बगडावत कथा -28
खेडा चौसला आकर मेहन्दू जी देवनारायण से मिले। देवनारायण से मिलने
के बाद मेहन्दू जी साडू माता से भी मिले क्योंकि मेहन्दू जी देवनारायण के बड़े भाई
थे इसलिए साडू माता ने उनको राजगद्दी सौंप दी और उनका राजतिलक कर दिया। फिर दोनों
भाईयों ने साडू माता और छोछू भाट से सलाह लेकर तेजाजी के बेटे मदनो जी को संदेश
भेजा और उन्हें भी खेड़ा चौसला बुला लिया। उधर भूणा जी मेहन्दू जी से मिलकर सीधे
राण में पातु के पास आते हैं और पिछली सारी बात पूछते हैं। पातु बताती है कि हां
तुम बगड़ावतों के लड़के हो यह सही है। अब भूणा जी के दिल में अपने बाप का बदला लेने
की भावना जाग जाती है। भूणाजी पातू कलाली के यहां से सीधे दरबार में जाकर अरज करते
हैं कि बाबासा मेरे को इजाजत दो मैं भीलों की खाल को फतेह करने जाना चाहता हूं।
वहां एक बहुत अच्छी बोर घोड़ी है, उसे लेकर आना है। रावजी सोचते हैं कि इसे कहीं पता तो नहीं चल गया।
लगता है मेहन्दू ने इन्हें सब कुछ बता दिया। रावजी कहते हैं बेटा भूणा भीला की खाल
में खतरा है। वहां ८० हजार भीलो की सेना है। उनसे वहां लड़ाई में जीतना बहुत कठिन
काम है। भूणाजी कहते है बाबासा मैं तो जा रहा हूँ भीलों का मुझे कोई डर नहीं है, मेरे को तो बोर घोड़ी
चाहिये। रावजी सोचते है जाना चाहता है तो जाने दो। खुद-ब-खुद ही मर जायेगा, अपने रास्ते का कांटा
साफ हो जायेगा। रावजी भूणाजी के साथ दियाजी और कालूमीर पठान कोऔर उनके साथ १७,००० सैनिक और तौपें, गोला-बारूद देकर भेजते हैं।
भूणाजी भीलों की खाल में जाकर भीलों से अपने बाप का बैर लेने के लिये धांधू भील को
संदेश भेजते हैं कि धांधूजी हमारी बोर घोड़ी वापस कर हमारे सामने माफी मांगों नहीं
तो युद्ध करने को तैयार रहो। मैं मेरे बाबासा (बगड़ावत) का बैर लेने आ रहा हूं। धांधू भील भूणाजी को संदेश भेजते हैं कि
भूणा तेरा बाप को रण में मैंने मारा था और अब तू भी मरने के लिये तैयार हो जा ।
भीलमाल ठाकुर भूणा को कहते हैं कि तेरे बाप के खातिर हमारा धणी खारी के युद्ध में
मारा गया। अब तू घोड़ी लेने चला आया। सारे के सारे भील भूणा पर चढ़ आते हैं।
दोनों में घमासान युद्ध हो जाता है और युद्ध ५ महीने तक चलता है। जब भीलों की सारी
फौज आ गई तब कालूमीर और दीया जी तो डर के भाग गये, सब भील १७ कोस तक भूणा जी घेर लेते है। भूणा जी समझ जाते हैं कि
रावजी की फौज तो साथ नहीं दे रहीं है यह युद्ध तो अपने बलबूते पर ही लड़ना होगा।
उधर राण में रावजी को तलावत खां खिलजी का युद्ध का संदेश मिलता है। तलावत खां खिलजी, खरनार के बादशाह का
संदेश पढ़ कर रावजी घबरा जाते हैं। सोचते हैं कि उनके खास उमराव तो भूणाजी के साथ
भीलों की खाल में लड़ाई कर रहें हैं, तलावत खां का क्या करे ? रावजी ने पहले तलावत खां
को बगड़ावतों से युद्ध के समय कहा था कि युद्ध जीतकर दीपकंवर बाई से आपका विवाह
करवायेगें। मगर दीपकंवर बाई तो युद्ध में मारी जाती है। तलावत खां उस समय तो वापस
लौट जाता हैं मगर फिर रावजी को संदेश भेजता हैं कि दीपकंवर न सही आपकी बेटी तारादे
से मेरा विवाह(निकाह) करा दो, नहीं तो मेरे साथ युद्ध करो। मैं तुम्हें अपने साथ कैद कर के ले
जाउंगा। रावजी तलावत खां के डर से तारादे को राताकोट में छिपा देते हैं और कहते है
कि कुछ भी हो तुम यहां से बाहर मत निकलना। तलावत खान अपनी सेना के साथ राण पर
चढ़ाई कर देता हैं। बहुत ढूंढने पर भी तलावत खां को तारादे कहीं नहीं मिलती है।
फिर बादशाह तलावत खां नौलखा बाग में छुपकर रावजी के आने का इन्तजार करने लगा।
रावजी का ग्यारस (ग्यारस का वृत) नजदीक आ गया था। रविवार के दिन रावजी जब ग्यारस को व्रत खोलने
नौलखे बाग में गये वहां बादशाह तलावत खां ने रावजी को कैद कर लिया।
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देवनारायण कथा