"गुर्जर
कन्या गायत्री "
गुर्जरो का पुष्कर
का इतिहास
"""क्यों जरुरी हैं गुर्जर
वंश में जन्मे गुर्जर को पुष्कर सरोवर में स्नान करना""
आदि
तीर्थ पुष्कर के महत्व को दर्शाती हुई कई कथाएं प्रचलित हैं। पूरे भारत में सिर्फ
पुष्कर में ही ब्रह्माजी का एकमात्र मंदिर होने के पीछे भी एक कथा है।
" यह कथा
देवी सावित्री के ब्रह्माजी को शाप देने से जुड़ी है। ब्रह्माजी ने पुष्कर को यज्ञ
क्षेत्र के रूप में चुना। यज्ञ के लिए निश्चित मुहूर्त पर जब देवी सावित्री वहां
नहीं पहुंचीं, ऋषियो ने भगवान ब्रह्मा से कहाकि महाराज यज्ञ का समय निकला जा रहा
हैं।अगरतय समय पर यज्ञ नही हुआ तो महाप्रलय आ जायेगी।और ऋषियो ने ब्रह्मा से कहा कि बिना जोड़े के यज्ञ होने का
प्राबधान नही हैं।उस समय पुष्कर की तलहटी में चेची गोत्र की गुर्जर कन्या "गायत्री" गाय चरा रही थी। "गुर्जर
कन्या गायत्री "
ऋषियो ने गुर्जर कन्या को गाय के
मुह में डालकर तन्त्र मन्त्र के द्वारा मूत्रद्वार में होके उस गुर्जर कन्या को
निकाला।वह एक सुंदर नारी बन गयी ।
और उसे ब्रह्मा जी के साथ यज्ञ
में बिठा दिया तो ब्रह्माजी ने गायत्री नाम की चेची गोत्र की एक "गुर्जर
कन्या" से विवाह करके यज्ञ संपन्न किया। जब यज्ञ पूरा हो गया तब ब्रह्मा जी की पत्नी देवी सावित्री जब वहां
पहुंचीं तो अपने स्थान पर गायत्री को बैठा देखकर क्रोधित हो गईं। उन्होंने
ब्रह्माजी और गायत्री को शाप दिया
Ø सम्पूर्ण पृथ्वी पर पुष्कर को छोड़कर उनकी कहीं भी पूजा नहीं होगी।
Ø ये गुर्जर कन्या जिस गुर्जर वंश से हैं इसका वंश आधा पागल
अर्थात:कोई भी
कार्य
हो जाने के बाद उसे सही गलत का पता चलेगा।
और बाद
में कहेगे कि ऐसा नही ऐसा होना चाहिए था।बाद में सावित्री को ऋषियो ने गुर्जर कन्या गायत्री को
बेकसूर बताया तो सावित्री को अहसास हुआ कि मेने गलत श्राप दिया।लेकिन श्राप बापस नही लिया जा सकता।लेकिन
सावित्री ने कहा कि पुष्कर सरोवर में गुर्जर वंश से कोई भी व्यक्ति आके स्नान कर
लेगा
वह श्राप
मुक्त हो जायेगा।पुष्कर कुण्ड 70 साल तक की आयु बाले गुर्जरो का पुष्कर आने का इंतजार करेगा।स्वयं भगवान ब्रह्मा ने गुर्जर घाट की
स्थापना की। "गुर्जर
कन्या गायत्री "
Ø ""अतः गुर्जर
वंश में जिसने जन्म लिया हैं उसको एक बार पुष्कर सरोबर में जरूर स्नान करना चाहिए।""
आज भी
पुष्कर मंदिर के पीछे पहाड़ की दो तलहटियों के एक तरफ सावित्री तो दूसरी
तरफ
गायत्री माता का मंदिर हैं।दोनों का मंदिर एक दूसरे के विपक्ष में आज भी विधमान
हैं।संपूर्ण विश्व में ब्रह्माजी के इसी एकमात्र मंदिर के कारण ही मंदिरों की नगरी
पुष्कर की विशिष्ट पहचान और महत्ता है।ऐसी मान्यता है कि वहां किया हुआ जप-तप, पूजा-पाठ और यज्ञ अक्षय फल देने वाला होता है, विशेष रूप से कार्तिक एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक। पुष्कर यात्रा का
पूर्ण फल यज्ञ पर्वत पर स्थित अगस्त्य कुंड में स्नान करने पर ही मिलता है।
शास्त्रों और पुराणों के अनुसार तीर्थो के गुरु पुष्कर की महत्ता इससे ही स्पष्ट
हो जाती है कि पुष्कर स्नान के बिना चारों धाम की यात्रा का पुण्य फल भी अधूरा
रहता है।
52 घाटों और लगभग तीन किलोमीटर
के दायरे में फैला पुष्कर अपनी मनोहारी छटा के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।
पुष्कर सरोवर भी तीन हैं। ज्येष्ठ, मध्य और कनिष्ठ पुष्कर।
ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के श्री विष्णु
और कनिष्ठ पुष्कर के देवता रुद्र हैं। लेकिन पुष्कर का अनंनतकालीन महत्य ज्येष्ठ
पुष्कर के कारण ही है।
"पुष्कर मंदिर से जुड़ी तमाम
बातों में एक खास बात यह भी है कि इस मंदिर के पुरोहित गुर्जर समुदाय से होते हैं, जिन्हें ‘भोपा’ के नाम से जाना जाता है।"गुर्जर
कन्या गायत्री "
यहां आने वाले भक्तगण जीवन का सार ढूंढने ही यहां आते हैं।हिंदुओं
के प्रमुख तीर्थस्थानों में पुष्कर ही एक ऐसी जगह है जहाँ ब्रह्मा का मंदिर स्थापित
है। ब्रह्मा के मंदिर के अतिरिक्त यहाँ सावित्री, बदरीनारायण, वाराह और शिव आत्मेश्वर
के मंदिर है, किंतु वे आधुनिक हैं।
यहाँ के प्राचीन मंदिरों को मुगल सम्राट् औरंगजेब ने नष्टभ्रष्ट कर दिया था। पुष्कर
झील के तट पर जगह-जगह पक्के घाट बने हैं।🌍🙏🏻
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GURJAR HISTORY