बगडावत कथा -27
जब राजा बिसलदेव को पता चलता है कि मेहन्दू जी ने बिजौरी को जेवर
दिये हैं तो वो बहुत नाराज होते हैं। और उनको मरवाने की साजिश करते हैं। मेहन्दू
जी को मारने की साजिश के लिये राण के रावजी के यहां संदेश भेजते हैं कि सवाई भोज
का लड़का मेहन्दू जी मेरी आंख में कांटे की तरह चुभ रहा है। राण के रावजी का संदेश
आता है, वो लिखते है कि भूणाजी भी मेरे को काला भुजंग नाग लगता है। ये कहीं
मेरे से अपने बाप का बैर न ले ले। रावजी वापस लिखते है कि मेहन्दू जी को शिकार के
बहाने रोहड्यां के बीहड़ में भेज दो, आगे मैं देख लूंगा। राजा बिसलदेव जी साडीवान भेज कर मेहन्दू जी को
सूचना देते हैं कि मेवाड़ की भूमि पर नाहर (शेर) बहुत हो गये। आते जाते लोगो को खा जाते हैं। प्रजा के रखवाले तो आप
ही हो। शिकार खेले भी बहुत दिन हो गये हैं। रोहड्यां का बीहड़ में जाइए और शेरों का
शिकार कर लीजिए। मेहन्दू जी बटूर से अजमेर आये तो पहले अगड़ पर हाथियों का मुकाबला
कर प्रवेश किया। वहां से अपने मानकराय बछेरे पर सवार हो ५०० घुड़ सवार लेकर
रोहड्यां के जंगल में शेरों के शिकार के लिये निकल जाते हैं। इधर से रावजी भूणाजी
को लेकर बीहड़ में आ जाते हैं और वचीनी की बुरज पर आकर अपने डेरे डाल देते हैं।
भूणाजी दातुन कर रहे होते हैं। वहां उनको तड़ातड़ गोलियां चलने की आवाज सुनाईं देती
हैं। जहां मेहन्दू जी शेरों का शिकार कर रहे होते हैं। रावजी कहते हैं कि भूणा ये
कौन है जो अपनी रियासत में अपनी इजाजत के बगैर शिकार खेलने आया हैं ? जाओ और उसे मेरे पास पकड़कर ले आओ। सामना करे तो उसे मार डालना या
उसे कैद करके दरबार में हाजिर करना। इतना कहकर रावजी तो वापस राण में आ जाते हैं।
भूणाजी अपनी सेना में बन्ना चारण को साथ लेते हैं उसे सेना का सरदार बनाते हैं।
बन्ना चारण कहता है सरकार हमला करने से पहले उसे संदेश तो भेज दो ताकि वो भी तैयार
हो जाये। पीछे से हमला करना आप जैसे मर्दों का काम नहीं है। भूणाजी सांडीवान के
हाथ संदेश दिलाते है कि मेरा नाम राजकुमार भूणा है, बिना आज्ञा से यहां शिकार खैलने की सजा देने आ रहा हूं। मेहन्दू जी
के पास सांडीवान संदेश लेकर आता है। मेहन्दू जी संदेश पढ़ते है और सोचते की भूणाजी
तो मेरा भाई है। क्या भाई-भाई को मारेगा। जरुर इसमें बाबासा (बिसलदेव) की कोई चाल है, अपने रास्ते से मुझे हटाने की। मेहन्दू जी सांडीवान के साथ भूणाजी
को संदेश भेजते हैं। कहते हैं कि आप पधारो में आपसे गले मिलने के वास्ते इन्तजार
कर रहा हूं। हम दोनों मिलकर साथ मे माताजी की पूजा करेगें।सांडीवान भूणाजी के पास
संदेश लेकर आते हैं। भूणाजी संदेश पढ़ते हैं कि वो तो मुझसे गले लगने के लिये
इन्तजार कर रहे हैं। भूणाजी बन्ना चारण को कहते हैं कि बन्ना हमने उसे युद्ध करने
का संदेश भेजा और वो हमें संदेश भेज रहा है कि हम साथ मिलकर माताजी की पूजा
करेगें। बन्ना पूछते है कि कौन है वो। भूणाजी कहते हैं कि मेहन्दू है कोई। बन्ना
पहचान जाता है और कहता है कि सरकार ये तो आपका भाई है। मेहन्दू सवाई भोज का लड़का
है। ये क्या कहते हो बन्ना, मेरे बाबासा तो रावजी है। ये मेरा भाई कहां से आ गया फिर ? बन्ना सारी बात बताता है कि बगड़ावतों के मरने का बाद रावजी और उनके
साथियों ने आपको भी मारने की कोशिश की मगर आप बच गये और रावजी आपको अपना बेटा
बनाकर साथ ले आये। और इस बात का भूणाजी को सबूत देता है कि आपकी चंटी अगुंली कटी
हुई है। रावजी का और आपका खून मिलाकर रावजी ने आपको बेटा बनाया है और आपको
खाण्डेराव नाम दिया। ये बात सुनकर भूणाजी अपने बछेरे पर सवार होकर मेहन्दू जी से
मिलने आते हैं। जहां दोनों भाई गले मिलते हैं और एक दूसरे का हाल पूछते हैं।
मेहन्दूजी उन्हें सारी बात बताते हैं कि अपने खानदान के मरने के बाद अपना खजाना कौन-कौन लूट कर ले गये
हैं।और बाबासा की बोर घोड़ी को धांधू भील ले गया है। सुना है उसके सवा मण की बेड्या
गले में डाल रखी हैं और कैद करके रखी हुई है। जहां उसकी बड़ी दुर्दशा हो रही है।
सबसे पहले आप उसे छुड़ाओ। और सारी बात मेहन्दूजी भूणाजी को बताकर रोहड़िया की बीहड़ से
सीधे खेड़ा चौसला आ गए।
Tags:
देवनारायण कथा