1 राजा
बिसलदेव की कचहरी एवं अजमेर शहर
बगड़ावत देवनारायण लोकगाथा अजमेर
के राजा बिसलदेवजी के भाई माण्डलजी से शुरु होती है जो कि देवनारायण के पूर्वज थे।
माण्डलजी के बड़े भाई राजा बिसलदेवजी उन्हें घोड़े खरीदने के लिये मेवाड़ भेजते हैं।
राजा माण्डल का मण्दारा
मेवाड़ पहुँच कर माण्डलजी कुछ घोड़े खरीदते हैं, मगर बहुत सारा पैसा वो तालाब बनवाने में खर्च कर देते हैं
और अपने भाई से और पैसे मंगवाते हैं जो वो भेजते रहते हैं। बिसलदेवजी यह पता करने
आते हैं कि माण्डलजी इतने सारे पैसो का क्या कर रहे हैं। इस बात का पता जब
माण्डलजी को लगता है कि उनके बड़े भाई बिसलदेवजी आ रहे हैं, तब वह जो तालाब बनाया था उसमें घोड़े सहित उतर जाते हैं और
जल समाधी ले लेते हैं। बिसलदेवजी को यह जानकर बहुत दुख होता है और वह माण्डलजी की
याद में तालाब के बीच में एक विशाल छतरी और एक विशाल मंदारे का निर्माण (कीर्ति स्तम्भ नुमा)
करवाते हैं और उस गांव का नाम
माण्डलजी के नाम से माण्डल पड़ जाता है जो कि मेवाड़ के नजदीक आज भी स्थित है।
हरीराम और लीला सेवरी :-
राजा बिसलदेव के राज्य में एक
बार एक शेर ने आतंक फैला रखा था। गांवों के छोटे-छोटे बच्चो को वह रात को चुपचाप उठा कर ले जाता था। थकहार कर लोगों ने तय किया कि शेर
का भोजन बनने के लिए हर घर का एक सदस्य बारी-बारी से जाएगा। एक रात माण्डलजी के पुत्र हरीरामजी जिन्हें
शिकार खेलने का बहुत शौक होता हैं वहां से गुजरते हैं। रात बिताने के लिए वो एक
बुढिया से उसके घर में रहने की अनुमति
मांगते हैं और बुढिया उन्हें अनुमति दे देती है। रात को जब बुढिया अपने बेटे को
भोजन खिला रही होती है तो हरीरामजी देखते हैं कि बुढिया अपने बेटे को बहुत प्यार
से भोजन करा रही है और रोती भी जा रही है। हरीरामजी बुढिया से उसके रोने का कारण
पूछते हैं। बुढिया उन्हें शेर के बारे में बताती हैं, और कहती हैं कि मेरे दो बेटे थे, एक बेटा पहले ही शेर का भोजन बन चुका है और आज रात दूसरे
बेटे की बारी है। यह सुनकर हरीरामजी बुढिया को कहते हैं कि मां मैं आज तेरे बेटे
की जगह शेर का भोजन बनने के लिए चला जाता हूं। जंगल में जाकर हरीरामजी आटे का एक
पुतला बनाकर अपनी जगह रख देते हैं और खुद पास की झाड़ी में छुप जाते हैं। जब शेर
आटे के पुतले पर हमला करता हैं तो हरीरामजी झाड़ी से बाहर आकर अपनी तलवार के एक ही
वार से शेर की गर्दन अलग कर देते हैं। इसके बाद शेर का कटा हुआ सिर हाथ में लेकर
अपनी खून से सनी तलवार को धोने के लिए पुष्कर घाट की ओर जाते हैं। पुष्कर के
रास्ते में लीला सेवड़ी नामक एक औरत (ब्राह्मणी) रहती थी और वो सुबह सेवेरे सबसे पहले उठकर
पुष्कर घाट पर नहा धोकर वराह भगवान की पूजा करने के लिये जाती थी। उसने यह प्रण ले रखा था कि वराह भगवान की पूजा करने के बाद ही
किसी इन्सान का मुँह देखेगी। पुष्कर घाट पहुंचकर जब हरीरामजी तलवार को पानी से साफ
करके अपनी मयान में डालते हैं तो लीला सेवड़ी जो वराह भगवान की पूजा कर रही होती है, आहट सुनकर पीछे मुड़कर देखती है। हरीरामजी डर के कारण शेर का
कटा हुआ सिर आगे कर देते है जिससे लीला सेवड़ी को सिर तो शेर का और धड़ इन्सान का
दिखाई देता है। वह कहती है कि यह तुमने क्या किया? अब मेरे
जो सन्तान होगी वह ऐसी ही होगी,
जिसका सिर तो शेर का होगा और
शरीर आदमी का। अब लीला सेवड़ी कहती है कि आपको मेरे साथ विवाह करना होगा।
हरीरामजी सोचते है कि ऐसी सती औरत कहाँ मिलेगी, वह विवाह
के लिये तैयार हो जाते हैं।
कुछ समय पश्चात हरीरामजी और लीला सेवड़ी के यहां एक सन्तान
पैदा होती है, जिसका सिर तो शेर का और बाकि शरीर मनुष्य का होता है।
हरीरामजी उस बच्चे को लेकर एक बाग में बरगद के पेड़ की कोचर (खोल) में छिपा कर चले आते हैं। दूसरे दिन बाग का
माली आता है और देखता है कि बाग तो एक दम हरा भरा हो गया है। यह क्या चमत्कार है
और वह पूरे बाग में घूम फिर कर
देखता है तो उसे बरगद की खोल में एक नवजात शिशु के रोने की आवाज सुनाई देती है और
बाग का माली दौड़ कर बरगद के पेड़ की खौल में से बच्चे को उठा लेता है। वह यह देखकर
दंग रह जाता है कि बच्चे का मुँह शेर का और शरीर इन्सान का है। वह बच्चे को राजा
के पास लेकर जाता है। राजा बीसलदेव को जब हरीरामजी से सारी बात का पता चलता है तो
उस बच्चे के लालन-पालन का जिम्मा वह स्वयं लेने के लिए तैयार हो जाते हैं।
बाघ सिंह का बाग और उनके विवाह :-
राजा बीसलदेव उस बच्चे का नाम
बाघ सिंह रख देते हैं। बाघ सिंह की देख-रेख के लिए उस बाग में एक ब्राह्मण को नियुक्त कर देते हैं। बाघ सिंह उसी बाग में खेलते
कूदते बड़े होते हैं।
राजस्थान में यह प्रथा है कि
सावन के महीने मे तीज के दिन कुंवारी कन्याएं झूला झूलने के लिये बाग में जाती है।
यही जानकर उस दिन बाघ सिंह और ब्राह्मण भी अपने बाग में झूले डालते हैं। बाघ सिंह
झूला झूलने के लिये आयी हुई कन्याओं से झूलने के लिये एक शर्त रखते हैं कि झूला
झूलना है तो मेरे साथ फैरे लेने होगें? लड़कियां
पहले तो मना कर देती है लेकिन फिर आपस में बातचीत करती है कि फैरे लेने से कोई
इसके साथ शादी थोड़े ही हो जायेगी। कुछ लड़कियां बाघ सिंह के साथ फैरे लेकर झूला
झूलने के लिये तैयार हो जाती है और कुछ वापस अपने घर लौट जाती हैं। बाघ सिंह के साथ उसका ब्राह्मण मित्र लड़कियों के फैरे
करवाता है और झूला झूलने की इजाजत देता है। उस दिन लड़कियां झूला झूलकर अपने घर
वापस आ जाती हैं। जब वह लड़कियां बड़ी होती है तब उनके घर वाले उनकी शादी के सावे (लग्न)
निकलवाते हैं, लेकिन जब
उनकी शादी के लग्न नहीं मिलते हैं तब घर वालों को चिन्ता होती है कि आखिर इनके
लग्न क्यों नहीं मिल रहे हैं। लड़कियों के माता-पिता राजा बिसलदेवजी के पास जाकर यह बात बताते है राजा बिसलदेवजी एक युक्ति निकालते हैं और सब लड़कियों को एक
जगह एकत्रित करते हैं और उनके पास पहरे पर एक बूढ़ी दाई को बैठा देते हैं, और कहते हैं कि यह बहरी है इसे कुछ सुनाई नहीं देता है।
सारी लड़कियां आपस में खुसर-फुसर करती हैं और कहती हैं कि मैंने कहा था कि बाघ सिंह के साथ फैरे नहीं लो और तुम नहीं मानी। उसी का
यह अंजाम है कि आज अपनी शादी नहीं हो पा रही है। यह बात बूढ़ी औरत सुन लेती है, और दूसरे दिन राजा बिसलदेवजी को सारी बात बताती है।
फिर राजा बिसलदेवजी बाघ सिंह को
बुलाते हैं और उन्हें फटकार लगाते हैं। बाघ सिंह कहते है कि मैं एक बाथ भर्रूंगां, जो लड़कियां मेरी बाथ में आ जायेगी उससे तो मैं शादी कर
लूगां और बाकि लड़कियों के सावे निकल जायेगें। बाघ सिंह जब बाथ भरते हैं उनकी बाहों
में १३ लड़कियां समा जाती है। जिससे बाघ सिंह शादी करने को तैयार हो जाते है। १२
लड़कियों से स्वयं शादी कर लेते हैं और एक लड़की अपने ब्राह्मण मित्र को जो फैरे
करवाता है, उसको दे देते है।
बगड़ावत देवनारायण लोकगाथा अजमेर के राजा बिसलदेवजी के भाई माण्डलजी से शुरु होती है जो कि देवनारायण के पूर्वज थे। माण्डलजी के बड़े भाई राजा बिसलदेवजी उन्हें घोड़े खरीदने के लिये मेवाड़ भेजते हैं।
राजा माण्डल का मण्दारा
हरीराम और लीला सेवरी :-
गुर्जर इतिहास की जानकारी के लिए ब्लॉग पढे :-https://gurjarithas.blogspot.com
सम्पूर्ण कथा जानने के लिएं इस ब्लॉग को FOLLOW जरूर करे..........................
सम्पूर्ण कथा जानने के लिएं इस ब्लॉग को FOLLOW जरूर करे..........................
Tags:
बगड़ावत देवनारायण फड़