राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड कक्षा 10वीं हिंदी पाठ्यपुस्तक आधारित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर,अध्याय -06 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल नागार्जुन
जीवन
परिचय-
- जन्म बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में सन 1911 को हुआ था।
- नागार्जुन का वास्तविक नाम 'वैद्यनाथ मिश्र' था।
- पिता का नाम-गोकुल मिश्र
- माता का नाम-श्रीमती उमादेवी
- पत्नी का नाम-अपराजिता देवी
- हिंदी में उन्होंने 'नागार्जुन' तथा मैथिली में 'यात्री' उपनाम से साहित्य सृजन किया।
- बाबा नागार्जुन ने
स्वेच्छापूर्वक ‘यात्री’ नाम का चयन अपनी मैथिली रचनाओं के लिए किया था।
- 1936 में वे श्रीलंका गए और वहीं बौद्ध धर्म में दीक्षित हुए।
- श्रीलंकायी प्रवास में बौद्ध धर्मांवलंबी होने के पश्चात् सन् 1936-37 में उनका ‘नागार्जुन’ नामकरण हुआ।
- दो साल प्रवास के बाद 1938 में स्वदेस लौट आये। घुमक्कड़ी और अक्खड़ स्वभाव के धनी स्वभाव के धनी नागार्जुन ने अनेक बार सम्पूर्ण भारत की यात्रा की।
- इसी ‘यात्री’ उपनाम का प्रयोग सन् 1942-43 तक अपनी हिन्दी रचनाओं के लिए भी किया।
- सन 1998 में इनकी मृत्यु हो गयी।
उपनाम –
- हिंदी सहित्य के लिए : नागार्जुन
- मैथिली रचनाओं के लिए : यात्री
- संस्कृत रचनाओं के लिए : चाणक्य
- लेखकों और मित्रों में : नागाबाबा नाम से प्रचलित रहे ।
साहित्यिक परिचय-
काव्य-कृतियाँ - युगधारा, सतरंगे
पंखों वाली, हजार-हजार बाहों वाली, तुमने
कहा था, पुरानी जूतियों का कोरस, आखिर
ऐसा क्या कह दिया मैंने, मैं मिलिटरी का बूढ़ा घोड़ा।
पुरस्कार - हिंदी अकादमी, दिल्ली
का शिखर सम्मान, उत्तर प्रदेश का भारत भारती पुरस्कार, बिहार
का राजेंद्र प्रसाद पुरस्कार।
यह दंतुरित मुस्कान
इस कविता में कवि ने
नवजात शिशु के मुस्कान के सौंदर्य के बारे में बताया है। कवि
कहते हैं की शिशु की मुस्कान इतनी मनमोहक और आकर्षक होती है की किसी मृतक में भी जान डाल दे। खेलने के बाद धूल
से भरा तुम्हारा शरीर देखकर ऐसा लगता है मानो कमल का फूल तालाब छोड़कर मेरी झोपड़ी
में आकर खिल गए हों। तुम्हारे स्पर्श को पाकर पत्थर भी मानो पिघलकर जल हो गया हो
यानी तुम्हारे जैसे शिशु की कोमल स्पर्श पाकर किसी भी पत्थर-हृदय व्यक्ति का दिल
पिघल जाएगा। कवि कहते हैं की उनका मन बांस और बबूल की भांति नीरस और
ठूँठ हो गया था परन्तु तुम्हारे कोमलता का स्पर्श मात्र
पड़ते ही हृदय भी शेफालिका के फूलों की भांति झड़ने लगा। कवि के हृदय में वात्सल्य
की धारा बह निकली और वे अपने शिशु से कहते हैं की तुमने मुझे
आज से पूर्व नहीं देखा है इसलिए मुझे पहचान नही रहे। वे कहते हैं
की तुम्हे थकान से उबारने के लिए मैं अपनी आँखे फेर लेता हूँ ताकि तुम भी मुझे
एकटक देखने के श्रम से बच सको। कवि कहते हैं की क्या हुआ यदि तुम मुझे पहचान नही
पाए। यदि आज तुम्हारी माँ न होती तो आज मैं तुम्हारी यह मुस्कान भी ना देख पाता।
वे अपनी पत्नी का आभार जताते हुए की तुम्हारा मेरा क्या सम्बन्ध यह तुम इसलिए नही
जानते क्योंकि मैं इधर उधर भटकता रहा, तुम्हारी ओर ध्यान
ना दिया। तुम्हारी माँ ने ही सदा तुम्हें स्नेह-प्रेम दिया और
देखभाल किया। पर जब भी हम दोनों की निगाहें मिलती हैं तब तुम्हारी यह मुस्कान मुझे
आकर्षित कर लेती हैं।
फसल
इस कविता में कवि ने फसल क्या है साथ ही इसे पैदा
करने में किनका योगदान रहता है उसे स्पष्ट किया है। वे
कहते हैं की इसे पैदा करने में एक नदी या दो नदी का पानी नही होता बल्कि ढेर सारी नदियों का पानी का
योगदान होता है अर्थात जब सारी नदियों का पानी भाप बनकर उड़ जाता है तब सब बादल
बनकर बरसते हैं जो की फसल उपजाने में सहायक होता है। वे किसानों का महत्व स्पष्ट
करते हुए कहते हैं की फसल तैयार करने में असंख्य लोगों के हाथों की मेहनत होती है। कवि बताते
हैं की हर मिटटी की अलग अलग विशेषता होती है, उनके रूप, गुण, रंग एक सामान नही
होते। सबका योगदान फसल को तैयार करने में है।
कवि ने बताया है की फसल बहुत चीज़ों का सम्मिलित रूप है जैसे
नदियों का पानी, हाथों की मेहनत, भिन्न मिट्टियों का
गुण तथा सूर्य की किरणों का प्रभाव तथा मंद हवाओं का स्पर्श। इन सब के मिलने से ही
हमारी फसल तैयार होती है।
परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण सप्रसंग व्याख्या
तुम्हारी यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात….
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण, पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?
कविता का भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों
में कवि ने एक दांत निकलते बच्चे की मधुर मुस्कान का मन मोह लेने वाला वर्णन किया
है। कवि के अनुसार एक बच्चे की मुस्कान मृत आदमी को भी ज़िन्दा कर सकती है। अर्थात
कोई उदास एवं निराश आदमी भी अपना गम भूलकर मुस्कुराने लगे। बच्चे घर के आँगन में
खेलते वक्त खुद को गन्दा कर लेते हैं, धूल से सन जाते हैं, उनके गालों पर भी धूल लग जाती है।
कवि को यह दृश्य देखकर ऐसा लगता है, मानो किसी तालाब से चलकर कमल का फूल उनकी झोंपड़ी में खिला हुआ है।
कवि को ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अगर यह बालक किसी पत्थर को छू ले, तो
वह भी पिघलकर जल बन जाए और बहने लगे। अगर वो किसी पेड़ को छू ले, फिर
चाहे वो बांस हो या फिर बबूल, उससे शेफालिका के फूल ही झरेंगे।
अर्थात बच्चे के समक्ष कोई कोमल हृदय वाला इंसान हो, या
फिर पत्थरदिल लोग। सभी अपने आप को बच्चे को सौंप देते हैं और वह जो करवाना चाहता
है, वो करते हैं एवं उसके साथ खेलते हैं।
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क
उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होतीं जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान!
कविता का भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों
में कवि अपने पुत्र के बारे में बताता है कि उसके नए-नए दांत निकलना शुरु हुए हैं।
कवि बहुत दिनों बाद अपने घर वापस लौटा है, इसलिए उसका पुत्र उसे पहचान नहीं पा रहा। आगे कवि लिखते हैं कि बालक
तो अपनी मनमोहक छवि कारण धन्य है ही और उसके साथ उसकी माँ भी धन्य है, जिसने
उसे जन्म दिया।
आगे कवि कहते हैं कि तुम्हारी माँ रोज तुम्हारे दर्शन का लाभ उठा रही
है। एक तरफ मैं दूर रहने के कारण तुम्हारे दर्शन भी नहीं कर पाता और अब तुम्हें
पराया भी लग रहा हूँ। एक तरह से यह ठीक भी है, क्योंकि मुझसे तुम्हारा संपर्क ही कितना है। यह तो तुम्हारी माँ की
उँगलियाँ ही हैं, जो तुम्हें रोज मधुर-स्वादिष्ट भोजन कराती है। इस तरह तिरछी नज़रों
से देखते-देखते जब हमारी आँख एक-दूसरे से मिलती है, मेरी आँखों में स्नेह देखकर तुम मुस्कुराने लगते हो। यह मेरे
मन को मोह लेता है।
फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
कविता का भावार्थ :- प्रस्तुत पंक्तियों
में कवि हमसे यह प्रश्न करता है कि यह फसल क्या है? अर्थात यह कहाँ से और कैसे पैदा होता है? इसके
बाद कवि खुद इसका उत्तर देते हुए कहते हैं कि फसल और कुछ नहीं बल्कि नदियों के
पानी का जादू है। किसानों के हाथों के स्पर्श की महिमा है। यह मिट्टियों का ऐसा
गुण है, जो उसे सोने से भी ज्यादा मूल्यवान बना देती है। यह सूरज की किरणों
एवं हवा का उपकार है। जिनके कारण यह फसल पैदा होती है।
अपनी इन पंक्तियों में कवि ने हमें यह बताने का प्रयास किया है कि
फसल कैसे पैदा होती है? हम इसी अनाज के कारण ज़िन्दा हैं, तो हमें यह ज़रूर पता होना चाहिए कि आखिर इन फ़सलों को पैदा करने में
नदी, आकाश, हवा, पानी, मिट्टी एवं किसान के परिश्रम की जरूरत पड़ती है। जिससे हमें उनके
महत्व का ज्ञान हो।
परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.बच्चे की
मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है?
उत्तर-
बच्चे
की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में बहुत अंतर होता है। बच्चे की मुसकान
अत्यंत सरल, निश्छल, भोली और
स्वार्थरहित होती है। इस मुसकान में स्वाभाविकता होती है। इसके विपरीत एक बड़े
व्यक्ति की मुसकान में स्वार्थपरता तथा बनावटीपन होता है। वह तभी मुसकराता है जब
उसका स्वार्थ होता है। इसमें कुटिलता देखी जा सकती है जबकि बच्चे की मुसकान में
सरलता दिखाई देती है।
प्रश्न 2.कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से
व्यक्त किया है?
उत्तर-कवि ने बच्चे की मुसकान के
सौंदर्य को निम्नलिखित बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है
- कवि को लगता है कि कमल तालाब छोड़कर इसकी झोपड़ी में खिल गये हैं।
- ऐसा लगता है जैसे पत्थर पिघलकर जलधारा के रूप में बह रहे हों।
- बाँस या बबूल से शेफालिका के फूल झरने लगे हों।
प्रश्न 3.यह दंतुरित
मुसकान कविता में ‘बाँस और बबूल’ किसके
प्रतीक बताए गए हैं? इन पर शिशु की मुसकान का के या असर होता है?
उत्तर-यह
दंतुरित मुसकान कविता में ‘बाँस और बबूल’ कठोर और निष्ठुर हृदय वाले लोगों का प्रतीक है।
ऐसे लोगों पर मानवीय संवेदनाओं का कोई असर नहीं होता है। ये दूसरों के दुख से
अप्रभावित रहते हैं। शिशु की दंतुरित मुसकान देखकर ऐसे लोग भी सहृदय बन जाते हैं
और उसके मुसकान के रूप में शेफालिका के फूल झड़ने लगते हैं।
प्रश्न 4.‘मृतक में भी
डाल देगी जान’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-शिशु
की नवोदित दाँतों वाली सुंदर मुसकान व्यक्ति के हृदय में सरसता उत्पन्न कर देती
है। इससे थक-हारकर निराश और निष्प्राण हो चुका व्यक्ति भी प्रभावित हुए बिना नहीं
रह पाता है। ऐसे व्यक्ति के मन में भी कोमल भावों का उदय होता है और वह शिशु को
देखकर हँसने-मुसकराने के लिए बाध्य हो जाता है।
प्रश्न 5.भाव स्पष्ट कीजिए
(क) छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात।
(ख) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े
शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल?
उत्तर-(क) ‘छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल
रहे जलजात’ का आशय यह है कि कवि को बच्चे का धूल
धूसरित शरीर देखकर ऐसा लगता है जैसे कमल तालाब छोड़कर उसकी झोपड़ी में खिल गए हों
अर्थात् बच्चे का रूप सौंदर्य कमल पुष्प के समान सुंदर है।
(ख) कम उम्र वाले शिशु जिनके दाँत निकल रहे होते हैं, उनकी मुसकान मनोहारी होती है। ऐसे बच्चों की निश्छल मुसकान देखकर
उसका स्पर्श पाकर बाँस या बबूल से भी शेफालिका के फूल झड़ने लगते हैं अर्थात् कठोर
हृदय वाला व्यक्ति भी सरस हो जाता है और मुसकराने लगता है।
प्रश्न 6.फ़सल उगाने
में किसानों के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-फ़सल
उगाने में प्रकृति के विभिन्न तत्व हवा, पानी, मिट्टी अपना योगदान देते हैं, परंतु किसानों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता
है। सारी परिस्थितियाँ फ़सल उगाने योग्य होने पर भी किसान के अथकश्रम के बिना फ़सल
तैयार नहीं हो सकती है। इससे स्पष्ट है कि किसानों का योगदान सर्वाधिक है।
प्रश्न 7.‘फ़सल’ कविता का
प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-‘फ़सल’ कविता
का प्रतिपाद्य है-लोगों को इस उपभोक्तावादी संस्कृति के बीच कृषि संस्कृति से
परिचित कराना तथा फ़सल, जो मानव जीवन का आधार है के योगदान में
प्राकृतिक तत्वों के साथ-साथ मानव श्रम को गरिमामय स्थान प्रदान करना। कवि बताना
चाहता है कि फ़सल हज़ारों नदियों के पानी, तरह-तरह
की मिट्टी के गुणधर्म, हवा की थिरकन, सूरज की किरणों का रूपांतरण और किसानों के अथक
श्रम का सुपरिणाम है।
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