बगडावत कथा -31
शेर देवनारायण व छोछू भाट के सामने आकर खड़ा हो जाता है। भाट डर
केमारे उछल कर ऊपर एक पलाश के पेड़ पर चढ़ जाता है। देवनारायण शेर से कहते हैं कि
भाई तुमने हमारा रास्ता क्यो रोका ,हमें जाने दो। शेर कहता
है कि मैं तुम्हें खाउंगा अगर बचना चाहता हैं तो पहले मुझसे लड़ना होगा। देवनारायण
कहते हैं शेर तू तो है मांसाहारी जीव। मैं तुझे अपने शस्त्र से नहीं मारूंगा। ऐसा
कर पहले तूम नहा कर आओ, मैं तुम्हारा यहीं पर इन्तजार कर रहा हूं। शेर नदी में नहा
कर आता है फिर शेर देवनारायण से कहता है मैं भी आपसे नहीं लडूंगा। आपने तो चमड़े कि
जूतियां पहनी है, उसे खोल कर मुझसे लड़ो। देवनारायण अपने जूते खोल कर अपनी तलवार के
एक ही वार से शेर का सिर धड़ से अलग कर देते हैं। फिर भाट पेड़ से नीचे उतर कर कहता
है कि अभी शेर नहीं मरा, इसके प्राण तो नाभी में है। और अपनी कटार निकाल कर शेर की नाभी में
मारता है और कहता है कि यह अब यह मर गया है। देवनारायण यह देख कर भाट पर हंसते हैं। वहां से देवनारायण और
छोछूभाट सावर की तरफ चलते है, सावर के बाहर एक टिमक्या नामक तालाब होता है, वहां आकर देवनारायण बैठ
जाते हैं और भाट से कहते हैं, बाबा भाटजी आप जाकर कोई भी बहाना बनाकर दियाजी को यहा बुलाकर लाओ।
भाट कहता है, दियाजी मेरे को वहीं खतम कर दे तो। और उन्हें बाहर लाने के लिए तो
मुझे झूठ बोलना पड़ेगा। झूठ बोलूंगा तो वैसे ही मर जाउंगा देवनारायण भाट को चार
तीतर बनाकर देते हैं और कहते हैं कि भाटजी आप चार बार झूठीं कसम खा सकते हो। इन
तीतरों को आप अपनी कमर में बांध लो, और जहां झूठ बोलना पड़े वहीं तीतर पर हाथ लगा कर कहना कि मैं झूठ
बोलू तो इस जीव की कसम और एक तीतर मर जायेगा। आपको कुछ नहीं होगा। और दियाजी से
कहना की अजमेर के राजाजी के लड़के सुवर का शिकार करने के लिये आये हुए हैं। और गांव
के बाहर डेरा डाल रखा है। ऐसा बोलकर दियाजी को साथ लेकर झट आना।
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देवनारायण कथा