बगडावत कथा -24
भैरूजी पता लगाकर बताते हैं। भगवान देवधा नाम की जगह में एक पेड़
है जिस पर बगुले बैठे हुए हैं और वो हराभरा हैं। देवनारायण उस पेड़ के नीचे आकर
अपने भाले से पाताल में मारते हैं, देवनारायण का भाला वहां छुपे हुए सोखिया पीर को
जाकर लगता है। पहले तो खून बाहर आता है, फिर पानी का फव्वारा फूट पड़ता हैं। नापा ग्वाल
पहले गायों को पानी पिलाते हैं और बाद में काफिले के सभी लोग अपनी-अपनी प्यास बुझाते हैं। देवधा
से देवनारायण का काफिला आगे चलता है। रास्ते में उन्हें (बनास नदी के किनारे) नागा साधुओं की फौज मिलती है
जो आने जाने वाले लोगों से दान मांगते हैं। आगे-आगे ग्वाले और गायें चल रही हैं और गाड़ियों में
काफिले के लोग, साडू माता, हीरा दासी, देवनारायण और भैरु काफिले के सबसे पीछे आ रहे
हैं। नागा साधु कहते हैं यहां दान चुकाये बिना नदी के उस पार कोई नहीं जा सकता और
सभी नागा साधु अपने अपने चिमटे लेकर रास्ता रोक लेते हैं। देवनारायण के काफिले के
ग्वालों और साधुओं के बीच युद्ध शुरु हो जाता है। इन साधुओं की जमात में भांगी जी
भी साधु वेश में होते हैं। हीरा उन्हें पहचान जाती हैं और माता साडू से कहती है
माताजी एक साधू की शकल आपकी देवरानी नेतुजीसे मिलती है और डीलडौल नियाजी जैसा लगता
है। साडू माता ये बात सुनकर साधुओं के गुरु बाबा रुपनाथ से मिलती है और बाबाजी से
बनास नदी के किनारे हो रहे युद्ध को रुकवाने की विनती करती है।बाबा रुपनाथ उनके
पूछने पर बताते हैं कि भांगीजी नियाजी और नेतूजी का ही बेटा है। यह सुनकर साडूमाता
भांगी जी को उनसे मांग लेती हैं। बाबा रुपनाथ साडू माता को भांगीजी को ले जाने की
इजाजत दे देते हैं। साडू माता भांगीजी को बुलाकर उन्हें समझाती हैं कि मैं आपकी
बड़ी माताजी हूं। तब तक नारायण वहां आ जाते हैं और सारी बात सुन भांगीजी की हजामत
बनवाते हैं, गंगाजल से स्नान करवाते हैं, अपने वस्र पहनाते हैं और उन्हें गले लगाते हैं।
बाबा रुपनाथ भांगीजी को साडू माता के साथ जाने की आज्ञा देते हैं।
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देवनारायण कथा