देवनारायण
बगड़ावत वंश के थे । वे नाग वंशीय गुर्जर थे जिनका मूल स्थान वर्तमान में अजमेर के
निकट नाग पहाड़ था । गुर्जर जाति एक संगठित , सुसंस्कृत वीर जातियों में गिनी
जाती है जिसका आदिकाल से गौरवशाली इतिहास रहा है । समाज में प्रचलित लोक कथाओं के
माध्यम से गुर्जर जाति के शौर्य - पुरूष देवनारायण के सम्बन्ध में विस्तृत रूप से
जानकारी मिलती है । देवनारायण महागाथा में इनको चौहान वंश से सम्बन्धित बताया है ।
देवनारायण की फड़ के अनुसार माण्डलजी के हीराराम , हीराराम के बाघसिंह और बाघसिंह
के 24 पुत्र हुए जो बगड़ावत कहलाये । इन्हीं में से बड़े भाई सवाई भोज और
माता साडू ( सेढू ) के पुत्र के रूप में वि . सं . 968 ( 911 ई.) में माघ शुक्ला सप्तमी को
आलौकिक पुरूष देवनारायण का जन्म मालासेरी में हुआ ।
बगडावत
राणी
जयमती (जैमति) को लेकर राण के राजा दुर्जनसाल से बगड़ावतों की जंग हुई। युद्ध से
पूर्व बगडावतों तथा दुर्जनसाल की मित्रता थी तथा वे धर्म के भाई थे। ये युद्ध खारी
नदी के किनारे हुआ था। बगड़ावतों ने अपना वचन रखते हुए राणी जैमति को सिर दान में
दिये थे। बगड़ावतों के वीरगति प्राप्त होने के बाद देवनारायण का अवतार हुआ तथा
उन्होंने राजा दुर्जनसाल का वध किया। देवनारायण
की 3 रानियां थीं- पीपलदे (धारा के गुर्जर परमार राजा की बेटी), नागकन्या तथा दैत्यकन्या।
परिचय
देवनारायण
पराक्रमी योद्धा थे जिन्होंने अत्याचारी शासकों के विरूद्ध कई संघर्ष एवं युद्ध
किये । वे शासक भी रहे । उन्होंने अनेक सिद्धियाँ प्राप्त की । चमत्कारों के आधार
पर धीरे - धीरे वे गुर्जरों के देव स्वरूप बनते गये एवं अपने इष्टदेव के रूप में
पूजे जाने लगे । देवनारायण को विष्णु के अवतार के रूप में गुर्जर समाज द्वारा
राजस्थान व दक्षिण - पश्चिमी मध्य प्रदेश में अपने लोकदेवता के रूप में पूजा की
जाती है । उन्होंने लोगों के दुःख व कष्टों का निवारण किया । देवनारायण महागाथा
में बगडावतों और राण भिणाय के शासक के बीच युद्ध का रोचक वर्णन है ।
देवनारायणजी
का अन्तिम समय ब्यावर तहसील के मसूदा से 6 कि . मी . दूरी पर स्थित
देहमाली ( देमाली ) स्थान पर गुजरा । भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को उनका वहीं देहावसान
हुआ । देवनारायण से पीपलदे द्वारा सन्तान विहीन छोड़कर न जाने के आग्रह पर बैकुण्ठ
जाने पूर्व पीपलदे से एक पुत्र बीला व पुत्री बीली उत्पन्न हुई । उनका पुत्र ही
उनका प्रथम पुजारी हुआ ।
कृष्ण की
तरह देवनारायण भी गायों के रक्षक थे । उन्होंने बगड़ावतों की पांच गायें खोजी , जिनमें सामान्य गायों से अलग
विशिष्ट लक्षण थे । देवनारायण प्रातःकाल उठते ही सरेमाता गाय के दर्शन करते थे ।
यह गाय बगड़ावतों के गुरू रूपनाथ ने सवाई भोज को दी थी । देवनारायण के पास 98000 पशु धन था । जब देवनारायण की
गायें राण भिणाय का राणा घेर कर ले जाता तो देवनारायण गायों की रक्षार्थ राणा से
युद्ध करते हैं और गायों को छुड़ाकर लाते थे । देवनारायण की सेना में ग्वाले अधिक
थे । 1444 ग्वालों का होना बताया गया है , जिनका काम गायों को चराना और
गायों की रक्षा करना था । देवनारायण ने अपने अनुयायियों को गायों की रक्षा का
संदेश दिया ।
इन्होंने
जीवन में बुराइयों से लड़कर अच्छाइयों को जन्म दिया । आतंकवाद से संघर्ष कर सच्चाई
की रक्षा की एवं शान्ति स्थापित की । हर असहाय की सहायता की । राजस्थान में जगह -
जगह इनके अनुयायियों ने देवालय अलग - अलग स्थानों पर बनवाये हैं जिनको देवरा भी
कहा जाता है । ये देवरे अजमेर , चित्तौड़ , भीलवाड़ा , व टोंक में काफी संख्या में है । देवनारायण का प्रमुख मन्दिर
भीलवाड़ा जिले में आसीन्द कस्बे के निकट खारी नदी के तट पर सवाई भोज में है ।
देवनारायण का एक प्रमुख देवालय निवाई तहसील के जोधपुरिया गाँव में वनस्थली से 9 कि . मी . दूरी पर है ।
सम्पूर्ण भारत में गुर्जर समाज का यह सर्वाधिक पौराणिक तीर्थ स्थल है । देवनारायण
की पूजा भोपाओं द्वारा की जाती है । ये भोपा विभिन्न स्थानों पर जाकर गुर्जर
समुदाय के मध्य फड़ ( लपेटे हुये कपड़े पर देवनारायण जी की चित्रित कथा ) के
माध्यम से देवनारायण की गाथा गा कर सुनाते हैं ।
देवनारायण
की फड़ में 335 गीत हैं । जिनका लगभग | 1200 पृष्ठों में संग्रह किया गया है
एवं लगभग 15000 पंक्तियाँ हैं । ये गीत परम्परागत भोपाओं को कण्ठस्थ याद रहते हैं
। देवनारायण की फड़ राजस्थान की फड़ों में सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सबसे बड़ी है ।
देवनारायण के अन्य नाम
·
लीला घोडा का असवार
·
त्रिलोकी का नाथ
·
देवजी
·
देव महाराज
·
देव धणी
·
साडू माता का लाल
·
उधा जी
·
देवनारायण
·
नारायण
·
उदल
Tags:
बगड़ावत देवनारायण फड़