने के लिए 6किमी दूर बड़ू गाँव में चला जाता था।

आठवीं पास करने के बाद ग्रीष्मावकाश में कालानाडा मकराना में होटल में नौकरी करने के लिए रह गया और भाई साहब को पोस्टकार्ड लिखा। शाम के समय भट्टे पर जाते लकड़ियाँ फाड़ने। यह काम मेरे लिए कठिन था क्योंकि शरीर से छोटा और कमजोर था । लकड़ियाँ फाड़ते-फाड़ते छोटी आँत और बड़ी आँत में सूजन आ गई थी। जिसने करीब दो वर्ष तक पीड़ा दी।

शिक्षा दीक्षा :

नवीं कक्षा में बडू गांव के राजकीय स्कूल में प्रवेश लिया। नवीं कक्षा में था तब आखातीज को शादी हुई, गणित की वार्षिक परीक्षा थी अगले दिन, कुछ करने के बाद परीक्षा कक्ष में नींद आ गई । गणित में 2 अंक का ग्रेस मार्क लगा। फिर दसवीं परीक्षा बिना गणित की किताब खरीदे पास की।

ग्रीष्मावकाश में कमाई की तलाश में जोधपुर चला गया वहाँ पहले तो ग्वार गम की चक्की चलाई। सेठजी जब 1200रु माह के देते तो सुकुन मिलता था। किताब -पास बुकें खरीदी। 12 वीं का स्वयंपाठी के रूप में फाॅर्म भरा। कुछ लालच के चक्कर में और पड़ गया । एक बाड़मेर के मजदूर के साथ लूणी नदी में बजरी की ट्रक भरने चला गया। तगारियाँ वैशाख के महीने में आग उगल रही थी। लेकिन जब पानी पीया तो उसका आस्वादन अमृत की तरह लगा। कपड़े (नातणे)में बंधी हुई बाजरे की रोटी और प्याज(कांदे)को छाछ के साथ खाया तो बहुत आनंद आया लेकिन आंतों में सूजन वाला रोग पुनः जागृत हो गया।

तब ग्वार गम की नौकरी छोड़कर राजस्थान भारी इस्पात उद्योग में कुछ दिन नौकरी की। फिर 12 वीं की परीक्षा की तैयारी करने लगा। 1996 की बात है जब श्रीलंका ने क्रिकेट का फाईनल जीता था। मैं शाम को 8 बजे पढ़ने बैठा था। मेरा चचेरे भाई की रात्रिकालीन ड्यूटि थी। जब वे अगले दिन प्रातः 6 बजे वापिस आए तो मैंने पूछ लिया । आज इतने जल्दी ? तब उन्होंने कहा तू पागल हो गया सोया नहीं क्या ? मैंने कहा नहीं। तो भाई ने कहा , सुबह के छः बज गए। मैं चौंक गया । घड़ी की तरफ देखा तो घड़ी छः बजा रही थी। मैंने बारहवीं कक्षा प्रथम श्रेणी से पास की स्वयंपाठी रहते हुए। भाई साहब को खुशी हुई।

1993 से वे निजी शिक्षण संस्थान चला रहे थे। 15 बच्चे थे 20 रू प्रतिमाह फीस थी। उन्होंने मुझे किशनगढ कॉलेज में नियमित अध्ययन हेतु दाखिला दिला दिया। कॉलेज में पढ़ाई नाम मात्र की थी। मैंने ऐच्छिक विषय के रूप में संस्कृत साहित्य,अंग्रेजी साहित्य व राजनीति विज्ञान विषय चुना। अंग्रेजी साहित्य मेडम डोली दलेला पढ़ा रही थी । मात्र 10 मिनट पढ़ाकर उसकी English to English व्याख्या कर दी। मेरे समझ में कम ही आई तो मैंने हिन्दी में व्याख्या करने के लिए आग्रह किया , तो एक साथी छात्र लोंगानी ने यह कहते हुए हंसी उड़ाई कि जब हिन्दी ही पढ़नी थी तो क्यों अंग्रेजी की टाँग तोड़ने आ गया ? हिन्दी साहित्य ले ले। मैं कुछ नहीं बोला निराश होकर घर लौट आया। लेकिन एक बात की गाँठ बाँध ली कि लोंगानी बन्धु से अंक ज्यादा लाना है। फिर रोज AK Maheshwari के Notes के दो पृष्ठ समझ में आए तो ठीक, नहीं तो रट लेता था। इसी बीच व्यवसाय की इच्छा जागृत हो गई। कोलेज से तो अरुची हो गई थी ।

दिनभर होम ट्यूशन पढ़ाता और शाम को पड़ोसी छात्रों को अंग्रेजी जिनमें Kamlesh Kumar Vaishnav अंग्रेजी के वरिष्ठ अध्यापक हैं।

बचपन की एक और अधूरी इच्छा पूरी करनी थी। बालाजी का मेला भरने वाला था मदनगंज में , मैं एक दिन पहले बाजार गया और दो बोरी पानी वाले कच्चे नारियल खरीदे 800 रु में। रात भर में उनकी दाढी (छिलका)उतार दिया। सुबह मेले में गया और बेच आया 8 रु प्रति नारियल के हिसाब से। बचपन की इच्छा पूर्ण हुई।

मैंने 1997 में कॉलेज भी टॉप की।

अंग्रेजी साहित्य में मेरे सर्वाधिक अंक आए थे। अब लोंगानी जी मेरे मित्र बन गए।

द्वितीय वर्ष के समय व्यवसाय को बदल लिया। दैनिक भाष्कर का अखबार वितरण करने वाला मैं होकर बन गया। मुझे मेरे होकर्स के व्यवसाय पर आज भी गर्व है। सुबह 3:50 पर उठता । दुकानों के सामने से सिगरेट के खाली पैकेट बीनता और फिर मदनगंज चौराहा से अखबार के बंडल को साईकिल पर बांधता जिस पर मेरे पैर मुश्किल से ही पहुंचते थे। अखबार को गोल समेटकर उस पर सिगरेट के पैकेट का बंध बनाकर पूर्ण दक्षता के साथ दूसरी मंजिल पर निश्चित स्थान पर फेंक देते थे। आनंद का कार्य लगता था। लेकिन एक दिन अखबार किसी घर मालिक के मुंह पर गिर गया तो एक डंडे का दौड़ती हुई साईकिल पर वार /प्रहार जो पीठ पर लगा , असहनीय था।

सम्पूर्ण गांधीनगर,मार्बल क्षेत्र मकराना रोड़ मेरे मित्र Ishtiyaq Ahmed Quazi के हिस्से में था। एक बार इश्त्याक भाई ने भी जल्दबाजी में मार्बल की थप्पी गिरा दी थी। हर संघर्ष हमें मजबूत बनाता है।

तृतीय वर्ष में मैं एक दलदली क्षेत्र में पड़ गया था। किसी भाई के उकसावे में आकर। "छात्र राजनीति"। जब मेरे मित्र इशत्याक ने एक प्रधान से कहा कि तेजा को इकाई अध्यक्ष बनाओ तो उसने कहा कि उसके पास तो पहनने को जूते नहीं है,चप्पल पहनकर कॉलेज आता है। बात प्रधान की बिलकुल सत्य थी। अगले दिन मैंने एक संगठन का गठन किया। उस संगठन ने कॉलेज छात्रसंग राजनीति में भूचाल ला दी। कोई भी पार्टी एक ही कॉलेज में दो व्यक्तियों को चुनाव चिह्न नहीं देती है लेकिन 1999 में NSUI के दो व्यक्तियों को चुनाव चिह्न आवंटित करना पड़ा था। मीनाक्षी जी चन्द्रावत् द्वारा राकेश जी शर्मा और रघु जी शर्मा द्वारा गोपाल जी पूनियाँ को

पूनियाँ जी को टिकट की सिफारिश मैंने की थी। प्रदीप जी अग्रवाल और अनिल जी दूबे से निवेदन करके। राजनीति ने मेरी जिंदगी में अवसाद भर दिया।

2001 में शिक्षा-शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान की शाखा तृस्सूर , केरल से की।

10 महीने पूरा प्रशिक्षण करके ही घर लौटा।

कुछ समय निजी स्कूल में शिक्षण करवाया ।

फिर 2003 में राजीव गाँधी स्कूल में अतिरिक्त शिक्षा सहयोगी में चयन हुआ। 2005 में द्वितीय श्रेणी अंग्रेजी शिक्षक बना। मार्च 2016 में व्याख्याता बना।

कोरोना काल में लोकडाउन के समय सोशल मीडिया पर एक्टिव मोड में आ गया। मुझे गीत संगीत सुनने और प्रेरक पोस्ट लिखने में अभिरुचि है। सोशल मीडिया पर हर नयी चीज को सीखने में तत्पर रहता हूं।

साभार

श्रीमान तेजाराम जी थाकण वाल से

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